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असंघर्षः साना अस्तित्व महोदन है
काफी हाऊस में एक सैनिक आया हुआ था। और वह कह रहा था कि आज बड़ी घमासान लड़ाई हुई, और मैंने कम से कम सौ आदमियों के सिर घास-पात की तरह काट डाले। नसरुद्दीन बैठा सुनता रहा। और उसने कहा, ऐसा एक समय मेरे जीवन में भी आया था। मैं भी युद्ध में गया था। सैनिक को पसंद तो न आई यह बीच में बात उठा देनी, लेकिन अब जब बात उठ ही गई थी तो रोकना मुश्किल था। तो उसने कहा कि क्या हुआ उस युद्ध में? नसरुद्दीन ने कहा कि मैं भी अनेक लोगों के पैर काट डाला था घास-पात की तरह। सैनिक ने कहा, अच्छा हुआ होता कि तुम सिर काटते, क्योंकि ऐसी हमने कभी कोई बात नहीं सुनी कि युद्ध में गए और पैर काट आए। नसरुद्दीन ने कहा, क्या करूं, सिर तो कोई पहले ही काट चुके थे। सिर थे ही नहीं वहां, मैं तो गया और घास-पात की तरह पैर काट डाले।
जहां भी तुम साहस की चर्चा सुनो वहां समझ लेना कि भीतर भयभीत आदमी छिपा है। वह बहादुरी की बात ही इसीलिए कर रहा है ताकि कोई पहचान न ले कि मेरी अवस्था क्या है।
जिन लोगों को तुम प्रेम की बहुत चर्चा करते सुनो, समझ लेना कि प्रेम के जीवन में वे असफल हुए हैं। कवि हैं, साहित्यकार हैं; प्रेम की बड़ी चर्चा करते हैं, गीत गाते हैं। लेकिन यह बड़ी हैरानी की बात है कि जिन कवियों ने भी प्रेम के गीत गाए हैं वे प्रेम में असफल लोग थे। नहीं तो कोई प्रेम ही करेगा, गीत किसलिए गाएगा? जब प्रेम ही तुम कर सकते हो तो गीत बनाने की फुरसत किसे है? गीत तो बना कर तुम अपने आस-पास एक धुंध पैदा करते हो, ताकि प्रेम की कमी पूरी हो जाए। भूखा आदमी ही सपने देखता है भोजन के, भरे पेट आदमी नहीं। अगर तुम्हारे सपने में प्रेम आता है तो उसका अर्थ है तुम्हारे जीवन में प्रेम नहीं। सपना तो परिपूरक है। जो जीवन में नहीं हो पा रहा है उसे तुम सपने में पूरा कर रहे हो। जो वस्तुतः नहीं मिल पा रहा है उसे तुम कल्पना में पूरा कर रहे हो।
तो कवि प्रेम के गीत लिखते हैं। उनके गीत बड़े मधुर हो सकते हैं। लेकिन उन गीतों के पीछे बड़ी पीड़ा छिपी है। तुम एक भी ऐसा कवि न पाओगे जो प्रेम में सफल हुआ हो। क्योंकि जो प्रेम में सफल हो जाता है, प्रेम इतना बड़ा गीत है कि और दूसरे गीत वह गाता नहीं। उसके जीवन में प्रेम का गीत होगा, लेकिन वह प्रेम के सपने
नहीं देखेगा। - इसे तुम जीवन का आधारभूत नियम समझ लो।
ऐसा हो जाता है कि गरीब आदमी के घर मेहमान आ जाएं तो वह पास-पड़ोस से कुर्सी, फर्नीचर, सोफा, दरी, बिछौना, मांग लाता है। गरीब आदमी ही यह करता है, धोखा देना चाहता है मेहमान को। मेहमान को दिखाना चाहता है : सब ठीक है, बड़े मजे से जी रहे हैं। वह सब उधार है, लेकिन दूसरे की आंख में एक प्रतिमा बनानी है।
और यही हम पूरे जीवन करते हैं-सुबह से सांझ तक। रास्ते पर कोई मिल जाता है और तुमसे पूछता है, कैसे हैं? और आप कहते हैं, बिलकुल ठीक। और ऐसे भावावेश से कहते हैं कि भरोसा आ जाए। और कुछ भी ठीक नहीं है जीवन में। बिलकुल ठीक तो दूर, कुछ भी ठीक नहीं है, सब गैर ठीक है। लेकिन जब दूसरे से आप कहते हैं, सब ठीक; तब क्षण भर को खुद भी भरोसा आ जाता है। इसे जरा खयाल करना। जब कोई आदमी पूछे, कैसे हैं? और जब कहें कि सब ठीक। तब क्षण भर को देखना कि भीतर इस कहने मात्र से कि सब ठीक, क्षण भर को ठीक सब लगने लगता है।
आदमी दूसरे को धोखा देते-देते खुद को धोखा दे लेता है। और जिस दिन तुम खुद को धोखा देने में सफल हो गए उस दिन तुम्हें फिर इस धोखे के बाहर आने का कोई उपाय न रहा। यही तो पागल का लक्षण है। पागल का अर्थ है जिसने अपने को धोखा देने में परिपूर्ण कुशलता पा ली, पूर्ण सफल हो गया। अब तुम लाख समझाओ उसे कि तू नेपोलियन नहीं है, लेकिन वह अपने को नेपोलियन मानता है।