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________________ प्रेम और प्रेम में भेद है है; लेकिन न तो वह तुम्हें छोड़ कर भाग सकता है, न तुम उसे छोड़ कर भाग सकते हो। गुलामी पारस्परिक है। तुम भी उससे बंध गए हो जिसे तुमने बांध लिया। बंधन कभी एकतरफा नहीं होता। अगर तुमने आधिपत्य करना चाहा तो दिशा नीचे की तरफ शुरू हो गई। जिसे तुम प्रेम करो उसे मुक्त करना; तुम्हारा प्रेम उसके लिए मुक्ति बने। जितना ही तुम उसे मुक्त करोगे, तुम पाओगे कि तुम मुक्त होते चले जा रहे हो, क्योंकि मुक्ति भी दोधारी तलवार है। तुम जब अपने निकट के लोगों को मुक्त करते हो तब तुम अपने को भी मुक्त कर रहे हो; क्योंकि जिसे तुमने मुक्त किया, उसके द्वारा तुम्हें गुलाम बनाए जाने का उपाय नष्ट कर दिया तुमने। जो तुम देते हो वही तुम्हें उत्तर में मिलता है। जब तुम गाली देते हो तब गालियों की वर्षा हो जाती है। जब तुम फूल देते हो तब फूल लौट आते हैं। संसार तो प्रतिध्वनि करता है। संसार तो एक दर्पण है जिसमें तुम्हें अपना ही चेहरा हजार-हजार रूपों में दिखाई पड़ता है। . जब तुम किसी को गुलाम बनाते हो तब तुम भी गुलाम बन रहे हो; प्रेम कारागृह बनने लगा! यह मत सोचना कि दूसरा तुम्हें कारागृह में डालता है। दूसरा तुम्हें कैसे डाल सकता है? दूसरे की सामर्थ्य क्या? तुम ही दूसरे को कारागृह में डालते हो तब तुम कारागृह में पड़ते हो; यह साझेदारी है। तुम उसे गुलाम बनाते हो; वह तुम्हें गुलाम बनाता है। पति-पत्नियों को देखो, वे एक-दूसरे के गुलाम हो गए हैं। और स्वभावतः, जो तुम्हें गुलाम बनाता है उसे तुम प्रेम कैसे कर पाओगे? भीतर गहरे में रोष होगा, क्रोध होगा; गहरे में प्रतिशोध का भाव होगा। और वह हजार-हजार ढंग से प्रकट होगा; छोटी-छोटी बात में प्रकट होगा। क्षुद्र-क्षुद्र बातों में पति-पत्नियों को तुम लड़ते पाओगे। प्रेमियों को तुम ऐसी क्षुद्र बातों पर लड़ते पाओगे कि यह तुम मान ही नहीं सकते कि इनके जीवन में प्रेम 'उतरा होगा। प्रेम जैसी महा घटना जहां घटी हो वहां ऐसी क्षुद्र बातों की कलह उठ सकती है? यह क्षुद्र बातों की कलह बता रही है कि सीढ़ी नीचे की तरफ लग गई है। जब भी तुम किसी पर आधिपत्य करना चाहोगे, तुमने प्रेम की हत्या कर दी। प्रेम का शिशु पैदा भी न हो पाया, गर्भपात हो गया; अभी जन्मा भी न था कि तुमने गर्दन दबा दी। प्रेम खिलता है मुक्ति के आकाश में, प्रेम का जन्म होता है स्वतंत्रता के परिवेश में। कारागृह में प्रेम का जन्म नहीं होता; वहां तो प्रेम की कब्र बनती है। और जब तुम दूसरे पर आधिपत्य करोगे तब तुम धीरे-धीरे पाओगे, प्रेम तो न मालूम कहां तिरोहित हो गया और प्रेम की जगह कुछ बड़ी विकृतियां छूट गईं-ईर्ष्या। जब तुम दूसरे पर आधिपत्य करोगे तब ईर्ष्या पैदा हो जाएगी। - अगर तुम्हारी पत्नी किसी के साथ थोड़ी हंस कर भी बोल रही है। प्राण कंपित हो गए। यह तो पत्नी तुम्हारे कारागृह के बाहर जाने के लिए कोई झरोखा बना रही है। यह तो सेंध मालूम पड़ती है; दीवाल तोड़ कर बाहर निकलने का उपाय है। तुम्हारी पत्नी और किसी और के साथ हंसे? तुम्हारी पत्नी और किसी और से बात करे? तुम्हारा पति किसी और स्त्री के सौंदर्य का गुणगान करे? नहीं, यह असंभव है। क्योंकि यह तो प्रथम से ही खतरा है। यह तो स्वतंत्र होने की चेष्टा है। इसको पहले ही प्रेमी मार डालते हैं। ईर्ष्या का जन्म होता है। और ध्यान रखना, अगर तुम एक स्त्री को प्रेम करते हो तो वस्तुतः उस स्त्री के द्वारा तुम सभी स्त्रियों को प्रेम करते हो। वह स्त्री प्रतिनिधि है, वह प्रतीक है। उस स्त्री में तुमने स्त्रैणता को प्रेम किया है। जब तुम किसी एक पुरुष को प्रेम करते हो तो उस पुरुष में तुमने सारे जगत के पुरुषों को प्रेम कर लिया जो आज मौजूद हैं, जो कभी मौजूद थे, जो कभी मौजूद होंगे। व्यक्तित्व तो ऊपर-ऊपर है, भीतर तो शुद्ध ऊर्जा है पुरुष होने की या स्त्री होने की। जब तुम एक स्त्री के सौंदर्य का गुणगान करते हो तब यह कैसे हो सकता है कि सौंदर्य को परखने वाली ये आंखें राह से गुजरती दूसरी स्त्री को, जब वह सुंदर हो, तो उसमें सौंदर्य न देखें? यह कैसे हो सकता है? यह तो असंभव है। 405
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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