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________________ एस धम्मो सनंतनो स्त्री को छुओ, धन कमाओ, मकान में रहो, बाजार में बैठो, कोई अंतर नहीं पड़ता। होश न सधा–आंख बंद रखी, जंगल में भाग गए, धन न छुआ, नंगे खड़े हो गए, सब त्याग दिया, तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता। होश से ही क्रांति होती है। __इसलिए होश अकेला नियम है, एकमात्र नियम। एस धम्मो सनंतनो। यही एकमात्र सनातन नियम है। यही एकमात्र सनातन धर्म है कि तुम जागकर जीना, और मैं तुमसे कुछ भी नहीं मांगता। विस्तार की बातों में तो तुम बहुत बार धोखा दे गए हो। मैं तुम्हें विस्तार का मौका ही नहीं देता। बस एक छोटा सा शब्द देता हूं: अवेयरनेस, होश। ताकि तुम साफ रहो। सधे तो साफ रहो, न सधे तो साफ रहो। दोनों के बीच में धोखा देने की सुविधा नहीं देता। इसलिए मैंने कोई नियम नहीं दिए। तुम यह मत समझना कि मैंने नियम नहीं दिए। नियम दिया है। नियम नहीं दिए हैं। और नियम काफी है। कहावत है, सौ सुनार की एक लुहार की। मेरा नियम लुहार वाला है। डिटेल्स और विस्तार की बातों में मैं नहीं पड़ा हूं। क्योंकि तुम उनमें काफी कुशल हो गए हो। मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, ध्यान तो ठीक, लेकिन कुछ और बताएं कि हम क्या करें, क्या खाएं, क्या पीएं, क्या पहनें, कब सोएं, कब जागें? ये व्यर्थ की बातें तुम्हीं सोच लेना। तुम सिर्फ ध्यान करो। अगर तुम्हारा मन शांत और जागरूक होता जाए, तो तुम खुद ही पाओगे कि और नियम अपने आप उसके पीछे आने लगे। __ होशपूर्ण व्यक्ति अपने आप शराब न पीएगा। क्योंकि शराब तो होश के विपरीत है। वह तो होश को नष्ट कर देगी। उसे नियम देने की जरूरत नहीं कि शराब मत पीयो। होशपूर्ण व्यक्ति अपने-आप मांसाहार छोड़ देगा। क्योंकि जिसको जरा सा भी होश आया उसे इतना न दिखायी पड़ेगा कि दूसरे का जीवन लेना सिर्फ पेट भरने के लिए! अगर इतना भी न दिखायी पड़े होश में तो वह होश दो कौड़ी का है। उसका क्या मूल्य है? होशपूर्ण व्यक्ति क्या चोरी करेगा? किसी की जेब काटेगा? होशपूर्ण व्यक्ति को अणुव्रत देने की जरूरत नहीं है कि चोरी मत करो, हिंसा मत करो, बेईमानी मत करो। ये विस्तार की बातें तो इसीलिए देनी पड़ती हैं कि होश नहीं है, होश खो गया है। और ये सब तुम पूरी कर सकते हो। इनमें कुछ अड़चन नहीं है। तुम दान कर सकते हो, ईमानदारी कर सकते हो, सेवा कर सकते हो, बस एक चीज में अड़चन आती है-तुम होश नहीं साध सकते। __ और अगर मैं तुम्हें एक हजार एक विस्तार की बातें दे दूं, तो तुम कहोगे, एक हजार एक में से एक हजार का तो हम पालन कर रहे हैं, अगर एक ध्यान का नहीं भी कर रहे, तो क्या हर्जा है? मैं तुम्हें एक ही देता हूं, ताकि जीवन-स्थिति साफ रहे। पाखंड के पैदा होने का उपाय न हो। मैं तुम्हें नियम नहीं देता, ताकि तुम नियम तोड़ न सको। मैं तुम्हें नियम 92
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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