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________________ श्रेष्ठता वह जो अकेली रह सके 'वे आगे-आगे चलते हैं, और लोग उनकी हानि नहीं चाहते।' जब तुम लोगों के आगे चलना चाहोगे तो लोग तुम्हारी हानि चाहेंगे। क्योंकि तुम उन्हें आगे होने देने में बाधा हो, तुम उनके दुश्मन हो। इसलिए राजनीति में कोई दोस्त नहीं होता। राजनीति में दो तरह के दुश्मन होते हैं: प्रकट दुश्मन, अप्रकट दुश्मन। प्रकट दुश्मन से भी अप्रकट दुश्मन ज्यादा खतरनाक होता है। . इसलिए मैक्यावेली ने, जिसने कि राजनीति की बाइबिल या वेद लिखा, अपनी किताब दि प्रिंस में कुछ सुझाव दिए हैं। उसने कहा है कि राजनीतिज्ञ को, राजा को, सम्राट को, किसी को भी भूल कर कभी मित्र नहीं मानना चाहिए, अन्यथा वह पछताएगा। क्योंकि जो आज मित्र है वह कल शत्रु हो सकता है। और उसने यह भी कहा कि शत्रु के संबंध में भी ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए कि कभी मित्रता बनने का मौका आए तो वह बात बाधा बने। क्योंकि वहां कोई भी शत्रु हो सकता है, कोई भी मित्र हो सकता है। राजनीतिज्ञ के आस-पास जो लोग होते हैं वे भी शत्रु हैं, क्योंकि वे भी कोशिश कर रहे हैं कि तुम जिस सिंहासन पर हो, वे हो जाएं। तो कुछ शत्रु बाहर चेष्टा करते हैं, वहां से आने की; और कुछ शत्रु घर के भीतर होते हैं और वहां से चेष्टा करते हैं। राजनीतिज्ञ का मित्र कोई हो ही नहीं सकता, क्योंकि जो महत्वाकांक्षा तुम्हें ले आई है वही दूसरों को भी ले आई है। तो इंदिरा को डर कोई जयप्रकाश से ही नहीं है, यशवंतराव चव्हाण से भी उतना ही है; ज्यादा। और बाहर के दुश्मन से तो सुरक्षा करना आसान है, भीतर के दुश्मन से सुरक्षा करना मुश्किल है; क्योंकि वह भीतर है। इसलिए तो इंदिरा को रोज-रोज पोर्टफोलियो बदलने पड़ते हैं कि किसी को भी यह भ्रांति न हो जाए कि तुम जम गए। उखाड़ते रेहना पड़ता है। तुमको पक्का पता रहना चाहिए कि तुम जम नहीं गए हो, कि तुम और आगे जाने की कोशिश करने लगो। तुम जहां हो वहीं रहने में तुम्हें लगाए रखना पड़ता है, कि तुम किसी तरह वहीं बने रहो। क्योंकि तुम्हें अगर यह पक्का भरोसा हो जाए कि तुम जहां हो वहां से तुम्हें कोई नहीं हटा सकता, तो तुम और ऊपर चढ़ने की कोशिश शुरू कर दोगे। इसलिए हर राजनीतिज्ञ को अपने कैबिनेट को हमेशा उखड़ी हालत में रखना पड़ता है, कंपाए रखना पड़ता है। तो किसी को भी पक्का भरोसा न हो जाए कि यह कुर्सी तय हो गई। अगर यह तय हो गई तो तुम्हारी शक्ति ऊपर वाली कुर्सी की तरफ जाने में संलग्न हो जाएगी। इसलिए इस कुर्सी को हिलाए रखना पड़ता है कि तुम्हारी ताकत इसी पर बैठे रहने में लगी रहे, और तुम्हारी ताकत आगे न जा पाए। राजनीति में मित्रता संभव नहीं है। क्योंकि महत्वाकांक्षी की क्या मित्रता हो सकती है! . हम सब महत्वाकांक्षी हैं अगर, हम सब एक-दूसरे के दुश्मन हैं तब। क्योंकि हम वही पाने की कोशिश कर रहे हैं जो दूसरे भी कर रहे हैं। और वह न्यून है—चाहे धन हो, चाहे पद हो। सारा संसार उसी को पाना चाह रहा है; इसलिए सारा संसार एक-दूसरे का दुश्मन है। और एक कलह सतत चलती रहती है। शिष्टाचार में छिपी, संस्कृति में ढंकी, वस्त्रों में, शब्दों में, बातों में छिपाई हुई, लेकिन भीतर एक संघर्ष चल रहा है। ___ 'संत आगे-आगे चलते हैं, और लोग उनकी हानि नहीं चाहते।' क्योंकि संत तो पीछे चलता हैं, लोग ही उसको पकड़ कर आगे ले आते हैं। और जैसे ही लोग उसे छोड़ दें, वह फिर पीछे चला जाता है। ऐसी अनूठी घटना इस देश में घटी है कि सम्राट से भी ऊपर जंगल में बसे ऋषि का स्थान हो गया था। वह हट गया था पीछे। लेकिन सम्राट जाकर उसके चरण छूता। जिसके पास कुछ भी न था उसके चरण वह छूता जिसके पास सब कुछ था। एक बड़ा अनूठा प्रयोग था। ऐसा हुआ कि एक गांव में बुद्ध का आगमन हुआ। जो सम्राट था उसके वजीर ने कहा कि आप चलें, नगर 81
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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