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________________ परमात्मा परम लयबद्धता है छीन लेता है। गुरु मिटाता है जानकारी। गुरु अगर कुछ भी सिखाता है तो एक ही बात सिखाता है। वह सिखाता है कला : जो सीखा है उसको अनसीखा करने की। वह तुम्हारी स्लेट को साफ करता है।। तुमने काफी गूद डाला है अपना मन; न मालूम क्या-क्या लिख लिया है-काम का, बेकाम का, कारण-अकारण, संगत-असंगत। तुम्हारा मन एक गुदी हुई स्लेट है, जिसमें अब कुछ भी समझ में नहीं आता कि क्या तुमने लिखा था, क्या तुम लिख रहे थे। तुम खुद भी नहीं पढ़ सकते अपने लिखे हुए को जो तुमने अपने मन पर लिख लिया है। वहां भीतर आंख डालोगे तो बड़ी घबड़ाहट होगी। जैसे ही लोग ध्यान शुरू करते हैं, मेरे पास आने लगते हैं कि बड़ा कनफ्यूजन पैदा हो रहा है, बड़ी विभ्रांति आ रही है। कोई ध्यान से कहीं विभ्रांति आती है? लेकिन ध्यान से यह घटना घटती है कि तुम जरा भीतर देखने में समर्थ हो जाते हो। और भीतर तो विभ्रांति भरी पड़ी है। तुमने अपने मन की स्लेट पर क्या-क्या लिख दिया है, अब उसको पढ़ना भी मुश्किल है। मुल्ला नसरुद्दीन के जीवन में दो घटनाएं हैं। एक घटना है कि गांव के एक आदमी ने आकर कहा कि पत्र लिख दो। क्योंकि वही पढ़ा-लिखा आदमी है गांव में। तो नसरुद्दीन ने कहा, न लिख सकूँगा, क्योंकि मेरे पैर में बहुत दर्द है। उस आदमी ने कहा, लेकिन पैर में दर्द से और पत्र लिखने का क्या संबंध? तुम भलीभांति चंगे बैठे हो। हाथ से लिखना है पत्र कि पैर से? नसरुद्दीन ने कहा, तू समझता नहीं, यह जरा मामला जटिल है। क्योंकि लिख तो दूं, लेकिन पढ़ने के लिए मुझे दूसरे गांव भी जाना पड़ता है। पढ़ेगा कौन? और मेरे पैर में दर्द है। और दूसरी घटना है कि एक आदमी ने पत्र लिखवाया; नसरुद्दीन ने पूरा पत्र लिख दिया। फिर उस आदमी ने कहा कि भई कहीं कुछ भूल-चूक न हो गई हो, आप जरा पढ़ कर सुना दो। तो मेरे प्यारे भाई, बस उतना ही वह पढ़ पाया। फिर बार-बार उसी को पढ़े। उस आदमी ने कहा, आगे क्यों नहीं पढ़ते? क्या इतना ही लिखा है? नसरुद्दीन ने कहा कि देख, लिखना हमारा काम है, कोई पढ़ना तो नहीं। लिख दिया, अपनी झंझट खतम हुई। अब यह झंझट उनकी है जिनको पढ़ना हो। देहाती बोला, बात तो ठीक है। और फिर पता दूसरे का है तो यह गैर-कानूनी भी है, नसरुद्दीन ने कहा, किसी दूसरे के नाम लिखा गया पत्र पढ़ना गैर-कानूनी है; तू मुझको उलझा मत। तुम्हारा मन है। तुमने लिखा है। तुम स्वयं भी पढ़ न सकोगे कि क्या लिख लिया है। जो तुमने लिखा है उसमें से नब्बे प्रतिशत तो अचेतन में लिखा है, मूर्छा में लिखा है, बेहोशी में लिखा है। थोड़ा सा ही होश में लिखा है। वह भी सब गड-मड हो गया है। तुम्हारे सपने भी लिखे हैं तुम्हारे मन पर; तुम्हारी जागति भी लिखी है; तुम्हारी निद्रा भी लिखी है। तुमने शराब पीकर भी लिखा है कभी; कभी ध्यान करके भी लिखा है। वह सब मिश्रित हो गया है। . सदगुरु का पहला काम है कि वह इस सब कचरे को हटा दे। इसके पहले कि नये बीज बोए जाएं, माली पुरानी जड़ों को निकाल कर बाहर फेंक देता है; घास-पात को उखाड़ देता है; जमीन को साफ कर लेता है। फिर ही नये बीज बोए जाते हैं। इसके पहले कि वास्तविक ज्ञान तुम में जग सके, तुमने जो झूठा ज्ञान सीख लिया है, जो घास-पात उगा लिया है, वह हटा देना जरूरी है। क्योंकि घास-पात का एक गुण है कि अगर वह मौजूद रहे तो असली के भी बीजों को छिपा लेगा। अगर तुम पंडित होकर मेरे पास आओ और तुम अपने पांडित्य को बचाना चाहो, तो जो भी मैं दूंगा, तुम्हारे पांडित्य के कचरे में वह भी खो जाएगा। कबीर के पास एक पंडित आया। ज्ञानी था; काशी में बड़ा उसका नाम था। और कबीर सभी को शिक्षा देते थे जो भी आता। लेकिन उस पंडित को कहा कि नहीं भाई, तू हमको मुसीबत में मत डाल। उसने कहा, लेकिन आप किसी को मना नहीं करते। और मैं तो पात्र हूं। मैंने कुपात्रों को भी आपके घर आते देखा है। और मुझे मना करते हो? ,कबीर ने कहा कि तू इतना जानता है, और तेरे मन की भूमि पर इतने घास-पात उगे हैं कि जो बीज हम डालेंगे वह खो जाएगा। नहीं, तू इस झंझट में हमको मत डाल। 53
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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