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________________ अकंप चैतन्य ही ध्यान बुद्धों को। क्योंकि उनकी याददाश्त भी बाधा बनेगी । औरोमन का एक बड़े से बड़ा उपद्रव यही है कि वह कभी किसी एक दिशा के प्रति पूरा समर्पित नहीं होता। एक कदम बाएं जाते हो, एक कदम दाएं जाते हो, कभी आगे जाते, कभी पीछे जाते । जिंदगी के आखिर में पाओगे, वहीं खड़े-खड़े घिसटते रहे हो जहां पैदा हुए थे। गति ऐसे नहीं होती। गति तो एक दिशा में होती है। चुन लिया पश्चिम, तो पश्चिम सही । फिर भूल जाओ बाकी तीन दिशाएं हैं भी । माना कि हैं । और कुछ लोग उन दिशाओं में भी चल रहे हैं, वह भी माना । लेकिन वे दिशाएं तुमने छोड़ दीं। तुम अब पश्चिम जा रहे हो, तो तुम पश्चिम ही जाओ। ऐसा न हो कि एक हाथ पूरब जा रहा है, एक पश्चिम जा रहा है। एक टांग दक्षिण जा रही है। तालमेल तो न बैठेगा, उस तालमेल की चेष्टा में तुम बुरी तरह खंडित हो जाओगे। और यही गति मनुष्य की हो गयी है। आज से पहले, जब दुनिया इतनी एक-दूसरे के करीब न थी, और जमीन एक छोटा सा गांव नहीं हो गयी थी, और जब एक धर्म से दूसरा धर्म परिचित नहीं था, तब बहुत लोगों ने परमज्ञान को पाया। जैसे-जैसे जमीन सिकुड़ी और छोटी हुई, और एक-दूसरे के धर्म से लोग परिचित हुए, वैसे ही धार्मिकता कम हो गयी। उसका कारण यह है कि सभी के मन में सभी दिशाएं समा गयीं। कुरान भी पढ़ते हो तुम, गीता भी पढ़ते हो । न तो गीता में डूब पाते, न कुरान में डूब पाते। जब कुरान पढ़ते हो तब गीता की याद आती है, जब गीता पढ़ते हो तब कुरान की याद आती है। और तालमेल बिठालने में लगे रहते हो । नहीं, दुनिया का प्रत्येक धर्म अपने आप में समग्र है। न उसमें कुछ घटाना है, न उसमें कुछ जोड़ना है। वह पूरी व्यवस्था है। तुम्हें जंच जाए, उसमें उतर जाना है। और बाकी सबंको भूल जाना है। यही तो अर्थ है गुरु चुनने का कि तुमने देख लिया, पहचान लिया; खोजा, सोचा, चिंतन किया, मनन किया, पाया कि किसी से मेरा तालमेल बैठता है। दो व्यवस्थाओं में तालमेल नहीं बिठालना है। तुममें और किसी व्यवस्था में तालमेल बैठ जाए इसकी समझ पैदा करनी है कि हां, इस आदमी से मन भाता है, रस लगता है। और हर आदमी को अलग-अलग रस लगेगा। अब मीरा को तुम बुद्ध में लगाना चाहो तो न लगा सकोगे। और अगर तुम सफ़ल हो जाओ, तो मीरा का दुर्भाग्य होगा; वह भटक जाएगी। उसे तो कृष्ण से ही लग सकता था। नाच उसके रोएं - रोएं में समाया था। बुद्ध उस नाच को मुक्त नहीं कर सकते थे। बुद्ध की व्यवस्था में नाच की सुविधा नहीं है। वह उनके लिए है, जो नाच छोड़ने में रस रखते हैं। वह उनके लिए है, जो गति छोड़ने में रस रखते हैं। मीरा को न जमती बात । बुद्ध की कोई बांसुरी ही नहीं है । बुद्ध के पास नाचने में बात - मौजूं होती। 95
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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