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एस धम्मो सनंतनो
महल में मत टिकने दो। इसकी महल की आकांक्षा कभी न मरेगी। क्योंकि जिसको जाना नहीं, उसकी आकांक्षा होती है, मरती नहीं। यह कभी संन्यासी न होगा। __लेकिन त्यागी महात्माओं ने कहा...उन्होंने बेचारों ने अपने अनुभव से कहा। जो उन्हें नहीं मिला था, उन्होंने सोचा, अगर हमको मिलता-सुंदर स्त्रियां मिलतीं, महल मिलते-तो हम संन्यासी होते? उनका तर्क साफ है। संन्यासी वे इसलिए हुए कि न सुंदर स्त्रियां मिलीं, न महल मिले। वही इसके लिए भी जमा दो, यह भटक जाएगा उसी में। यह अपना अनुभव वे बता रहे हैं, कि हम भी भटक जाएं अगर इंतजाम अभी कोई कर दे। भीतर तो वही चाह रही होगी। मुझे पता नहीं कौन लोग थे वे? उनके नाम का भी कोई उल्लेख नहीं, लेकिन बात जाहिर है कि वे आदमी बीच से भाग गए होंगे, जीवन का अनुभव न रहा होगा।
बुद्ध के बाप ने उनकी मान ली, लड़का खोया। बना दिए महल चार। हर मौसम के लिए अलग। जितनी राज्य में सुंदर युवतियां थीं, सब इकट्ठी कर दीं। बुद्ध लड़कियों के बीच ही बड़े हुए। लेकिन ऊब गए। सुंदरतम स्त्रियां उनके पास थीं। उन्होंने सारे सपने तोड़ दिए।
सुंदरतम स्त्री भी तुम्हारे पास हो, दो दिन से ज्यादा थोड़े ही सुंदर मालूम पड़ती है। दो दिन के बाद सब स्त्रियां साधारण हो जाती हैं। स्त्री का सौंदर्य बच सकता है, अगर तुम्हें दूर रखा जाए। वह कामना में है, अनुभव में नहीं। कितनी ही सुंदर स्त्री हो, क्या करोगे! दो दिन के बाद साधारण हो जाती है। कोई पति अपनी पत्नी को देखता है? कितनी ही सुंदर हो, और कभी-कभी हैरान भी होता है कि दूसरे क्यों रास्ते पर रुक-रुककर मेरी स्त्री को देखने लगते हैं। क्योंकि उसे तो कुछ नहीं दिखायी पड़ता। दूसरों को दिखायी पड़ता है। दूसरे की पत्नी सदा ही सुंदर मालूम पड़ती है।
और कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि तुम्हारी सुंदर पत्नी तुम्हें सुंदर नहीं मालूम पड़ती, घर की नौकरानी साधारण तुम्हें सुंदर मालूम पड़ने लगती है। क्योंकि उसमें फासला है।
दूर रखो, चीजें सुंदर रहती हैं। दूर के ढोल सुहावने! पास आते ही सपने टूट जाते हैं। यथार्थ खुल जाता है। बुद्ध उन सारी सुंदर स्त्रियों को देखकर ऊब गए। परेशान हो गए। भागने का मन होने लगा। एक रात उठे, तो देखा सारी सुंदर स्त्रियां उनके आसपास पड़ी हैं। किसी के मुंह से लार बह रही है, किसी की आंख में कीचड़ जमा है, किसी का मुंह खुला है और घर्राटा निकल रहा है, वे एकदम भागे वहां से। उन्होंने कहा कि इनके पीछे मैं दीवाना हुआ हूं!
कोई भी ऋषि-मुनि हो जाए ऐसी अवस्था में! धन था, स्त्रियां थीं, वैभव था, ऊब गए। दिखायी पड़ गया, इसमें कुछ भी नहीं है। एक बात साफ हो गयी कि रोज मौत करीब आ रही है। और यह सब व्यर्थ है। सत्य को खोजना जरूरी है। अमृत को खोजना जरूरी है।
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