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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ हूं, उनकी तकलीफ मैं देखता हूं। एक कदम पास आते हैं मेरे, एक कदम दूर जाते हैं। एक हाथ से पास आते हैं, दूसरे हाथ से अपने को सम्हाले रखते हैं। ऐसा हुआ कि मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी एक दिन आई और उसने कहा, जल्दी करें! और खतरे की घड़ी है, मुल्ला फांसी लगाने की कोशिश कर रहा है। मैं उसके साथ मुल्ला के घर तक गया। राह में वह बार-बार कहने लगी, जल्दी चलें! यह आपकी चाल ठीक नहीं; यह मामला संकट का है। मैंने कहा, तू घबरा मत। जो आदमी कभी किसी चीज में सफल नहीं हुआ वह आत्महत्या में भी सफल होगा नहीं; तू बिलकुल बेफिक्र रह। पर उसको पसीना चू रहा है और हाथ-पैर कंप रहे हैं। वह बोली कि आत्महत्या बात और है। और चीज में सफल न हुआ हो, क्योंकि दूसरों का सवाल था। यह तो अकेले, आत्महत्या तो खुद ही करनी है। कोई बाधा भी देने वाला नहीं है। कमरा उसने बंद कर रखा है। मैंने कहा, तू बिलकुल फिक्र मत कर, मैं उसे भलीभांति जानता हूं, वह सफल किसी चीज में हो ही नहीं सकता। उसके घर पहुंचे। देखा तो इंतजाम उसने पूरा कर रखा था। रस्सी बांध रखी थी छप्पर से; एक स्टूल पर खड़ा था और रस्सी अपनी कमर में बांध रहा था। मैंने कहा, नसरुद्दीन, अगर मरना है तो कमर में रस्सी क्यों बांध रहे हो? . उसने कहा कि पहले गले में बांधने की कोशिश की, पर बड़ी बेचैनी होती है। और मरना तो है ही, तो मैं कमर में बांध रहा हूं। क्या कोई ऐसी तरकीब नहीं है कि आदमी आराम से मर सके? बस ऐसी दुविधा में हैं बहुत लोग। संत के पास पहुंच जाते हैं और फिर अपने को बचाना भी चाहते हैं; कमर में रस्सी बांधते हैं। कहते हैं, गर्दन में बांधते हैं तो बेचैनी होती है। बचाते भी हैं अपने को, और बचा भी नहीं सकते हैं। क्योंकि आमंत्रण सुन लिया गया है; पुकार आ गई है; बुलावा आ गया है। और भीतर लग रहा है कि तैयार हैं, कूद लेना चाहिए, छलांग ले लेनी चाहिए। खड़े हैं गड्ड के पास, एक क्षण में घटना घट सकती है, सिर्फ साहस चाहिए। लेकिन पकड़े हैं किनारे को। नाव में सवार हो गए हैं, और नाव की खूटियां किनारे से बंधी हैं, उन्हें खोल नहीं रहे हैं। नाव में बैठे हैं, पतवार चला रहे हैं; और खूटियां किनारे से बंधी हैं, रस्सियां किनारे से बंधी हैं। नाव कहीं जा नहीं रही। ऐसी दुविधा में तुम मत पड़ना। या तो भाग खड़े होना, लौट कर पीछे देखना ही मत। और या फिर छलांग ले लेना, और फिर मत भय करना कि क्या होगा। इन दो के बीच रहोगे तो न घर के न घाट के, न संसार के न संन्यास के, न पदार्थ के न परमात्मा के। तब तुम बड़ी उलझन में रहोगे। वह किनारा छूट गया और दूसरा किनारा मिलता नहीं। और मझधार में डूबने जैसी गति हो जाएगी। संत के पास आना हो तो पूरे, न आना हो तो भी पूरे न आना। मध्य में बड़ा तनाव पैदा हो जाता है, बड़ा संताप पैदा होता है। और कमर में रस्सियां बांध कर कोई फांसी नहीं लगती। और बेचैनी तो होगी, क्योंकि सारे अतीत को मार डालना है। बेचैनी तो होगी, क्योंकि सारी वासनाओं को जला डालना है। बेचैनी तो होगी, क्योंकि अब तक की सारी महत्वाकांक्षाओं और पागलपन को आग में गिरा देना है; राख कर देना है अहंकार को। बेचैनी तो निश्चित है। लेकिन उसी बेचैनी के बाद, उसी अंधेरी रात के बाद सुबह का जन्म है। और जिन्हें सुबह देखनी है उन्हें अंधेरी रात से गुजरने का साहस चाहिए ही। आज इतना ही। 84
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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