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________________ एस धम्मो सनंतनो अगर तुम आज ही अपने को देखो, तो आत्महत्या करने का मन होगा, कुछ भी तो नहीं है। तुम कहते हो कोई फिकर नहीं। आज तक कुछ भी नहीं हुआ, कल होगा। हिम्मत बढ़ती है। सिर फिर खड़ा हो जाता है, पैर फिर मजबूत हो जाते हैं। आज तक सब व्यर्थ हुआ, कोई चिंता की बात नहीं, कल आ रहा है। कल के साथ सारी आशाएं फलीभूत होंगी; सब बीज अंकुरित होंगे; सब कलियां खिलेंगी। कल आ रहा है। और कल कभी आता नहीं। और रोज कल को तुम आगे सरकाए चले जाते हो। ऐसे ही एक दिन तुम मर जाते हो। परलोक पापी की आशा है। यह सुनकर तुम्हें हैरानी होगी। पुण्यात्मा परलोक की बात ही नहीं करता। पुण्यात्मा कहता है, यहीं है, अभी है। पुण्यात्मा यह नहीं कहता कि परमात्मा आकाश में बैठा है। पुण्यात्मा कहता है, परमात्मा ने सब तरफ से घेरा है, श्वास-श्वास में वही भीतर जा रहा है, वही बाहर जा रहा है। पापी कहता है, परमात्मा आकाश में बैठा है। पुण्यात्मा तुममें झांकता है और परमात्मा को पाता है। पापी चारों तरफ देखता है, कहीं कोई परमात्मा नहीं दिखायी पड़ता। सब तरफ दुश्मन दिखायी पड़ते हैं। वह कल्पना करता है परमात्मा की, वह आकाश में बैठा है। क्योंकि इतने दुश्मनों के बीच जीना मुश्किल है, कोई सहारा चाहिए। कल्पना में सहारे खोजता है पापी। सत्य में उसके लिए कोई सहारा नहीं है, क्योंकि सत्य में होने का उसे ढंग ही न आया। उतना जतन न आया। बस इसी धुन में रहा मर के मिलेगी जन्नत ___ तुझको ऐ शेख न जीने का करीना आया उसे जीने का करीना न आया; ढंग न आया; जीने की शैली न आयी। वह इसी आशा में रहा कि मरेंगे, तब जनत, तब स्वर्ग होगा। जिसने स्वर्ग को यहां न पाया, वह कहीं भी न पा सकेगा। जिसने यहां खोया, वह सब जगह खो देगा। 'इस लोक में और परलोक में भी पापी शोक करता है।' 'इस लोक में मुदित होता है, और परलोक में भी; पुण्यात्मा दोनों लोक में मुदित होता है।' ये बुद्ध के वचन बड़े प्यारे हैं। इस लोक में मुदित होता है, खिलता है, नाचता है, आनंदित होता है। 'इस लोक में मुदित होता है, और परलोक में भी।' क्योंकि परलोक इसी लोक का विस्तार है। परलोक इसी लोक की संतान है। परलोक इसी लोक से आता है, निकलता है, पैदा होता है। जैसे बीज से अंकुर निकलता है। जैसे मां के गर्भ से बेटा पैदा होता है, ऐसे ही वर्तमान से भविष्य पैदा होता है। इसी लोक से, इसी क्षण से आने वाला क्षण आ रहा है। इसी क्षण में छिपा है। जैसे बीज में वृक्ष छिपा है, ऐसा वर्तमान में भविष्य छिपा है। इस लोक में परलोक छिपा है। पदार्थ में परमात्मा छिपा है। 116
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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