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एस धम्मो सनंतनो
यह स्वर्ग जा रही है। उसने कहा, चलो अच्छा हुआ! यही तो मुझे पूछना था। यह अच्छा ही हुआ, आंख से ही देख लूंगा। तो उसने सोच रखे नाम मन में जैसे सुकरात; परमात्मा में भरोसा नहीं करता था, आदमी पुण्यात्मा था। जैसे बुद्ध; इससे और पुण्य की साकार प्रतिमा कहां पाओगे? लेकिन आदमी परमात्मा में भरोसा नहीं करता था। तो उसने कहा, ठीक है, अगर ये बुद्ध और ये सुकरात स्वर्ग में मिल गए तो उत्तर साफ हो जाता है, कि परमात्मा में भरोसे की जरूरत नहीं। अगर ये स्वर्ग में न मिले, तो भी उत्तर साफ हो जाता है कि पुण्य से कुछ भी न होगा, असली चीज परमात्मा में भरोसा है। __ स्वर्ग के स्टेशन पर उतरा, बड़ी हैरानी हुई। स्टेशन बड़ा उदास था। जैसे कई जमानों की धूल जमी हो, किसी ने साफ न की हो। थोड़ा हैरान हुआ। जाकर गौर से देखा तख्ती पर, जो स्वर्ग ही लिखा है। गांव में प्रविष्ट हुआ, बड़ी बेरौनक थी बस्ती। कहीं फूल खिलते न मालूम पड़ते थे। और किसी घर से वीणा के स्वर न उठते थे। कहीं कोई नाचता न मिला। मिले भी ऐसे—धर्मगुरु, पादरी, मुनि; मगर कोई रौनक न मिली। ऐसे जैसे मुर्दे चल रहे हों। कहीं कोई महोत्सव न मिला। जिंदगी ऐसी लगी जैसे एक बोझ हो वहां। उसने पूछा कई से कि सुकरात, गौतम बुद्ध ? लोगों ने कहा, नाम सुने नहीं। यहां नहीं हैं। दूसरी जगह, नर्क में खोजो।
__ भागा स्टेशन आया। पूछा कि नर्क की गाड़ी? भाग्य से खड़ी थी, जा ही रही थी। वह बैठ गया। नर्क पहुंचा तो बड़ा हैरान होने लगा। जैसे किसी महोत्सव में प्रवेश हो रहा हो। बड़ा स्वच्छ था स्टेशन। जीवन मालूम पड़ता था। फूल खिले थे, गीत बजते थे, लोग चलते थे तो उनके पैरों में गति थी, रौनक थी, रंग-बिरंगापन था, जीवन का इंद्रधनुष जैसे खिला था। वह बड़ा हैरान हुआ कि यह तो कुछ गड़बड़ है। नाम में, तख्ती में कुछ भूल-चूक हो गयी। इसको स्वर्ग होना चाहिए। उसने पूछा कि सुकरात और बुद्ध ? उन्होंने कहा कि हां, वे यहां हैं। और नाम में कोई गलती नहीं हई है। उनके आने से ही यह नर्क स्वर्ग हो गया।
नींद खुल गयी उसकी। घबड़ाहट में नींद खुल गयी कि यह क्या मामला है? सपना तो खो गया। जब वह सुबह चर्च गया, उसने कहा कि भई, मैं कुछ और न कह सकूँगा, लेकिन रात एक सपना आया है वह मैं दोहरा देता हूं उत्तर में। सपने में मुझे ऐसा दिखायी पड़ा; कहां तक सही है, कहां तक झूठ है, कुछ कह नहीं सकता। मेरी कोई सामर्थ्य भी नहीं इसका निर्णय लेने की। इतना मुझे दिखायी पड़ा और वह यह कि जहां भी पुण्यात्मा पुरुष पहुंच जाते हैं, वहीं स्वर्ग है। जहां पापी पहुंच जाते हैं, वहीं नर्क है। पापी नर्क जाते हैं, ऐसा नहीं। पापी अपना नर्क अपने साथ लेकर चलते हैं। और पुण्यात्मा स्वर्ग जाते हैं, ऐसा नहीं। पुण्यात्मा अपना स्वर्ग अपने साथ लेकर चलते हैं। तुम उन्हें कहीं भी फेंक दो।
और मुझे भी बात जंचती है। सपना नहीं, सच मालूम होती है। बुद्ध को तुम
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