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अकंप चैतन्य ही ध्यान नहीं हो, वहां समझने से कुछ लाभ नहीं। जहां हो, तुम जहां खड़े हो, वहां से रास्ता चाहिए, मंजिल नहीं। वहां तो अल्लाह अलग है, राम अलग है।
हां, मंजिल पर जो पहुंच गए हैं वहां सब एक है। लेकिन वहां कोई भजन थोड़े ही कर रहा है, अल्लाह ईश्वर तेरे नाम। मंजिल पर तो सब खो गया। वहां अल्लाह भी खो गए हैं. राम भी खो गए। जब अल्लाह ही मिल गया, राम ही मिल गया, तो फिर न राम बचे न अल्लाह बचे। वहां तो सब शास्त्र खो जाते हैं। लेकिन वह उपलब्धि की बात है ।
तालमेल तुम बिठालना मत। मेरी तो दृष्टि यही है कि तुम भरपूर जीओ। तुम ऐसे जीओ जैसे बाढ़ आयी नदी होती है। तुम जीवन को उसकी त्वरा में जीओ। तुम ऐसे जीओ जैसे किसी ने मशाल को दोनों तरफ से जलाया हो। तुम जीने में कंजूसी मत करो।
मैं तुमसे त्याग को नहीं कहता। मैं तुमसे कहता हूं, तुम भोग में इतने गहरे उतरो कि भोग का अनुभव ही त्याग बन जाए। तेन त्यक्तेन भुंजीथाः । तुम ऐसा भोगो कि तुम जान लो कि भोग व्यर्थ है । और भोग छोड़ना न पड़े। तुम्हारा ज्ञान ही भोग का छूटना हो जाए। तुम जीवन से भागो मत, भगोड़े मत बनो। तुम जीवन में जमकर खड़े हो जाओ, ताकि जीवन से आंखें मिल जाएं और तुम जीवन को पूरी तरह देख ही लो कि यह सपना है । फिर सपने को छोड़ना थोड़े ही पड़ता है, सपना तो छूट ही गया। जो व्यर्थ है, दिखायी पड़ते ही कि व्यर्थ है, गया । छोड़ने का अगर फिर भी सवाल रहे, तो समझना अभी व्यर्थता दिखायी नहीं पड़ी। अभी थोड़ी सार्थकता दिखायी पड़ती है। इसलिए छोड़ने का सवाल है। सार्थक को छोड़ना पड़ता है । व्यर्थ छूट जाता है।
तो मैं तुमसे कहता हूं, जीवन को उसकी परिपूर्णता में जानो। तुम बहुत बार अनेक लोगों के प्रभाव में आ गए हो, और कच्चे ही जीवन को छोड़कर भाग गए हो। यह कोई पहला मौका नहीं है। क्योंकि जमीन पर तुम नए नहीं हो। बड़े प्राचीन • हो । बहुत बार बहुत बुद्धों के प्रभाव में तुम आ गए हो। जो बुद्ध की घटा था वह तो परिपूर्ण जीवन से घटा था । यह थोड़ा समझो।
बुद्ध तो सम्राट थे। सुंदरतम स्त्रियां उनके पास थीं। और अगर उतनी सुंदर स्त्रियों के बीच उन्हें दिखायी पड़ गया कि सौंदर्य सब सपना है, तो कुछ आश्चर्य नहीं। अब एक भिखारी है, जिसने स्त्रियों को केवल दूर से देखा है। जिसे कोई स्त्री उपलब्ध नहीं हुई। या उपलब्ध भी हुई हो तो एक साधारण सी स्त्री उपलब्ध हुई है, जिसमें स्त्री होना नाममात्र को है, जिससे उसके सपने नहीं भरे; न हृदय भरा, न प्राण तृप्त हुए, न भोग गहरा गया। आकांक्षा घूमती रही, भटकती रही सब तरफ। हजार-हजार चेहरे आकांक्षा में उभरते रहे, सपनों में जगते रहे ।
अब यह बुद्ध की बातें सुन ले यह आदमी । तो बुद्ध प्रभावी हैं, इसमें कोई
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