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________________ एस धम्मो सनंतनो उतरा तो बांटने का भाव भी आया। आनंद के साथ आती है करुणा। आनंद के साथ आती है एक अभीप्सा कि बांटो, लुटो। जो मिला है, उसे दूसरों को दे दो। क्योंकि आनंद का एक स्वभाव है : बांटो, बढ़ता है; न बांटो, घटता है। लुटाओ, बढ़ता है; छिपाओ, मरता है। __ ब्रह्म हमने नाम दिया है परम सत्य को। सच्चिदानंद कहा है, और ब्रह्म कहा है। ब्रह्म का अर्थ है, जो विस्तीर्ण होता चला गया। जो कहीं सिकुड़ता ही नहीं, जो फैलता ही चला जाता है। विस्तार जिसका स्वभाव है। जीवन जब तुम्हारा खिलता है, तो फूल की तरह फैलता है, सुगंध लुटती है। जब तुम मुझते हो दुख में, तो बंद हो जाते हो, सिकुड़ जाते हो, जड़ हो जाते हो। प्रवाह रुक जाता है। इसे ध्यान रखना'इस लोक में मुदित होता है।' : मुदित शब्द बड़ा महत्वपूर्ण है। यह फूल की दुनिया से आया हुआ शब्द है-प्रमुदित। मुदित का अर्थ होता है—खिलना, फूलना, फैलना। 'इस लोक में मुदित होता है।' मुदित शब्द की ध्वनि भी खिलाने वाली है। 'और परलोक में भी।' क्योंकि परलोक कहीं और थोड़े ही है। इसी लोक से निकलता है। इसी लोक की श्रृंखला है। इसी लोक का अगला कदम है। तुम्हारा आध्यात्मिक जीवन तुम्हारे सांसारिक जीवन का ही अगला कदम है। तुम्हारा मंदिर तुम्हारे घर का ही अगला कदम है। घर के खिलाफ जो मंदिर है, वह मंदिर मंदिर नहीं है। संसार के खिलाफ जो अध्यात्म है, वह अध्यात्म नहीं। आज के खिलाफ जो कल है, वह झूठा है। इस लोक के खिलाफ जो परलोक है, वह परलोक सिर्फ तुम्हारी आकांक्षाओं में, सपनों में होगा, सत्य में नहीं है। क्योंकि सत्य में तो सब जुड़ा है। तुम्हारा घर और मंदिर एक ही जीवन-यात्रा के दो पड़ाव हैं। संसार और परमात्मा एक ही यात्रा के दो कदम हैं। - 'इस लोक में मुदित होता है, और परलोक में भी; पुण्यात्मा दोनों लोक में मुदित होता है। वह अपने कर्मों की विशुद्धि को देखकर मुदित होता है, प्रमुदित होता है।' ___ और जब तुम लौटकर पीछे देखते हो-अगर तुम्हारे जीवन के ढंग में रोशनी रही हो, अगर जतनपूर्वक तुम जीए हो, अगर होशपूर्वक तुमने कदम उठाए हैं तो तुम जब लौटकर देखते हो, तो एक प्रकाश से भरी यात्रा, हर कदम पर हीरे जड़े! और तुम्हारे कदमों में शराबी की डगमगाहट नहीं दिखायी पड़ती, होश की थिरता मालूम होती; और यात्रा सिर्फ यात्रा नहीं मालूम होती, तीर्थयात्रा मालूम होती है। __ लौटकर भी पुण्यात्मा प्रमुदित होता है। पीछे भी स्वर्ग था, आगे भी स्वर्ग है, क्योंकि अभी स्वर्ग है। जिसका स्वर्ग अभी है, उसके दोनों तरफ स्वर्ग फैल जाता 120
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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