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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ को क्या बचा? वे कहते कि शास्त्र को ठीक से पढ़ लो, पता चल जाएगा कि भीतर आत्मा है। यही पंडित करते रहे हैं। उन्हें लगता है कि जैसे जीवन का सारा समाधान किताब में है। किताब में इशारे हो सकते हैं, लेकिन समाधान तो जीवन का जीवन में ही है। ऐसा हुआ कि मुल्ला नसरुद्दीन अपने बेटे को समझा रहा था। अभी-अभी बेटा बाहर पड़ोस के लड़के से कुश्ती लड़ कर लौटा था। काफी धूसामारी हुई थी, कपड़े फट गए थे, चेहरे से खून निकल रहा था। फिर मुल्ला ने यही मौका ठीक समझा कि जब गरम हो स्थिति तभी समझा देना चाहिए। तो उसने कहा कि देखो, अब तुम बड़े होने लगे, और अब तुम्हें सभ्यता-संस्कृति सीखनी चाहिए। और संस्कृति का पहला सूत्र यह है कि झगड़ों को शांति से निपटाना चाहिए। यह चूंसेबाजी जिंदगी में चलाओगे तो मुश्किल में पड़ोगे। और ऐसी कौन सी समस्या है जिसको शांति से बैठ कर तर्क और विचार और बुद्धि से न निपटाया जा सके! मुल्ला ने कहा कि मैंने कुरान-वेद सब पढ़ डाले। हर समस्या, बड़ी से बड़ी समस्या भी आदमी शांति से बैठ कर, विचार से समझ कर, एक-दूसरे की स्थिति, एक-दूसरे का दृष्टिकोण खयाल में लेकर हल कर सकता है। उस लड़के ने कहा, लेकिन यह समस्या ही ऐसी है कि इसका और कोई हल ही न था। नसरुद्दीन ने कहा, मैं यह मान ही नहीं सकता। मैंने ऐसी कोई समस्या देखी नहीं आज तक। तू समस्या बोल क्या थी? उसने कहा कि आप मानो, यह समस्या ही ऐसी थी। समस्या यह थी कि वह लड़का कह रहा था कि वह मुझ को चित्त कर सकता है चारों खाने। और मैं कह रहा था मैं उसको कर सकता हूं चित्त चारों खाने। अब इसको शांति से कैसे तय करो? इसका एक ही उपाय है कि करके देख लो कौन किसको कर सकता है। जीवन जीकर ही हल हो सकता है। कोई दूसरा उपाय जीवन के समाधान का नहीं है। जो दूसरे तरह का ज्ञान है वह बिना जीवन में उतरे तुम्हें समाधान दे देता है। वे समाधान झूठे हैं, सस्ते हैं बहुत। तुमने उन समाधानों के लिए कुछ चुकाया नहीं। तुमने उन समाधानों के लिए कुछ खोया नहीं। तुमने उन समाधानों के लिए अपने को दांव पर नहीं लगाया। तुम मुफ्त, भीख में, उन समाधानों को घर में ले आए हो। काश! जिंदगी इतनी सस्ती होती। जिंदगी इतनी सस्ती नहीं है। और अच्छा ही है कि जिंदगी इतनी सस्ती नहीं है; अन्यथा तुम्हारी समाधि भी कितनी सस्ती होती! और तुम्हारा परमात्मा को पा लेना भी कितना सस्ता होता! दो कौड़ी का होता। नहीं, यहां तो स्वयं ही चलना पड़ेगा अपने ही पैरों से। भटकन भी होगी, भूल भी होगी, गिरोगे भी। अनेक बार उठोगे, गिरोगे, उठोगे, खोजोगे। यहां मार्ग बना-बनाया तैयार नहीं है कि किसी और ने बना दिया है। कोई हाईवे नहीं है, जो तैयार है सरकार की तरफ से कि तुम उस पर चल जाओ। यहां तो चल-चल कर ही एक-एक कदम अपना मार्ग खुद ही बनाना पड़ता है। यहां तो तुम जितना चलते हो उतना ही मार्ग बनता है। और इसलिए केवल दुस्साहसियों के लिए ही सत्य है। कायर पंडित हो जाते हैं; साहसी प्रज्ञा को उपलब्ध होते हैं। पांडित्य महानतम कायरता है। वह अपने को धोखा देना है। लाओत्से के सूत्र को समझने की कोशिश करें। 'जो ताओ का अनुगमन करना जानते थे, उन पूर्व-पुरुषों ने लोगों को ज्ञानी बनाने का इरादा नहीं किया; बल्कि वे उन्हें अज्ञानी ही रखना चाहते थे।' बात बड़ी बेबूझ मालूम पड़ेगी कि ज्ञानी पुरुष लोगों को अज्ञानी रखना चाहते थे? . निश्चित ही। ज्ञानी पुरुष पहले भी लोगों को अज्ञानी रखना चाहते थे, और ज्ञानी पुरुष अब भी, अगर तुम ज्ञानी भी हो गए हो, तो तुम्हारा ज्ञान छीन लेना चाहते हैं। सदगुरु वही है जो तुम्हारा ज्ञान छीन ले। जिस गुरु के पास से तुम थोड़े ज्यादा जानकार होकर लौटो, समझ लेना वह गुरु नहीं है, शिक्षक है। शिक्षक सिखाता है जानकारी, गुरु 52
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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