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अकंप चैतन्य ही ध्यान
नहीं देता, ताकि तुम नियम पालकर धोखा न दे सको। मैं तुम्हें नियम नहीं देता, सिर्फ एक सूत्र देता हूं। शास्त्र नहीं देता, सिर्फ सूत्र देता हूं-होश।
महावीर से किसी ने पूछा है, साधु कौन, असाधु कौन? तो महावीर ने वह नहीं कहा जो जैन-मुनि कह रहे हैं कि जो दिन को भोजन करे वह साधु, जो रात को भोजन करे वह असाधु; जो पानी छानकर पीए वह साधु, जो पानी छानकर न पीए वह असाधु । नहीं, महावीर ने विस्तार की बातें न कहीं। महावीर ने एक लुहार की बात कही। महावीर ने कहा, असुत्ता मुनिः सुत्ता अमुनिः। जो सोया-सोया जी रहा है, वह असाधु; जो जागा-जागा जी रहा है-असुत्ता-वह साधु, वह मुनि।
यही मैं तुमसे कहता हूं। यही बुद्ध ने भी कहा है। लेकिन पच्चीस सौ वर्ष का अनुभव मेरे पास है जो उनके पास नहीं था। अगर आज बुद्ध हों तो वे यह नहीं कहेंगे कि पहले देखना मत, छूना मत। आज वे पहले ही कह देंगेः आनंद, अब व्यर्थ की बकवास में न जा-तू इतने प्रश्न पूछे, फिर मैं असली बात कहूं-पहले ही कहे देता हूं, होश रखना।
तीसरा प्रश्नः
बुद्ध कहते हैं, अल्पतम पर, अत्यंत जरूरी पर ही जीयो। आप कहते हैं, कंजूसी से, कुनकुने मत जीयो, अतिरेक में जीयो। 'हम दोनों के बीच कैसा तालमेल बिठाएं?
तालमेल बिठाने को कहा किसने? बुद्ध ठीक लगें, बुद्ध की बात मान
-लो। मैं ठीक लगू, मेरी बात मान लो। तालमेल बिठाने को कहा किसने? एलोपैथी, होमियोपैथी में तालमेल बिठालना भी मत। तालमेल की चिंता बड़ी गहरी है तुम्हारे मन में, कि किसी तरह तालमेल बिठा लें। तम्हें लेना-देना क्या है तालमेल से? जो दवा तुम्हारे काम पड़ जाए, उसे स्वीकार कर लेना। तुम्हें कोई सारी दुनिया की पैथीज में तालमेल थोड़े ही बिठालना है।
बुद्ध ने कहा है, जीयो न्यूनतम पर, यह एक छोर। क्योंकि छोर से ही छलांग लगती है। किसी चीज के मध्य से न कूद सकोगे, छोर पर आना पड़ेगा। अगर इस छत से कूदना है, तो कहीं भी छोर पर आना पड़ेगा, वहां से छलांग लगेगी। हर चीज के दो छोर हैं।
बुद्ध ने कहा, अल्पतम, न्यूनतम, कम से कम पर आ जाओ, वहां से छलांग लग जाएगी। मैं कहता हूं, अतिरेक। अंतिम पर आ जाओ, वहां से छलांग लग जाएगी। बुद्ध कहते हैं, दीन, दरिद्र, भिक्षु हो जाओ। मैं कहता हूं, सम्राट बन जाओ।