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ताओ उपनिषद भाग ६
इस देश में निषेध भयंकर है। उसने तुम्हारे प्रेम को बिलकुल मार डाला है। सब संसार माया है। सब सुख दुख हैं। सब क्षणभंगुर है! कुछ सार नहीं। उससे तुम परमात्मा को उपलब्ध नहीं हुए हो; उससे तुम भयंकर विषाद में डूब गए हो। उससे तुम ऊपर उबरे नहीं हो; उससे तुम्हारी नाव पत्थरों से बोझिल हो गई है, और यात्रा कठिन हो गई है। उसके कारण तुम्हारे जीवन में परमात्मा का आनंद तो नहीं उतरा, केवल संसार की उदासी सघन हो गई है। तुम्हारे आस-पास वह शांति तो नहीं पैदा हुई जो कि आनंद की छाया है, तुम्हारे पास शांति पैदा हो गई है जो मरघट की छाया है। श्मशान जैसे तुम शांत हो गए हो-उदास, हारे-थके, पराजित।।
नहीं; एक आदमी धोखा दे तो मनुष्यता से विश्वास मत उठा लेना। और अगर ठीक से समझो तो जिस आदमी ने धोखा दिया है, यह आदमी भी इसी कृत्य में पूरा नहीं हो जाता है; इसके जीवन में करोड़ों कृत्य हैं। एक आदमी जीवन में करोड़ों काम करता है; उसके एक काम ने धोखा दिया, उसके करोड़ों काम से क्यों आस्था उठा लेते हो? इस क्षण में इस आदमी ने धोखा दिया, लेकिन भविष्य तो सदा उन्मुक्त है; दूसरे क्षण यह बदल सकता है। जल्दी निर्णय क्यों ले लेते हो?
और धोखे से धोखा देने वाला आदमी भी पूरा तो धोखे में नहीं जीता; जी नहीं सकता। झूठ से झूठ बोलने वाला आदमी भी तो कभी-कभी सच बोलता है। बेईमान से बेईमान भी तो कभी-कभी ईमानदार होता है। तुम क्यों इसकी बेईमानी को आधार बना लेते हो?
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि तुम धोखा खाओ; मैं तुमसे यह कह रहा हूं कि तुम अपने प्रेम को मत मरने देना। प्रेम बड़ा छोटा दीया है, और आंधियां बहुत हैं। सब तरफ से बुझाने के लिए आंधियां हैं। और अगर तुमने बुझाने में खुद सहयोग दिया तो कौन तुम्हारे दीये को बचाएगा?
कैसी भी स्थिति हो, कैसा भी मनुष्य हो, कैसे भी लोग हों तुम्हारे आस-पास, कैसा ही परिवार हो, कैसे ही संबंधी हों, तुम एक बात खयाल रखना, उन सब के बावजूद तुम प्रेम के दीये को बचा लेना। क्योंकि उससे ही तुम बचोगे। इनके धोखे तो सपने जैसे हैं, पानी पर खींची लकीरें हैं—बनेंगी, मिट जाएंगी। किसी ने तुम्हारी जेब से चारपैसे निकाल लिए; क्या बनता-बिगड़ता है? थोड़ी-बहुत देर बाद तुम अपने ही हाथ से निकालते; किसी दूसरे हाथ ने वह काम कर दिया है। धन्यवाद देना और आगे बढ़ जाना।
जीसस ने कहा है, कोई तुमसे कोट छीन ले, कमीज भी दे देना; मगर प्रेम को बचाना। कोई तुमसे कहे एक.. मील बोझा ढो चलो, तुम दो मील तक साथ चले जाना; क्योंकि हो सकता है, संकोची आदमी, दो मील ले जाना चाहता हो और एक ही मील कहा; मगर प्रेम को बचा लेना। क्योंकि जो प्रेम करेगा, वह परमात्मा को जानेगा। क्योंकि परमात्मा प्रेम है।
अगर तुम एक ही बात को बचा लो जीवन में तो कुछ चिंता करने की जरूरत नहीं है। छोड़ दो फिक्र परमात्मा की, छोड़ दो फिक्र मोक्ष की; अगर प्रेम का दीया बच गया तो सब बच जाएगा। तुमने मूल आधार बचा लिया है, बुनियाद बचा ली है। भवन बना लेना बहुत कठिन नहीं है।
लेकिन बिना आधार के तुम भवन तो बना लेते हो, और आधार नहीं होता। आज नहीं कल, भवन गिरता है। और उसके गिरने में तुम भयंकर पीड़ा पाते हो। क्योंकि उसके गिरने में तुम्हारा सारा श्रम, सारी ऊर्जा, सारा जीवन व्यर्थ हो जाता है।
प्रेम है एकमात्र अभेद्य सुरक्षा; उसे बचा लो।
और जो प्रेम में जीता है-यह बड़ी आश्चर्य की बात है कि जीवन का गणित बहुत एक-दूसरे से श्रृंखलाबद्ध है-जो प्रेम में जीता है वह हमेशा संतुलित होता है। उसके जीवन में एक बैलेंस होता है। क्रोध में बैलेंस टूटता है,
स्वार हो, कैसेही
को बचा लेना
कार हैं-बनेंगी
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