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बुद्धपुरुष स्वयं प्रमाण है ईश्वर का
पीने वाले एक ही दो हों तो हों वेद के जानने वाले, उपनिषद, कुरान के जानने वाले बहत हैं।
पीने वाले एक ही दो हों तो हों
मुफ्त सारा मयकदा बदनाम है शराबघर में जितनों को तुम बैठे देखते हो सबको पीने वाले मत समझ लेना। उनमें से कई तो पानी ही पी रहे हैं, और नाटक कर रहे हैं। नाटक कर रहे हैं कि गहरे नशे में हैं। और पानी पीकर सिर हिलाने से कुछ भी नहीं होता।
ज्ञान के मयखाने में, सत्य की शराब जहां बिकती है, मिलती है, वहां पीने वाले बहुत मुश्किल से कभी एक दो मिलेंगे। क्योंकि पीने वाले को मिटना पड़ता है। वह रास्ता खतरनाक है। जोखिम का है, जुआरी का है।
तो बहुत से तो केवल पीने का बहाना करते हैं, डगमगाकर चलते हैं, नाटक करते हैं। पंडितों को गौर से देखना। शराब कभी पी ही नहीं; शराब का शास्त्र कंठस्थ किया है। और उसी से मतवाले होकर चल रहे हैं। बातचीत सुनी है, नशा छा गया है। इस नशे की भ्रांति में मत पड़ना। ___ 'जो दूसरों की गौएं गिनने वाले ग्वाले के समान है, वह श्रामण्य का अधिकारी नहीं हो सकता।
इस शब्द को थोड़ा समझ लेना जरूरी है। भारत के पास दो शब्द हैं—ब्राह्मण और श्रमण। कभी ब्राह्मण शब्द बड़ा अनूठा था। उसका अर्थ था, जिसने ब्रह्म को जाना। लेकिन फिर शब्द गिरा, पतित हुआ। फिर उसका अर्थ इतना ही हो गया कि जो शास्त्रों का जानकार है, ब्राह्मण-कुल में पैदा हुआ है। ब्रह्म के जानने से उसका कोई संबंध न रहा। वह शब्द पतित हो गया। उसका अर्थ खो गया।
उद्दालक ने अपने बेटे श्वेतकेतु को कहा है कि ध्यान रख, हमारे घर में बस कहलाने वाले ब्राह्मण पैदा नहीं हुए। हमारे घर में सच में ही ब्राह्मण पैदा हुए हैं। तो तू याद रखना, कहीं तू यह मत समझ लेना कि तू ब्राह्मण-कुल में पैदा हुआ, इसलिए ब्राह्मण हो गया। ब्राह्मण होना पड़ेगा। ब्राह्मण-कुल में पैदा होने से कोई ब्राह्मण होता है! ब्रह्म को जानने से कोई ब्राह्मण होता है। ब्रह्म के कुल में जब तक तुम पैदा न हो जाओ, जब तक ब्रह्म ही तुम्हारा कुल न हो जाए, जब तक ब्रह्म की कोख से ही तुम पुनरुज्जीवित न होओ, पुनर्जन्म न लो, तब तक ब्राह्मण के घर में पैदा होने से कोई ब्राह्मण नहीं होता।
लेकिन यह हो गया था। सभी शब्दों के साथ ऐसा ही होता है। तो बुद्ध और महावीर को एक नया शब्द खोजना पड़ा। वह शब्द है, श्रमण। वह ब्राह्मण के विपरीत है। श्रमण का अर्थ होता है, जिसने श्रम करके अर्जन किया है ज्ञान को। उधार नहीं लिया। जो ऐसे ब्राह्मण के घर में पैदा होकर वेद कंठस्थ नहीं कर लिया है, बल्कि जिसने वेद को जीया और जाना है।
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