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________________ एस धम्मो सनंतनो _ 'भले ही कोई बहुत सी संहिता कंठस्थ कर ले, लेकिन प्रमादवश उसका आचरण न करे।' जानना तो बड़ा सरल है। क्योंकि जानने से अहंकार को बड़ी तृप्ति मिलती है। मैं जानने वाला हो गया; मुझे चारों वेद याद हैं; दूसरे अज्ञानी हैं, मैं ज्ञाता हूं-जानने में एक अकड़ है, एक अहंकार है, प्रमाद है। ___इसलिए तुम पंडित को बड़ा अकड़ा हुआ पाओगे। अकड़ कोढ़ी है, नपुंसक है। भीतर कुछ भी नहीं है, लेकिन पंडित को तुम बड़ा अकड़ा पाओगे। वह सब तरफ कहे बिना कहे घोषणा करता है कि मैं जानता हूं। जानने से तो अहंकार कटता नहीं, बढ़ता है। जीने से गिर जाता है। जो परमात्मा के रास्ते पर या सत्य के रास्ते पर एक कदम भी चलेगा, वह झुकने लगेगा। जो शास्त्र के रास्ते पर लाख कदम भी चले, झुकना तो दूर रहा और भी अकड़ जाएगा। शास्त्र खोपड़ी को और भी भर देते हैं, मिटाते नहीं। शास्त्र हृदय से और दूर कर देते हैं, पास नहीं लाते। शास्त्रों में सत्य नहीं मिलता किसी को। शास्त्रों से तो और अहंकार मजबूत हो जाता है। ___'भले ही कोई बहुत सी संहिता कंठस्थ कर ले, लेकिन प्रमादवश उसका आचरण न करे तो वह दूसरों की गौएं गिनने वाले ग्वाले के समान है।' . बड़ा प्यारा प्रतीक है। जैसे ग्वाला तुम्हारे गांवभर की गउओं को इकट्ठा करके जंगल ले जाता है, दिनभर चराता है, गिनती रखता है, लौटा लाता है; कहता है, पांच सौ गौएं चराकर लौटा। एक गऊ तुम्हारी नहीं है उसमें! सब दूसरों की हैं। वेद कितने ही सुंदर हों, दूसरे की गौएं हैं। उपनिषद कितने ही सुंदर हों, दूसरे की गौएं हैं। तुम्हारा क्या है? ग्वाले ही बने रहोगे? मालिक कब बनोगे? शब्द सीख लेने से आदमी ग्वाला ही रह जाता है। और गौएं कितनी ही हों, अपनी एक भी नहीं। सब उधार, सब दूसरों की, लेकिन ग्वालों में भी अकड़ होती है। अगर एक ग्वाला सौ गौएं रखता है और दूसरा ग्वाला पांच सौ, तो पांच सौ वाला ज्यादा अकड़ा रहता है। वह कहता है, तू है क्या मेरे सामने? सौ गौएं चराता है, मैं पांच सौ चराता हूं। मगर गौएं सब दूसरों की हैं, सौ हों कि पांच सौ हों। तुम चतुर्वेदी हो, कि त्रिवेदी, कि द्विवेदी, इससे क्या फर्क पड़ता है ? गौएं सब दूसरों की हैं। अपनी कोई एक भी गाय हो तो ही जीवन को पुष्ट करती है; तो ही उसका दूध तुम्हें मिल सकता है; तो ही तुम उसके मालिक हो। वह दुबली-पतली हो, दीन-दरिद्र हो, अपनी हो, तो भी किसी की स्वस्थ स्वीडन से आयी गाय के मुकाबले भी बेहतर है। पीने वाले एक ही दो हों तो हों . मुफ्त सारा मयकदा बदनाम है ज्ञानी बहुत दिखायी पड़ते हैं। 122
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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