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________________ अकंप चैतन्य ही ध्यान हूं। लेकिन कोई क्रांति नहीं होती। तो जीसस ने कहा, ठीक है। तब तुम एक काम करो। तुम्हारे पास जो भी है, तुम जाओ घर, उसे बांट आओ और मेरे पीछे चलो। ___ उस आदमी ने कहा, यह जरा मुश्किल है। तुम्हारे पीछे चलना, और सब बांट कर? वह आदमी उदास हो गया। वह बड़ा धनी था। उसने कहा कि नहीं; कोई ऐसी बात बताओ जो मैं कर सकू। जीसस ने कहा, जो तुम कर सकते हो उससे तुम बदलोगे न। क्योंकि वह तो तुम कर ही रहे हो। अब मैं तुमसे वह कहता हूं, जो तुम कर नहीं सकते। अगर किया, तो बदल जाओगे। अगर नहीं किया, तो तुम जैसे हो वैसे हो। जाओ सब बांट दो। उसने कहा, मेरे पास बहुत धन है। इतने कठोर मत हों। और अभी बहुत काम उलझे हैं, मैं एकदम आपके पीछे आ नहीं सकता। जीसस ने अपने शिष्यों की तरफ देखा और वह प्रसिद्ध वचन कहा, जो तुमने बहुत बार सुना होगा, कि सुई के छेद से ऊंट निकल जाए लेकिन धनी आदमी स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न कर सकेगा। . . धनी नियम तो पाल लेता है, लेकिन धार्मिक नहीं हो पाता। धनी को सुविधा है नियम पालने की। वह रोज दिन में तीन दफे मंदिर जा सकता है, या पांच दफे नमाज पढ़ सकता है। गरीब तो पांच दफे नमाज भी नहीं पढ़ सकता। फुर्सत कहां है? समय कहां? मंदिर कैसे जाए? दफ्तर जाए, फैक्ट्री जाए, खेत पर जाए कि मंदिर जाए। रोज गीता नहीं पढ़ सकता। समय कहां? भजन नहीं कर सकता, क्योंकि पेट में भूख है। धनी तो भजन कर सकता है, पूजा कर सकता है। खदन भी करने की इच्छा हो तो नौकर रख सकता है। मजदूर रख सकता है पूजा करने को। नौकर-चाकर रखे हैं लोगों ने, उनको पुजारी कहते हैं। उनसे कहते हैं, तुम पूजा कर दो। उनको तनख्वाह मिलती है। पूजा का फल मालिक को मिलता है। नौकर रख ले सकते हो। __कितनी बेहूदगी की बात है। प्रेम और पूजा के लिए भी नौकर! उसे भी तुम दूसरे से करवा लेते हो पैसे के बल पर। तो अगर तुमने एक पुजारी को सौ रुपया महीना दिया, और उसने रोज आकर तीन दफा भगवान की पूजा की, ती अगर ठीक से समझो तो हिसाब ऐसा है कि तुमने भगवान को सौ रुपए दिए। और क्या दिया? तुम्हारे पास थे, तुम दे सकते थे। और शायद यह सौ रुपए देकर तुम करोड़ों पाने की आकांक्षा कर रहे हो। यह भी शायद रिश्वत है। ___ नियम तो पूरे किए जा सकते हैं। नियम के पूरे करने से कोई धार्मिक नहीं होता। पाखंडी हो जाता है, हिपोक्रेट हो जाता है। __ इसलिए मैंने कोई नियम तुम्हें नहीं दिए। या तो तुम धार्मिक होओ, या अधार्मिक। बीच की मैंने तुम्हें सुविधा नहीं दी है। इसलिए मैं तुम्हें वही आखिरी बात कहता हूं जो बुद्ध ने आनंद को कही, होश साधना। आंख बंद करना, न करना; क्या फर्क पड़ता है। मेरी दृष्टि में ऐसा है कि अगर तुमने होश साधा–आंख खुली रखो,
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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