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श्रेष्ठता वह जो अकेली रह सके
तुम्हारे भीतर ऐसा संगीत बज रहा है बुद्धिमत्ता का, वह संगीत खबर देता है कि परमात्मा है। इसके पहले मुझे थोड़ा-बहुत शक भी रहा हो, तुम्हारे आने से वह भी मिट गया।
केशवचंद्र हार कर लौटे। क्योंकि संत की कलह क्या है? उसका दावा क्या है? उसे कुछ सिद्ध करना नहीं है। संत का कोई सिद्धांत थोड़े ही है जिसे सिद्ध करना है, कोई शास्त्र थोड़े ही है जिसे सिद्ध करना है। संत का तो एक जीवन है। और उस घड़ी में केशव की आंखें खुल गईं, और देखा संत के जीवन को, और देखी इस महिमा को, जिसे कि विरोध भी हरा नहीं सकता, जिसे विवाद से मिटाया नहीं जा सकता; देखी इस आस्था को कि कितने ही तूफान उठाए जाएं तर्क के, आस्था का दीया डगमगाता भी नहीं, उलटे तूफान से भी जीवन ले लेता है।
तुमने देखा कभी, कि छोटे दीये बुझ जाते हैं हवा के झोंके में, लेकिन बड़ी आग लगी हो तो हवा घी का काम करती है। आग लग गई हो मकान में तो उस वक्त एक ही सुरक्षा है कि हवा न चले। क्योंकि आग लगी हो मकान में और हवा चल जाए तो आग बढ़ जाएगी; बुझना मुश्किल हो जाएगा। लेकिन गणित तो देखो! छोटा सा दीया, हवा आती है तो बुझ जाता है। बड़ी आग, हवा आती है तो और जलती है।
___ संत इतनी बड़ी आग है कि बुझाने को तुम अगर तूफान लाओगे तो घी का काम होगा। छोटे-छोटे दीये विवाद से हार जाते हैं। बड़ी आग विवाद से बढ़ती है। छोटे-छोटे दीये, लड़ो तो हरा सकते हो उन्हें। बड़ी आग से लड़ोगे तो जलोगे, हारोगे।
लेकिन सौभाग्य है कि अगर बड़ी आग के करीब पहुंच जाओ और हार जाओ। संत के पास हार जाने से बड़ा और कोई सौभाग्य है भी नहीं। वहां से तुम जीत की अकड़ लेकर लौट जाओ, वही पराजय है। वहां तुम हार आओ, वहां तुम समर्पित हो जाओ, वही जीत है। जैसे प्रेम में हार जीत होती है वैसे ही श्रद्धा में भी हार जीत होती है। क्योंकि श्रद्धा प्रेम की ही बड़ी आग है।
संत के विरुद्ध संघर्ष करना मुश्किल है, क्योंकि संत है नहीं भीतर जिससे तुम टकरा सको। तुम संत के भीतर पाओगे महाशून्य, तुम्हें कहीं अवरोध न मिलेगा, कोई दीवाल नहीं होगी जो तुमसे लड़ने को तैयार है। तुम संत के भीतर जितने जाओगे उतना ही पाओगे कि और भीतर का आकाश खुलता चला जाता है। संत के पास जाकर तुम खो ही जाओगे। वह तो ऐसे ही है जैसे बूंद सागर में गिरती है और खो जाती है। सौभाग्य है कि संत के पास पहुंच जाओ। क्यों कहता हूं सौभाग्य? क्योंकि जो लोग बहुत चालाक हैं, समझते हैं बहुत होशियार हैं, वे संत के पास आते ही नहीं। संत से बचने का वही एक उपाय है, कि पास ही मत आओ, दूर-दूर रहो, सुनी बातों को समझो। संत के संबंध में लोग क्या कह रहे हैं उन बातों को मौन लो, संत के सामने सीधे-सीधे मत आओ। तो ही बच सकते हो। अगर सीधे आ गए तो मिटोगे। और इसलिए जो बहुत चालाक हैं-अपनी मूढ़ता में चालाक हैं-वे सुनी बातों से जीते हैं। वे पास आकर देखने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाते। वे आंख में आंख डाल कर देखने के लिए तैयार भी नहीं होते। खतरा है। और एक लिहाज से वे ठीक हैं, क्योंकि पास आएंगे तो उनकी जीत तो मुश्किल है। वह तो असंभव है। संत के पास आकर हारने के सिवाय और कोई संभावना ही नहीं है।
और जैसे-जैसे पास आओगे, और पास आना पड़ेगा। जैसे-जैसे पास आओगे, और प्यास बढ़ेगी, और तड़फ लगेगी। जैसे-जैसे पास आओगे वैसे-वैसे मिटने की बड़ी तीव्र आकांक्षा गहन होगी। एक दिन संत में डूबोगे। और जिस दिन संत में डूब जाओ उस दिन तुम्हारे भीतर भी संतत्व का उदय हो गया। उस दिन तुम वही न रहे जो आए थे। उस दिन आग से तुम गुजर गए और तुम्हारा सोना निखर आया। तुम शुद्ध कुंदन हो गए, सब कचरा जल गया।
संत एक क्रांति है, जिससे तुम गुजर सकते हो। और मिटने की तैयारी हो तो ही पास आना चाहिए। लोग ऐसे हैं कि पास भी आ जाते हैं, मिटने की तैयारी नहीं है। तब बड़ी मुश्किल में पड़ जाते हैं। तब उनकी दुविधा मैं देखता
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