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एस धम्मो सनंतनो
मगर दोनों छोर हैं। बद्ध कहते हैं, इधर हट आओ। मैं कहता हूं, उधर बढ़ जाओ।
तालमेल मत बिठालना। नहीं तो तुम बीच में खड़े हो जाओगे। तुम कहोगे, अब यह भी कहते हैं कि बिलकुल छोड़ दो। मैं कहता हूं, कुछ छोड़ने की जरूरत नहीं। तुम कहोगे, आधा पकड़ो, आधा छोड़ो। इधर बीच में खड़े हो जाओ। यह समन्वय, यह तालमेल तुम्हें मार डालेगा। कोई जरूरत नहीं है तालमेल बिठालने की। बुद्ध परिपूर्ण हैं। मेरी बात जोड़ने से कुछ फायदा न होगा, नुकसान होगा।
प्रत्येक व्यवस्था पूरी है। बुद्ध ने जो दिया है, वह पूरी व्यवस्था है। उसमें रत्तीभर कमी नहीं है। वह यंत्र अपने आप में परिपूर्ण है। मेरी बातों को उसमें मत जोड़ देना। मैं तुम्हें जो दे रहा हूं, वह परिपूर्ण है। उसमें बुद्ध को कुछ जोड़ने की जरूरत नहीं है।
दुनिया के सारे धर्म अपने आप में पूरी इकाई हैं। और झंझट तब खड़ी होती है, जब तुम्हें कोई समझाने वाला मिल जाता है और कहने लगता है, अल्लाह ईश्वर तेरे नाम, सबको सनमति दे भगवान। तब तालमेल शुरू हुआ। उपद्रव शुरू हुआ। अल्लाह पर्याप्त है। उसमें राम को जोड़ने की कोई भी जरूरत नहीं। राम पर्याप्त हैं। उसमें अल्लाह को जोड़ने की कोई जरूरत नहीं। __ और महात्मा गांधी भी जोड़ न पाए, कहते रहे। जुड़ सकता नहीं। मरते वक्त जब गोली लगी, तो अल्लाह न निकला, राम निकला। उस वक्त दोनों निकल जाते, अल्लाहराम! वह नहीं हुआ। वे जुड़ते नहीं। वे इकाइयां अलग-अलग हैं। मरते वक्त जब गोली लगी, तब वह भूल गए, अल्लाह ईश्वर तेरे नाम। तब राम ही निकला। वही निकट था। अल्लाह तो राजनीति थी। राम हृदय था। अल्लाह तो जिन्ना को समझाने को कहे जाते थे। भीतर तो राम की ही गूंज थी। और जिन्ना को यह चालबाजी दिखायी पड़ती थी, इसलिए उसको कुछ असर न पड़ा। __ मेरे पास तुम तालमेल बिठालने की बात ही छोड़ दो। मैं कोई समन्वयवादी नहीं हूं। मैं कोई सारे धर्मों की खिचड़ी नहीं बनाना चाहता हूं। प्रत्येक धर्म का भोजन अपने आप में परिपूर्ण है। वह तुम्हें पूरी तृप्ति देगा। जब मैं बुद्ध पर बोल रहा हूं, या जब मैं ईसा पर बोलता हूं, या महावीर पर बोलता हूं, तो मेरा प्रयोजन यह नहीं कि तुम इन सबको जोड़ लो। इन पर मैं अलग-अलग बोल रहा हूं इसीलिए, ताकि हो सकता है किसी को बुद्ध की बात ठीक पड़ जाए, किसी को महावीर की ठीक पड़ जाए, किसी को कृष्ण की ठीक पड़ जाए। जिसको जहां से ठीक पड़ जाए। रास्ते थोड़े ही गिनने हैं। गुठलियों का थोड़े ही हिसाब रखना है। आम खाने हैं। तो तुम तालमेल बिठाओगे किसलिए? ___ तुम्हें बुद्ध की बात जमती है, फिक्र छोड़ो मेरी। कुछ लेना-देना नहीं मुझसे फिर। फिर तुम उसी मार्ग पर चले जाओ। वहीं से तुम्हें परमात्मा मिल जाएगा। वह रास्ता परिपूर्ण है। उसमें रत्तीभर जोड़ना नहीं है। ___ अगर तुम्हें बुद्ध की बात नहीं जमती, मेरी बात जमती है, तो भूल जाओ सब
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