SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बुद्धपुरुष स्वयं प्रमाण है ईश्वर का तुम्हारा बीज भी नहीं टूटा, तो तुम समझ न पाओगे। तुम सुन लोगे, लेकिन भरोसा न कर पाओगे। भरोसा तो तभी आता है जब तुम्हारा अनुभव भी गवाही बने। तुम्हारा अनुभव भी कहे कि हां, ठीक है। तुम्हारा अनुभव कहे, विचार नहीं। तर्कसे तो मैं तुम्हें समझा दूं; लेकिन तर्क से कहीं प्यास बुझी है! शब्द से तो मैं तुम्हें भरोसा दिला दूं, लेकिन शब्दों के भरोसों से कहीं पेट भरा है। शास्त्र कितना ही ब्रह्म की चर्चा करते रहें, लेकिन तुम्हें किसी दिन पीनी पड़ेगी यह शराब, तुम्हें भी डोलना पड़ेगा उस नशे में, तुम्हें भी होश-हवास खोकर, लोक-लाज खोकर-मीरा ने कहा, सब लोक लाज खोयी-तुम्हें भी पग धुंघरू बांध नाचना पड़ेगा, मतवाला होना पड़ेगा, तो ही उस मदिरा का स्वाद तुम्हें आएगा। आचरण पर जोर इसीलिए है। भले ही किसी को थोड़ी सी ही संहिता कंठस्थ हो, या न हो; वेद सुना हो, न सुना हो; लेकिन धर्म का जीवन हो, होशपूर्ण जीवन हो, आनंदपूर्ण जीवन हो, उत्सवपूर्ण जीवन हो. प्रमदित जीवन हो। . 'राग, द्वेष और मोह को छोड़कर...।' क्योंकि उनसे ही दर्द के पैबंद लगे जाते हैं; वे जो रोग, द्वेष और मोह हैं, उनसे ही तुम्हारे लबादे पर दर्द के पैबंद लगे जाते हैं। 'तथा इस लोक और परलोक में किसी भी चीज के प्रति निरभिलाष हो...।' क्योंकि जिसकी आशा आगे भागी जा रही है, वह यहां इसी क्षण मौजूद जीवन से अपरिचित रह जाएगा। वह कभी परिचित न हो पाएगा। जीवन यहां, तुम कहीं और। तो बुद्ध ने कहा है, इतनी सी भी अभिलाषा न रह जाए-परलोक पाने की, स्वर्ग पाने की। परमात्मा को पाने की भी अभिलाषा न रह जाए। __ इसीलिए, बुद्ध जानते हुए कि परमात्मा है और चुप रहे। क्योंकि शब्द निकाला मुंह से कि तुम्हारी वासना उसे पकड़ती है। जानते हुए कि मोक्ष है, बुद्ध चुप रहे। नहीं कि उन्हें कहना नहीं आता था। ऐसा भी नहीं कि बेजुबां थे। चुप रहे, क्योंकि तुमसे कुछ भी कहो, तुम तत्क्षण उसे अपनी वासना का विषय बर्ना लेते हो। अगर मैं ईश्वर के तुमसे गुणगान करूं, तुम्हारा मन कहता है तो फिर ईश्वर को पाना है; चाहे कुछ भी हो जाए ईश्वर को पाकर रहेंगे। तुम पूछने आ जाते हो, क्या करें जिससे ईश्वर मिल जाए? ईश्वर भी तुम्हारी वासना बन जाता है। जब कि लाख तुम्हें समझाया जा रहा है कि जब तुम निर्वासना हो जाओगे तब ईश्वर अपने आप आ जाता है, तुम्हें उसे खोजने जाना नहीं पड़ता। मोक्ष का अर्थ है, जब तुममें कोई अभिलाषा न रहेगी। और तुम मोक्ष की ही अभिलाषा करने लगते हो। तो तुमने तो जड़ ही काट दी। बुद्ध कहते हैं, जो निरभिलाष हो। बाकी अभी है तर्के-तमन्ना की आरजू 125
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy