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परमात्मा परम लयबद्धता है
रहस्यमय सदगुण लोभ और भय पर नहीं खड़ा है; बोध पर खड़ा है। तुमने जीवन को समझने की कोशिश की और पाया कि यहां न कुछ बचता है, न बचाने योग्य है; झूठ किसलिए बोलना है? झूठ बोल इसीलिए रहे थे कि कुछ बच जाए। चार पैसे ज्यादा बच सकते थे अगर झूठ बोल देते। सच बोलते तो चार पैसे ज्यादा लग जाते।
मुल्ला नसरुद्दीन के लड़के से मैंने पूछा कि तेरी उम्र क्या है? तो उसने कहा कि पहले यह जगह बताइए, किस जगह-बस में, ट्रेन में, घर में? क्योंकि बस में मैं सुनता हूं चार साल, घर में सुनता हूं छह साल। तो कुछ पक्का नहीं है कितनी उमर है। निर्भर करता है, कौन सी स्थिति है।
चार पैसे बच जाएं।
मुल्ला नसरुद्दीन अपने बेटे को लेकर ट्रेन में बैठा है। और टिकट कलेक्टर ने पूछा, कितनी उमर? तो उसने कहा कि चार साल। उसने कहा कि मालूम तो सात साल का होता है। नसरुद्दीन ने लड़के की तरफ देखा और कहा कि मैं क्या करूं! अब यह चिंता-फिकर करता है अभी से इसीलिए इतना बूढ़ा दिखाई पड़ता है। बाकी है तो चार ही साल का। चिंता-फिकर के कारण सात साल का मालूम पड़ रहा है।
दो पैसे के लिए आदमी झूठ बोल रहा है। दो पैसे के लिए आदमी बेईमानी कर रहा है। दो पैसे के लिए आदमी हिंसक हो जाता है। लेकिन जिसको बोध आ गया इस बात का कि लौट जाना है वर्तुल को उसी जगह जहां से हम आए थे, वहां मुट्ठी खुल जाएगी। जिन पैसों के लिए बेईमानी की थी, झूठ बोले थे, हिंसा की थी, वैमनस्य किया था, मुट्ठी खुल जाएगी, पैसे पड़े रह जाएंगे। पैसे तो पड़े रह जाएंगे, लेकिन पैसों के लिए हमने जो किया था वह हमारे चित्त का हिस्सा हो जाएगा; वह हमें भटकाएगा जन्मों-जन्मों में। वह बार-बार हमें बेईमानी के मार्ग पर ले आएगा और बार-बार झूठ का, प्रलोभन का बीज हम बोते रहेंगे।
लाओत्से कहता है कि जीवन के रहस्य को समझना हो तो इस बात को पहले समझ लेना कि सब चीजें अपनी मूल अवस्था में लौट जाती हैं। जहां से तुम आए थे वहीं तुम चले जाते हो। तो यहां अगर तुम हो तो इस मकान को, इस संसार को, सराय से ज्यादा मत समझना। रुके हैं रात, ठीक; सुबह विदा हो जाना है। और अगर तुमने वर्तुलाकार जीवन का अनुशासन निर्मित किया तो तुम धार्मिक हो।
इसे तुम समझ लो, यह गणित की बात है। अगर तुमने जीवन को एक रेखा में सीधा निर्मित किया तो तुम संसारी हो; अगर तुमने जीवन को वर्तुलाकार निर्मित किया तो तुम संन्यासी हो, तुम धार्मिक हो। और इन दोनों गणितों का अलग-अलग फैलाव है। जो रेखाबद्ध बढ़ता है वह कहता है, दस रुपये हैं तो ग्यारह होने चाहिए, ग्यारह हैं तो बारह होने चाहिए। वह निन्यानबे का चक्कर जिसको हम कहते हैं वह रेखाबद्ध गणित है।
तुमने वह कहानी जरूर सुनी होगी कि एक नाई है जो सम्राट के हाथ-पैर दाबता है, मालिश करता है। और सम्राट से सदा ज्यादा प्रसन्न रहता है। उसकी खुशी का कोई अंत नहीं है। और सम्राट को हमेशा हारा-थका पाता है। आखिर सम्राट ने भी एक दिन हिम्मत जुटा कर कहा कि सुन भाई, तेरा राज क्या है? तू इतना प्रसन्न क्यों रहता है? उसने कहा, राज तो मुझे पता नहीं, लेकिन मैं कोई कारण नहीं पाता दुखी होने का। और मैं कोई बहुत समझदार नहीं हूं इसलिए मैं कुछ ज्यादा बता नहीं सकता। लेकिन मैं बड़ा खुश हूं। सम्राट ने अपने वजीर से पूछा। वजीर ने कहा कि राज मैं बता सकता हूं; यह अभी निन्यानबे के चक्कर में नहीं है। राजा ने कहा, क्या मतलब? यह चक्कर क्या है? वजीर ने कहा, आप निन्यानबे रुपये रख कर एक थैली में, इसके घर में फिंकवा दो।
उसी रात निन्यानबे सोने के सिक्के उसके घर में फेंक दिए गए। उसको एक रुपया, एक सिक्का रोज मिलता था सम्राट के घर से मालिश करने का, सेवा करने का। वह रोज के लिए पर्याप्त था। वह खूब मजे से खाता-पीता, रात चादर ओढ़ कर सोता। कल की कोई फिकर न थी। कल फिर मालिश करेगा, फिर एक रुपया मिल जाएगा।
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