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नुष्य के जीवन की जटिलता एक बुनियादी बात से निर्मित होती है। और वह बुनियादी बात है कि तुम जो नहीं हो वह दिखाने की कोशिश में संलग्न हो जाते हो। फिर तुम सत्य तक कभी भी न पहुंच सकोगे। क्योंकि तुमने शुरुआत ही असत्य की कर दी; यात्रा का पहला कदम ही गलत पड़ गया। जिसके जीवन में प्रेम नहीं है वह प्रेम को दिखाने की कोशिश करता है। जिसके जीवन में वीरता नहीं है वह वीरता दिखाने की कोशिश करता है। जिसके जीवन में साहस नहीं है वह साहस के मुखौटे ओढ़ लेता है। जो नहीं है उसे तुमने बताने की कोशिश की कि तुम भटके। पहुंचने का रास्ता तो सीधा और साफ है कि तुम जो हो वही दिखाओ। वही प्रामाणिक जीवन का लक्षण है। लेकिन क्यों होती है यह बात पैदा? आदमी क्यों दिखाना चाहता है वह
जो नहीं है? कुछ गहरे कारण हैं। समझें। जीवन में प्रेम को पाना तो कठिन बात है, आसान नहीं। दुर्गम है रास्ता; बड़ी पहाड़ों जैसी चढ़ाई है। क्योंकि प्रेम को पाने का अर्थ है अपने को बदलना; प्रेमी होने का अर्थ है अहंकार को तोड़ना, काटना, छांटना। क्योंकि तुम
जैसे हो कौन तुम्हें प्रेम कर पाएगा? तुम जैसे हो ऐसी हालत में लोग तुम्हें घृणा कर सकें, यही संभव है; प्रेम न कर • पाएंगे। इतना कचरा है तुममें, उसे तो जलाना ही होगा। जब तुम निखर कर कुंदन बनोगे तभी तुम्हें कोई प्रेम कर पाएगा। और वह रास्ता बड़ा लंबा है; बड़ा मुश्किल है।
सस्ती तरकीब है दूसरी। वह यह है कि तुम फिक्र ही छोड़ो अपने को बदलने की; जो तुम सोचते हो कि तुम्हें होना चाहिए उसे तुम दिखाना शुरू कर दो। झूठा चेहरा ओढ़ लो। जीवन के साथ धोखे का खेल शुरू कर दो। नहीं है प्रेम, फिक्र छोड़ो; तुम सिर्फ प्रेम का अभिनय करो। तुम्हारे जीवन में सुगंध नहीं है, फिक्र छोड़ो; इत्र बाजार में बिकते हैं, उन्हें तुम अपने पर छिड़क लो। मुस्कुराहट नहीं है तुम्हारे भीतर, उठती नहीं है प्राणों से; तो भी ओंठों को तो तुम मुस्कुराता हुआ दिखा सकते हो। ओंठों का मुस्कुराना हृदय की मुस्कुराहट के साथ अनिवार्य तो नहीं है। ओंठ सिर्फ मुस्कुरा सकते हैं बिना हृदय से जुड़े हुए; थोड़े से अभ्यास की बात है। ओंठ का मुस्कुराना आसान है, ऊपर-ऊपर है। इतने से काम चल जाएगा। दूसरे को धोखा हो जाएगा।
और दूसरे को धोखा जैसे ही होता है, एक और बड़ा धोखा पैदा होता है, वह खुद को धोखा है। जब तुम दूसरे को देखते हो कि तुम्हारे धोखे में आ गया, और जब बार-बार तुम देखते हो कि मुस्कुराहट पर लोग भरोसा कर लेते हैं, अंततः तुम पाओगे कि तुमने भी अपनी मुस्कुराहट पर भरोसा कर लिया। क्योंकि तुम अपने संबंध में दूसरों के द्वारा ही जानते हो। दूसरे लोग कहते हैं कि तुम बड़े प्रसन्नचित्त हो, तो तुम्हें खुद भी भरोसा आ जाता है। तब धोखा मजबूत हो गया। अब तुमने दूसरों को ही नहीं धोखे में डाल दिया, अपने को भी धोखे में डाल दिया। अब
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