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ताओ उपनिषद भाग ६
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आत्मवंचना परिपूर्ण हो गई। अब इसे हिलाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। और जो भी हिलाएगा वह तुम्हें शत्रु जैसा
मालूम पड़ेगा। क्योंकि वह तुमसे छीने ले रहा है तुम्हारी मुस्कुराहट; वह तुमसे छीने ले रहा है तुम्हारा प्रेम का सदगुण, तुम्हारी अहिंसा, तुम्हारी दया, तुम्हारी करुणा, तुम्हारा दान । जो व्यक्ति भी तुम्हें चेताएगा कि यह सब धोखा है जो तुम कर रहे हो, वह शत्रु मालूम पड़ेगा। और जो तुम्हारी खुशामद करेगा और कहेगा कि बिलकुल ठीक हो, तुम जैसा सदगुणी आदमी नहीं, वह तुम्हें मित्र मालूम पड़ेगा।
इसलिए तो दुनिया में खुशामद इतनी कारगर होती है। खुशामद से हर आदमी प्रभावित होता है। अगर तुम कोई ऐसा आदमी कहीं पा लो जो खुशामद से प्रभावित न होता हो तो समझना कि वह प्रामाणिक आदमी है। खुशामद का मतलब है कि तुम जो धोखा अपने को दे रहे हो हम भी उसमें साथी सहयोगी हैं। तुम दो इंच धोखा दे रहे हो, हम चार इंच सहयोगी हैं। तब तुम्हारे धोखे को आस-पास से लोग भरने लगते हैं। और एक पारस्परिक षड्यंत्र चलता है समाज कि तुम हमारे धोखे भरो, हम तुम्हारे धोखे भरेंगे; तुम हमारी झूठ को सम्हालो, हम तुम्हारी झूठ को सम्हालेंगे।
मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन काफी हाऊस में बैठ कर कह रहा था कि आज गजब हो गया। मछली पकड़ने गया था, एक मछली मैंने पकड़ी जिसका वजन तेरह मन ! किसी को भरोसा न आया। एक दूसरे आदमी ने कहा, यह कुछ भी नहीं है। मैं भी गया था मछली मारने। मछली तो नहीं पकड़ पाया, बंसी में कोई और चीज उलझ गई। खींचा ऊपर तो देखा एक लालटेन है। और लालटेन पर लिखा हुआ है कि महान सिकंदर की लालटेन है यह बड़ी प्राचीन । और इतना ही नहीं कि सिकंदर की लालटेन मिल गई, भीतर अभी भी ज्योति जल रही थी। नसरुद्दीन ने कहा, ऐसा करो भाई, हम अपनी मछली का वजन थोड़ा कम कर लेते हैं, तुम कम से कम यह लालटेन की बत्ती बुझा दो ।
धोखे हैं। एक पारस्परिक हिसाब है कि कितनी दूर तक धोखे में लोग साथ देंगे।
इस धोखे के जाल को हिंदुओं ने माया कहा है। तुम यह न समझना कि जो संसार बाहर है वह माया है। ये वृक्ष और चांद-तारे, ये माया नहीं हैं। माया तो वह संसार है जो तुमने झूठ के आधार पर अपने चारों तरफ खड़ा कर रखा है। और जब माया से तुम मुक्त होओगे तो ऐसा नहीं है कि ये झाड़, चांद-तारे विलीन हो जाएंगे। सिर्फ तुमने. जो संसार बना रखा था झूठ का, वह विलीन हो जाएगा। और जब तुम्हारे पास इतने झूठ हैं; पर्त दर पर्त झूठ ही झूठ इकट्ठे हो गए हैं। अगर आदमी को उघाड़ो तो प्याज की पर्तों जैसे झूठ निकलने शुरू हो जाते हैं। खोजना ही मुश्किल है कि तुम्हारी मूल स्वभाव की पर्त कहां है । इतनी पर्तें हैं। इतना जाल तुमने अपने चारों तरफ खड़ा कर रखा है।
लेकिन जिनको भी लोगों के मन की थोड़ी समझ है, तुम उन्हें धोखा न दे पाओगे। क्योंकि वस्तुतः उनका मापदंड यही है कि जो तुम दिखाते हो, निन्यानबे प्रतिशत मौके यही हैं कि वह तुम हो नहीं सकते। अगर तुम ज्यादा मुस्कुराते हो तो उसका कारण यही होगा कि भीतर बहुत उदासी है। अन्यथा इतने मुस्कुराने की जरूरत न थी । अगर तुम ऊपर से बड़ा प्रेम दिखलाते हो तो उसका निन्यानबे प्रतिशत कारण तो यही होगा कि भीतर तुम घृणा से भरे हो । और उस घृणा को छिपाने का और कोई उपाय नहीं है। अन्यथा तुम्हारा वीभत्स रूप दिखाई पड़ेगा। अन्यथा तुम्हारे भीतर की गंदगी बाहर प्रकट होने लगेगी। तो तुम सब तरह से अपने को साज-संवार लिए हो।
लेकिन तुमने जो-जो बाहर से दिखलाया है, जानने वाले जानते हैं कि भीतर तुम उसके ठीक विपरीत होओगे । निन्यानबे प्रतिशत मैं कहता हूं, क्योंकि सौवां कभी-कभी कोई बुद्ध होता है जो बाहर और भीतर एक जैसा होता है। तुम बाहर कुछ, भीतर कुछ। बाहर कुछ, भीतर कुछ, इतना ही नहीं; तुम जैसे बाहर, ठीक उससे विपरीत भीतर । असल में, तुमने बाहर को बनाया ही है भीतर के विपरीत, ताकि तुम धोखा दे सको ।
यह पहली बात समझ लेनी जरूरी है। इसका अर्थ यह हुआ कि जो आदमी साहस की बहुत बातें करता हो, तुम समझ लेना कि भीतर भयातुर है, भय कातर है। नहीं तो साहस की इतनी चर्चा की कोई जरूरत न थी ।