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________________ परमात्मा परम लयबद्धता है टूटे। दोनों की सीमाएं करीब आएं, एक-दूसरे की ऊष्मा एक-दूसरे में बहे; प्रेम का थोड़ा सा प्रवाह हो; हाथ से ऊर्जा का थोड़ा लेन-देन हो। वही प्रयोजन है हाथ मिलाने का। लेकिन इंग्लैंड की महारानी हाथ मिलाती है तो दस्ताने पहने हुए। अब हाथ मिलाने की जरूरत ही न रही, क्योंकि दस्ताना न मिलने देगा। दस्ताना इसलिए है कि कहीं साधारण आदमी, और महारानी के हाथ से हाथ मिला ले! तो बंद ही कर दो बेहतर है हाथ मिलाना। लेकिन हाथ मिलाना भी जारी है और बीच में दस्ताना भी है। ज्ञानी और जीवन के बीच दस्ताना आ जाता है। जहां भी वह जाता है जीवन में, उसका ज्ञान आड़ बन कर खड़ा हो जाता है। तब ऊपर-ऊपर लगता है कि वह हाथ भी मिला रहा है, लेकिन भीतर-भीतर दोनों के शरीर करीब नहीं आते। ज्ञानी अगर वृक्ष के पास से निकलता है तो दस्ताना रहता है। एक महात्मा थे। उनका बड़ा नाम था। वे एक बार मेरे पास मेहमान हुए तो उन्हें मैं सुबह-सुबह घुमाने ले गया। जैसा पंडित होना चाहिए वैसे वे पंडित थे। ऐसी कोई भी बात मुश्किल थी जो वे न जानते हों। मेरे अनुभव में नहीं आई ऐसी कोई बात जो वे न जानते हों। ऐसी क्षुद्र बातें भी वे जानते थे जिनका कोई प्रयोजन समझ में नहीं आता। उन्हें जंगल में भी मैं ले जाकर देखा तो ऐसा एक वृक्ष नहीं था, जिसका नाम उन्हें मालूम न हो। जंगली पक्षियों को भी मैंने उनको दिखा कर देखा, ऐसा कोई पक्षी न था जिसका नाम उन्हें मालूम न हो। और नाम से ही निपटारा कर देते थे वे। मैंने उनको कहा कि देखें, सूरज की किरण इस पक्षी पर कितनी सुंदर पड़ रही है! तो वे कहते, पक्षी? यह नीलकंठ है। नीलकंठ नहीं देखा कभी? कि यह चिड़िया कितना मीठा गीत गा रही है। वे कहते, गौरैया है। गौरैया कभी सुनी नहीं? जो भी उनसे कहो, वे तत्क्षण जानकारी खड़ी कर देते थे। और जब जानकारी ही है, गौरैया का पता ही है, तो गौरैया का गीत कौन सुने? और नीलकंठ ही हैं, तो अब इनमें परेशान होने की क्या जरूरत? कौन देखे इनका नीला कंठ, नाम से तृप्ति हो गई। कभी-कभी सूरज की किरण में नीलकंठ का कंठ ऐसा चमकता है, ऐसा अपरिसीम सौंदर्य उसमें उठता है। लेकिन उनकी आंखों में मैंने कभी कोई झलक न देखी। वे एक चलते-फिरते कंप्यूटर थे। जो भी कहो, वे फौरन बता दें कि इसका नाम यह है। नाम देने को लोग ज्ञान समझते हैं। और नाम देने से ज्ञान का क्या संबंध है? शब्द नीलकंठ से नीलकंठ का क्या संबंध है ? नीलकंठ को तो पता भी नहीं होगा कि उनका नाम नीलकंठ है। गुलाब के फूल को तो पता भी नहीं है कि नाम गुलाब है। जैसे ही तुमने कहा, यह गुलाब है, द्वार बंद हो गए। अब क्या जरूरत रही। तुम जानते ही हो, नाम तक तुम्हें पता है। अब और जानने को क्या बचा? नाम गुलाब में न तो गुल है और न आब है; कुछ भी नहीं है। नाम गुलाब में न तो फूल है और न आभा है फूल की। गुलाब तो सिर्फ एक प्रतीक है, इशारा है। गुलाब गुलाब शब्द पर समाप्त नहीं होता, शुरू होता है। अगर तुमने उसी को समाप्ति समझ ली तो तुम वंचित रह जाओगे। तुम जीवन में जीओगे, लेकिन तुम्हारे चारों तरफ एक पर्दा होगा शब्दों का। शब्दों के माध्यम से तुम गुलाब के पास जाओगे, नीलकंठ के पास जाओगे, सूरज के पास जाओगे, सभी से तुम वंचित रह जाओगे। और इन्हीं शब्दों के माध्यम से तुम अपने करीब आओगे। तो अगर उन सज्जन से मैं कहता कि कभी ध्यान करें। उन्होंने कहा, क्या ध्यान करना है? और वेद-उपनिषद पहले ही कह गए कि भीतर आत्मा है, सिद्ध ही हो गई बात। वेद-उपनिषद ने सिद्ध कर दी, इससे तुम्हारे लिए सिद्ध नहीं हो गई। वेद-उपनिषद के ऋषियों ने जल पी लिया था इसलिए तुम्हारी प्यास बुझ गई, ऐसा नहीं है। जब तुम्हें प्यास लगती है तो तुम्हीं को पानी पीना पड़ता है। तुम यह नहीं कहते कि वेद-उपनिषद के ऋषि पी चुके खूब पानी और तृप्ति हो गई, हम क्यों पीएं? वेद-उपनिषद के ऋषियों ने प्रेम किया, इससे तुम प्रेम करने से नहीं रुकते। लेकिन वेद-उपनिषद ने कह दिया कि भीतर आत्मा है, अब खोजने 51
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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