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अकंप चैतन्य ही ध्यान
तो बुद्ध तो इस कारण संन्यासी हुए। वे तो मेरे ही संन्यासी हैं। लेकिन बुद्ध से प्रभावित होकर जो संन्यासी हुए, वे मेरे संन्यासी नहीं हैं। उन्होंने बुद्ध की रौनक देखी, चमक देखी, प्रतिभा देखी, बुद्ध की शांति देखी; ईर्ष्या जगी, लोभ जगा, मन में उनके भी हुआ—ऐसे ही शांत हम भी हो जाएं। लेकिन उन्हें पता नहीं, इस शांति के पीछे बड़ा गहरा अनुभव है भोग का। एक बड़ा रेगिस्तान पार कर के आए हैं वे। एक बड़ा अनुभव का विस्तार है पीछे। और तुम जल्दबाजी नहीं कर सकते।
तुम, अगर तुम ठीक समझो तो जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह वही है जो बुद्ध के जीवन का सार है। मैं तुमसे वह नहीं कह रहा हूं जो बुद्ध कहते हैं। मैं तुमसे वह कह रहा हूं जो बुद्ध हैं।
इसलिए मैं कहता हूं, भागो मत। जहां हो, जो क्षण मिला है, उसे इतनी त्वरा से भोग लो कि तुम उसके आर-पार देखने में समर्थ हो जाओ। जीवन पारदर्शी हो जाए। बस वहीं से संन्यास की सुवास उठनी शुरू होती है। और तब भागने की भी कोई जरूरत नहीं है। ... रवींद्रनाथ का एक गीत है, जिसमें बुद्ध वापस लौटते हैं, और यशोधरा उनसे पूछती है कि मैं सिर्फ एक ही सवाल तुमसे पूछने को रुकी हूं। बारह वर्ष तुम्हारी प्रतीक्षा की है, बस एक सवाल के लिए, कि तुमने जो जंगल में भागकर पाया, क्या तुम अब कह सकते हो कि यहीं रहते तो नहीं मिल सकता था? अब तो तुम्हें मिल गया। अब मुझे एक ही सवाल तुमसे पूछना है कि जो तुमने वहां पाया, क्या वह यहीं नहीं मिल सकता था? और रवींद्रनाथ ने कविता में बुद्ध को मौन रखा है। कुछ कहलवाया नहीं। कहें भी क्या? बात तो ठीक ही यशोधरा कह रही है, वह यहां भी मिल सकता था।
सत्य सब जगह है। समझ चाहिए। और समझ अनुभव का सार है। इसलिए मैं तुम्हें अनुभव से तोड़ना नहीं चाहता। चाहता हूं कि तुम जितनी जल्दी अनुभव में उतर जाओ, जितने गहरे उतर जाओ, उतनी ही जल्दी अतिक्रमण का क्षण करीब आ जाए। संन्यास बहुतं पास है। संसार का अनुभव तुम्हारा पूरा होनी चाहिए। संन्यास संसार के विपरीत नहीं है। संन्यास संसार के पार है। विपरीत नहीं, आगे। जहां संसार समाप्त होता है, जहां संसार का मील का पत्थर आता है, जहां लिखा है-यहां समाप्त होती है सीमा—वहीं संन्यास शुरू होता है। लेकिन संसार पूरा करना ही होगा। अगर अभी पूरा न करोगे, फिर लौटकर आओगे। ____ बुद्ध को भी शायद तुमने सुना हो। पच्चीस सौ साल हो गए। तुम पच्चीस बार लौट चुके। तुम मुझे भी सुन रहे हो। अगर मेरी बात तुमने न गुनी, तुम फिर-फिर लौटकर आओगे। परमात्मा तुम्हें वापस इस स्कूल में भेजता ही रहेगा, जब तक तुम उत्तीर्ण ही न हो जाओ। इसलिए मैं कहता हूं, जल्दी करो। भागने की नहीं, भोगने की। जागने की। अनुभव को निरीक्षण करने की। अगर ठीक से अनुभव किया जाए
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