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ताओ उपनिषद भाग ६
उसकी मस्ती का कोई अंत न था। गणित ही पैदा न हुआ था। लेकिन निन्यानबे ने दिक्कत डाल दी। उसने निन्यानबे गिने तो उसने सोचा कि कल तो उपवास कर लेना उचित है; एक रुपया बच जाए तो सौ हो जाएं। अब निन्यानबे में कुछ ऐसा है कि आदमी का मन सौ करना चाहता है एकदम से। तुमको भी मिल जाएं निन्यानबे तो जो पहला खयाल उठेगा वह यह कि सौ कैसे हो जाएं। कुछ अधूरा लगता है निन्यानबे में, कुछ कमी लगती है। और एक रुपये की कुल कमी है; कोई ज्यादा भी कमी हो तो आदमी सोचे कि मुश्किल है। एक ही रुपये का मामला है। नाई ने सोचा कि आज उपवास ही कर लो। एक दिन खाना न खाएंगे तो एक रुपया बच जाएगा, सौ हो जाएंगे।
नाई उस दिन आया तो, लेकिन अब भूखा आदमी तो उदास। पैर तो दाबे उसने, लेकिन बेमन से। और पैर भी दाब रहा था तो उसके भीतर तो गणित वही चल रहा था कि एक बच जाएगा, सौ हो जाएंगे। गजब हो गया। पता नहीं कौन निन्यानबे डाल गया! सम्राट ने पूछा कि आज कुछ उदास-उदास मालूम पड़ते हो? उसने कहा, नहीं, ऐसी कुछ बात नहीं। जरा ऐसे ही, धार्मिक त्यौहार है, उपवास किया है। और उपवास की तो शास्त्रों में बड़ी प्रशंसा है।
सौ पूरे हो गए, लेकिन अब दौड़ शुरू हो गई। नाई ने सोचा, जब निन्यानबे से सौ हो सकते हैं, तो एक सौ एक भी हो सकते हैं। अब रुकने का कोई उपाय न रहा। मुहीने भर में तो वह दीन-हीन हो गया, जर्जर हो गया। कई उपवास कर लिए। सस्ती चीजें खरीद कर खाने लगा। दूध लेना बंद कर दिया, चाय ही पीने लगा। अब बचाना था।
वैज्ञानिक कहते हैं कि कुछ मनुष्य के मन में जहां भी अधूरापन हो उसे पूरा करने की एक बड़ी गहरी पकड़ है। आदमी में ही नहीं, वे जानवरों में भी यह अनुभव करते हैं। तो उन्होंने बंदरों के पास भी प्रयोग करके देखे हैं। बंदर के पास चॉक से एक वर्तुल खींच दो अधूरा, और चॉक वहीं छोड़ दो; बंदर फौरन आकर वर्तुल को पूरा कर देगा। उसको भी अड़चन मालूम होती है कि यह अधूरा जान खाएगा, इसको पहले पूरा करो तो निश्चित हो जाओ।
मगर सीधी रेखा की खराबी यह है कि वह कहीं पूरी होती नहीं। वर्तुल तो पूरा हो सकता है, सीधी रेखा कैसे पूरी होगी? वह तो चलती ही जाती है। तो निन्यानबे से सौ पर जाती है, सौ से एक सौ एक पर जाती है। अब अनंत है; अब इसका कहीं कोई अंत नहीं।
महीने भर बाद राजा ने कहा कि तू समझ नहीं रहा है। तेरी हालत खराब हुई जा रही है। तू तो मुझसे भी बदतर हुआ जा रहा है। तो उसने कहा, आप पुराने अनुभवी हैं, मैं नया ही नया सिक्खड़ ही हूं, बड़ी मुश्किल में पड़ा हूं। मगर मेरी जान ले ली किसी आदमी ने जिसने निन्यानबे रुपये मेरे घर में फेंक दिए। अब मैं आपको बताए देता हूं, कोई धार्मिक उपवास वगैरह नहीं कर रहा हूं। मेरा छुटकारा करा दो किसी तरह वह निन्यानबे रुपये से।।
पुरानी कहानी है कि एक गांव में एक जवान आदमी था। और वह इतना जवान था, और इतना मस्त था-एक फकीर का लड़का था, मांग लेता था और सोया रहता था कि राजा की सवारी निकलती तो वह हाथी की पूंछ पकड़ कर खड़ा हो जाता तो हाथी रुक जाता। राजा को बड़ा अपमान मालूम पड़ता। यह तो हद हो गई! बीच बाजार में खड़ा कर देता वह हाथी को। राजा ने कहा, यह तो बरदाश्त के बाहर है कि एक आदमी ऐसा भी है कि हमारे हाथी को रोक ले और हाथी न हिले! और हम कुछ भी न कर पाएं, अवश टंगे रह जाते हैं। इसको ठीक करना पड़ेगा। पूछा अपने वजीरों को कि क्या उपाय है? उन्होंने कहा, आप ऐसा करें इसे कुछ काम लगा दें। यह आदमी बिलकुल खाली है; यह बिलकुल मस्त है। यह मांग लेता है, खा लेता है, सो जाता है। इसकी शक्ति का कहीं कोई ह्रास नहीं हो रहा। उसने कहा, इसको काम में लगाएंगे कैसे? यह मानेगा नहीं। उन्होंने कहा, मान जाएगा; एक छोटा काम हम जाकर लगा देते हैं। कहा, एक रुपया रोज तुझे मिलेगा; जिस मंदिर के सामने तू सोया रहता है यहां दीया जला दिया कर शाम को ठीक छह बजे। पर ध्यान रहे, ठीक छह बजे। जिस दिन भी देर-अबेर हुई, रुपया नहीं मिलेगा। उसने कहा, यह भी कोई बात है।