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________________ अकंप चैतन्य ही ध्यान इतना कारगर नहीं है। इसलिए बुद्ध तो होते हैं, लेकिन कितने लोग उनके पीछे बुद्धत्व को उपलब्ध हो पाते हैं ? ना के बराबर । क्योंकि दिशाएं बड़ी भिन्न-भिन्न हैं। बुद्ध तो महल छोड़कर भिखारी होते हैं । और दूसरा आदमी भिखारी ही था और बुद्ध के पीछे हो लेता है। उन दोनों के अनुभव अलग हैं। बुद्ध के त्याग में तो भोग का अनुभव छिपा है । भिखारी के त्याग में कुछ भी नहीं, भिक्षापात्र छोड़ रहा है। उसके पास कुछ त्याग को था भी नहीं । उसका त्याग धोखा है। तो मैं तुमसे अतिरेक में जीने को कहता हूं। जीवन है जब तक उसे पूरा-पूरा जी लो। जीते ही तुम उससे मुक्त हो जाओगे । तर्के - मय ही इसे समझना शेख इतनी पी है कि पी नहीं जाती तर्के - मय ही इसे समझना शेख ऐ धर्मगुरु, इसको तू शराब का त्याग ही समझ। इतनी पी है कि पी नहीं जाती अब इतनी पी ली है कि अब पीने का कोई उपाय न रहा । जीवन को इतना पी डालो कि पीने का फिर कोई उपाय ही न रह जाए। पीकर ही तुम मुक्त होओ। लेकिन अगर तुम्हें बुद्ध की बात ठीक जमती हो, तो मजे से उस मार्ग पर चले जाओ। लेकिन ध्यान रखना अपना, कि क्या तुम्हारे पास बुद्ध जैसा जीवन का अनुभव है ? भोग का ऐसा गहन अनुभव है ? तुम्हें पता है बुद्ध के जीवन की कहानी ? ज्योतिषियों ने कहा कि यह छोड़कर संन्यासी हो जाएगा। तो बाप चिंतित हुआ । शुद्धोदन ने बड़े-बड़े ज्ञानियों से सलाह ली कि क्या करें ? 1 निश्चित ही वे ज्ञानी भगोड़े होंगे। शास्त्रों में यह कहा नहीं है, यह मेरी दृष्टि है । वे ज्ञानी भगोड़े होंगे, क्योंकि अक्सर ज्ञानी भगोड़े होते हैं । त्यागी महात्माओं को बुला लिया होगा। उनसे पूछा । वे कोई सम्राट न थे, जिन्होंने संसार जानकर छोड़ा था । . उन्होंने जीवन को बेबसी में छोड़ा होगा, असहाय अवस्था में छोड़ा होगा। पा नहीं सके इसलिए छोड़ा होगा। अंगूर खट्टे थे, पहुंच नहीं सके, इसलिए पहुंच जाते तो उन्होंने भी बड़ी चेष्टा की थी ! उन्होंने सलाह दी कि आप ऐसा करो, सब भोगों का इंतजाम कर दो। भोग में डूब जाएगा, संन्यासी अपने आप न होगा। इससे मैं कहता हूं कि वे त्यागी रहे होंगे। अगर बुद्ध के बाप ने मुझसे पूछा होता तो मैं कहता कि भोग से इसको दूर रखो । स्त्रियों को पास मत आने दो। हां, फिल्म दिखानी हो दिखा दो । पर्दे पर दिखायी पड़े, छू न सके स्त्री को। क्योंकि पर्दे से सपना नहीं मिटता, बनता है। स्त्री को पास मत आने देना । इसको सुख-सुविधा में मत डालो। गिट्टियां तुड़वाओ, सड़क पिटवाओ, मेहनत-मजदूरी करवाओ, इसको 99
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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