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एस धम्मो सनंतनो
क्योंकर कहूं कि कोई तमन्ना नहीं मुझे अमीर के ये शब्द हैं। बड़े महत्वपूर्ण । बाकी अभी है तर्के - तमन्ना की आरजू
अभी इच्छा एक है बाकी, कि सब इच्छाएं छूट जाएं - तर्के - तमन्ना की आरजू – सब तमन्नाएं मिट जाएं, यह एक तमन्ना अभी बाकी है।
क्योंकर कहूं कि कोई तमन्ना नहीं मुझे
इसलिए अभी कैसे कह सकता हूं कि मेरी अब कोई वासना नहीं। एक वासना अभी मेरी शेष है। अमीर ने जरूर बुद्ध को समझकर यह कहा होगा।
इतनी भी वासना न रह जाए तो ही कोई निर्वासना को उपलब्ध होता है। कोई भी वासना न रह जाए — परमात्मा की, मोक्ष की, निर्वाण की, आत्मा की, ज्ञान की, ध्यान की— कोई वासना न रह जाए।
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क्यों? क्योंकि वासना का स्वभाव ही तुम्हें जीवन से वंचित करवाना है। वासना का अर्थ है, चुकाना; जो यहां था, उससे हटा देना । वासना का अर्थ है, तुम्हें गैर-मौजूद करना, तुम्हें कहीं और ले जाना ।
और जीवन यहां था । जब जीवन तुम्हारे द्वार पर दस्तक दे रहा था, तब वासना तुम्हें किन्हीं और ध्वनियों को सुनने को उत्प्रेरित करती है। वह जो द्वार पर दस्तक पड़ती है वह तुम चूक जाते हो। वासना के शोरगुल में वह जो धीमी सी आवाज प्रतिपल तुम्हारे भीतर से उठ रही है - तुम्हारे परमात्मा की आवाज, तुम्हारी आवाज – वह वासना के शोरगुल में सुनायी नहीं पड़ती। कभी वासना बाजार की होती है, संसार की; कभी परमात्मा की, निर्वाण की; कभी धन की कभी धर्म की; इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ।
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धर्म की वासना उतनी ही वासना है जितनी धन की । मोक्ष की कामना उतनी ही कामना है जितनी कोई और कामना । कामना कामना में कोई भी भेद नहीं है। क्योंकि कामना का मूल स्वभाव, जो मौजूद है उससे तुम्हें चुकाना है । और निर्वासना का अर्थ है, जो मौजूद है उसमें होना । जो अभी है, जो यहां है, उसके साथ तालमेल बिठा लेना, उसके साथ स्वरबद्ध हो जाना, छंदबद्ध हो जाना ।
इस क्षण के पार तुम न जाओ, परमात्मा तुम्हें मिल जाएगा। तुम उसकी फिकर छोड़ो, वह मिला ही हुआ है। तुम इस क्षण में डूब जाओ, मोक्ष तुम्हारे घर आ जाएगा। वह सदा से आया ही हुआ था। तुम्हीं अपने घर न थे।
भले ही किसी को थोड़ी सी भी संहिता कंठस्थ न हो, लेकिन धर्म उसके जीवन में हो, होशपूर्ण जीवन हो उसका - जाग्रत - तो वेद जानने की जरूरत नहीं। क्योंकि तुम स्वयं वेद हो जाते हो। तुम जो बोलोगे, होगा वेद । तुम जो कहोगे, होगा उपनिषद | उठोगे, पैदा हो जाएंगी भगवदगीताएं। बैठोगे, कुरान जन्म जाएंगे। क्योंकि तुम्हारे भीतर परमात्मा छिपा है । किन्हीं ऋषियों ने उसका ठेका नहीं लिया है। तुम ऋषि होने
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