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________________ एस धम्मो सनंतनो शक-शुबहा नहीं है। उस ज्ञान की अवस्था में आदमी में एक जादू हो जाता है। वह जिसकी तरफ देख ले, वही खिंचा चला आता है। वह जिसको छू दे, उसी के भीतर एक नया आयाम खुल जाता है। तुमने बुद्ध को सुन लिया, और बुद्ध ने कहा कि सब व्यर्थ है। बुद्ध यह जानकर कह रहे हैं, धन उन्होंने जाना है कि व्यर्थ है। तुमने केवल धन की कामना की है, जाना-वाना नहीं कि व्यर्थ है। जानने के लिए तो होना पहले चाहिए। वह है ही नहीं तुम्हारे पास। भिक्षापात्र लिए खड़े हो। सम्राट थे बुद्ध। वे छोड़कर रास्ते पर आ गए। तुम रास्ते पर ही थे, और तुमने बुद्ध की वाणी सुन ली, और तुम प्रभावित हो गए, तुम मुश्किल में पड़ोगे। क्योंकि तुम्हारा त्याग बुद्ध का त्याग नहीं हो सकता। तुम्हारे त्याग में भोग छिपा ही रहेगा। तब क्या होगा? तब यह होगा कि तम त्याग भी करोगे और सोचोगे, त्याम के बाद स्वर्ग मिलने वाला है। स्वर्ग में भोगेंगे अप्सराएं, महल। तुम्हारे ऋषि-मुनि यही कर रहे हैं। इंद्र अगर उनसे डर जाता है तो अकारण नहीं। क्योंकि वे मुक्त होने की इच्छा नहीं रखे हुए हैं, वे इंद्र के सिंहासन पर बैठने की इच्छा लिए बैठे हैं। इंद्र का सिंहासन डोलने लगता है पुराणों में, वह तो प्रतीक है। वह यह बता रहा है कि ऋषि-मुनि वस्तुतः ऋषि-मुनि नहीं हैं। वे भी आकांक्षा कर रहे हैं स्वर्ग में सिंहासन की। और जहां आकांक्षा है, वहां प्रतिस्पर्धा है। और जो पहले से सिंहासन पर बैठा है वह जरूर घबड़ाएगा। अब तुम अगर राष्ट्रपति होना चाहो तो राष्ट्रपति घबड़ाएगा, कि ये आने लगे सज्जन, डरो! अब तुम अगर अप्सराओं की कामना करने लगे कि उर्वशी को भोगना है, तो इंद्र घबड़ाएगा। उसकी उर्वशी छीनने की चिंता में तुम लगे हो। वह तुम्हें डंवाएगा, डिगाएगा, आएगा। पुराण की कथाएं अर्थपूर्ण हैं। वे इतना ही कह रही हैं कि ऋषि अभी ऋषि नहीं। अन्यथा इंद्र को क्या प्रतिस्पर्धा उससे होती? यह मुक्त होना ही नहीं चाहता था। यह तो त्याग का सौदा कर रहा है। यह जो संसार में नहीं पा सका, संसार छोड़कर पाने की कोशिश कर रहा है। पर इसकी आकांक्षा तो वही की वही है। ___ वासना बिना पके नहीं मरती। और जब पककर मरती है तभी मरती है। फिर पीछे दाग भी नहीं छोड़ जाती। तब तुम ऐसे निर्दोष निकलते हो, ऐसे ताजे, जैसे सुबह-सुबह अभी-अभी खिला हुआ फूल हो। ___ तो मैं तुमसे कहता हूं, भागना मत। जीवन को जानना है, जीना है। मैं कोई चार्वाकवादी नहीं हूं। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि जीवन के पार कुछ भी नहीं है। मैं कह रहा हूं, जीवन के पार कुछ है, लेकिन जीवन तो पार करो पहले। जीवन के पार जो है वह तभी दिखायी पड़ेगा जब जीवन से पार हो जाओगे। आधे से भाग गए, सीमा तक न पहुंचे और भाग गए, तो तुम जीवन में ही भटकते रहोगे। सीमा के पार ही अतिक्रमण संभव है तो मेरी दृष्टि भोग के माध्यम से त्याग तक जाने की है। और दूसरा कोई माध्यम
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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