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बुद्धपुरुष स्वयं प्रमाण है ईश्वर का पुण्य होता ही है, पुण्य करना थोड़े ही होता है । किया पुण्य भी दो कौड़ी का हो जाता है। करने में ही तो अहंकार समा जाता है।
जो होश में है उससे पुण्य ऐसे ही होता है जैसे, बुद्ध कहते हैं, गाड़ी के पीछे चाक चले आते हैं, आदमी के पीछे छाया चली आती है। जो गलत है, बेहोश है, उससे पाप भी ऐसे ही होता है जैसे गाड़ी के पीछे चाक चले आते हैं। गाड़ी गुजरती है तो चाक के निशान रास्ते पर बन जाते हैं। वह अपने आप हो जाते हैं। तुम निशानों को पोंछने में मत लग जाना, क्योंकि गाड़ी चलती ही जा रही है। तुम निशान पोंछते जाओगे, गाड़ी नए रास्ते पर नए निशान बनाती चली जाएगी। तुम छाया से मत लड़ने लगना, क्योंकि जब तक तुम्हीं नहीं खो गए हो, छाया कैसे खो जाएगी? जब तुम्हीं खो जाओगे, तभी छाया खो जाएगी।
बड़ी पुरानी कथाएं हैं, जिनमें यह कहा है कि ज्ञान को उपलब्ध व्यक्ति की छाया नहीं बनती। उसका यह मतलब नहीं है कि वह धूप में चलता है तो उसकी छाया नहीं बनती। इसका मतलब यही है कि ज्ञान को उपलब्ध व्यक्ति का कोई कृत्य नहीं रह जाता। सिर्फ अस्तित्व रह जाता है । वह होता है। और उसका होना इतना महिमावान हो जाता है कि उसकी कोई रेखा नहीं छूटती । पुण्य की रेखा भी नहीं छूटती । क्योंकि जिसकी भी रेखा छूट जाए वही पाप हो गया । कृत्य बनता ही नहीं । कर्म होता ही नहीं। इसी को कृष्ण ने गीता में कहा है कि जब तुम फलाकांक्षा छोड़ दोगे, तो तुम्हारा कर्म कर्म हो जाता है। जैसे हुआ ही नहीं। जैसे पानी पर किसी ने लकीर खींची, खिंच भी न पायी और मिट गयी।
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पाप का अर्थ है, इस ढंग से जीना कि जहां तुम हो वहां तुम नहीं हो। कहीं और... कहीं और... सदा कहीं और... । बूढ़े हो जाओगे तब जवानी की सोचोगे । जवान हो गए तब बचपन की सोचोगे । जब तुम मरने की घड़ी से घिरोगे, मृत्यु की शय्या पर, तब तुम्हें जीवन की याद आएगी।
यह बात विरोधाभासी लगती है, मगर बड़ी सच है । बहुत लोग मरकर ही पाते हैं, कि जिंदा थे। जिंदगी में उनको कभी इसका पता न चला। मरे तभी उनको अनुभव हुआ - अरे ! जिंदा थे। बहुत लोग जब चीजें हाथ से छूट जाती हैं तभी होश से भरते हैं कि अरे ! हाथ में थी और चली गयी। यह बड़ी आश्चर्य की बात है ! और जब तक हाथ में नहीं आती है कोई चीज तब तक भी वे कामना करते हैं; और जब हाथ से छूट जाती है तब भी याद करते हैं; और जब हाथ में होती है तब उनके जैसे जीवन द्वार बंद हो जाते हैं । यही पाप है।
बुद्ध कहते हैं, 'इस लोक में भी शोक करता है और परलोक में भी । पापी दोनों जगह शोक करता है । '
वह यहां भी चूक रहा है, वहां भी चूकेगा। क्योंकि चूकने का अभ्यास निरंतर गहन होता जा रहा है। तुम यह मत सोचना कि तुम्हें स्वर्ग मिल सकता है। मिल
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