________________
बुद्धपुरुष स्वयं प्रमाण है ईश्वर का
'इस लोक में मुदित होता है, परलोक में मुदित होता है; पुण्यात्मा दोनों लोक में मुदित होता है।'
क्यों? जिसे यहां मुदित होना आ गया, उसे सब जगह मुदित होना आ गया। असली सवाल लोक का नहीं है, असली सवाल प्रमुदित होने की कला का है। जिसे हंसना आ गया; जिसे नाचना आ गया; जिसने जीवन की धुन को पकड़ लिया; और जो जीवन के गीत में तालबद्ध होना सीख गया; जो जीवन के साथ छंद का अनुभव करने लगा; जिसके पैर जीवन के नाच के साथ पड़ने लगे; जीवन की बांसुरी ने जिसके हृदय को छू लिया; वह सभी जगह प्रमुदित होता है । तुम उसे नर्क में न डाल सकोगे।
शास्त्र कहते हैं, पुण्यात्मा स्वर्ग जाता है, पापी नर्क जाता है। बात बिलकुल भिन्न है। पापी कहीं और जा नहीं सकता। ऐसा नहीं कि नर्क भेजा जाता है। कहीं भी भेजो, पापी नर्क पाता है। ऐसा नहीं कि पुण्यात्मा को स्वर्ग भेजा जाता है। कौन बैठा है सब हिसाब करने को ! कौन इस सब व्यवस्था को बिठाता रहेगा ! किसको पड़ी है ! पुण्यात्मा को कहीं भी भेजो, वह स्वर्ग पहुंच जाता है।
मैं एक कहानी पढ़ता था। यूरोप का एक बहुत बड़ा विचारक हुआ, एडमंड बर्क। वह रोज सुनने जाता था एक पादरी को । पादरी ने एक दिन चर्च में कहा कि जो लोग पुण्यात्मा हैं और परमात्मा में भरोसा करते हैं, वे स्वर्ग जाते हैं। एडमंड बर्क खड़ा हो गया। उसने कहा, मुझे एक बात पूछनी है। आपने दो बातें कहीं, कि जो लोग पुण्यात्मा हैं, और परमात्मा में भरोसा करते हैं, वे स्वर्ग जाते हैं। मैं पूछता हूं कि जो लोग पुण्यात्मा हैं और परमात्मा में भरोसा नहीं करते, वे कहां जाते हैं ? और मैं यह भी पूछना चाहता हूं कि जो परमात्मा में भरोसा करते हैं और पुण्यात्मा नहीं हैं, वे कहां जाते हैं ?
एडमंड बर्क की जिज्ञासा एकदम प्रामाणिक थी । पादरी भी ठगा सा रह गया। अब क्या कहे? उसे बड़ी उलझन हो गयी। अगर वह कहे कि जो लोग पुण्यात्मा हैं और परमात्मा में भरोसा नहीं करते, वे भी स्वर्ग जाते हैं; तो स्वभावतः बर्क कहेगा, फिर परमात्मा में भरोसे की जरूरत क्या है ? पुण्य ही काफी है। और अगर मैं कहूं कि जो लोग पुण्यात्मा हैं और परमात्मा में भरोसा नहीं करते, वे स्वर्ग नहीं जाते; तो बर्ककहेगा, तो फिर पुण्य की झंझट में पड़ने की क्या जरूरत ? परमात्मा में भरोसा काफी है । पादरी ने कहा, मुझे तुमने उलझन में डाल दिया। थोड़ा मुझे सोचने का समय दो; कल।
रातभर पादरी सो न सका । आदमी निष्ठावान रहा होगा । चालाक नहीं, बुद्धिमान रहा होगा। बहुत सोचा, लेकिन उलझन न हल हुई। सुबह - सुबह, भोर होते-होते, रातभर का जागा सोचता- सोचता नींद लग गयी। नींद में उसने एक सपना देखा कि वह एक ट्रेन में बैठा है। उसने लोगों से पूछा, यह ट्रेन कहां जा रही है ? उन्होंने कहा,
117