________________
ताओ उपनिषद भाग ६
सीढ़ियां वही होंगी, तुम भी वही होओगे, पैर भी वही होंगे, पैरों की शक्ति जैसा आने में उपयोग आई है वैसे ही जाने में भी उपयोग होगी, सब कुछ वही होगा; सिर्फ तुम्हारी दिशा बदल जाएगी। एक दिशा थी जब तुम्हारी आंखें ऊपर लगी थीं, आकाश की तरफ, और पैर तुम्हारी आंखों का अनुसरण कर रहे थे; दूसरी दिशा होगी, तुम्हारी आंखें जमीन पर लगी होंगी, नीचाइयों की तरफ, और तुम्हारे पैर उसका अनुसरण कर रहे होंगे।
साधारणतः प्रेम तुम्हें पशु में उतार देता है। इसलिए तो प्रेम से लोग इतने भयभीत हो गए हैं; घृणा से भी इतने नहीं डरते जितने प्रेम से डरते हैं; शत्रु से भी इतना भय नहीं लगता जितना मित्र से भय लगता है। क्योंकि शत्रु क्या बिगाड़ लेगा? शत्रु और तुम में तो बड़ा फासला है, दूरी है। लेकिन मित्र बहुत कुछ बिगाड़ सकता है। और प्रेमी तो तुम्हें बिलकुल नष्ट कर सकता है, क्योंकि तुमने इतने पास आने का अवसर दिया है। प्रेमी तो तुम्हें बिलकुल नीचे उतार सकता है नरकों में। इसलिए प्रेम में लोगों को नरक की पहली झलक मिलती है। इसलिए तो लोग भाग खड़े होते हैं प्रेम की दुनिया से, भगोड़े बन जाते हैं। सारी दुनिया में धर्मों ने सिखाया है : प्रेम से बचो। कारण क्या होगा? कारण यही है कि देखा कि सौ में निन्यानबे तो प्रेम में सिर्फ डूबते हैं और नष्ट होते हैं।
प्रेम की कुछ भूल नहीं है; डूबने वालों की भूल है और मैं तुमसे कहता हूं, जो प्रेम में नरक में उतर जाते थे वे प्रार्थना से भी नरक में ही उतरेंगे, क्योंकि प्रार्थना प्रेम का ही एक रूप है। और जो घर में प्रेम की सीढ़ी से नीचे उतरते थे वे आश्रम में भी प्रार्थना की सीढ़ी से नीचे ही उतरेंगे। असली सवाल सीढ़ी को बदलने का नहीं है, न सीढ़ी से भाग जाने का है असली सवाल तो खुद की दिशा को बदलने का है।
तो मैं तुमसे नहीं कहता हूं कि तुम संसार को छोड़ कर भाग जाना; क्योंकि भागने वाले कुछ नहीं पाते। सीढ़ी को छोड़ कर जो भाग गया, एक बात पक्की है कि वह नरक में नहीं उतर सकेगा; लेकिन दूसरी बात भी पक्की है कि स्वर्ग में कैसे उठेगा? तुम खतरे में जीते हो, संन्यासी सुरक्षा में; नरक में जाने का उसका उपाय उसने बंद कर दिया। लेकिन साथ ही स्वर्ग जाने का उपाय भी बंद हो गया। क्योंकि वे एक ही सीढ़ी के दो नाम हैं। संन्यासी, जो भाग गया है संसार से, वह तुम्हारे जैसे दुख में नहीं रहेगा, यह बात तय है; लेकिन तुम जिस सुख को पा सकते थे, उसकी संभावना भी उसकी खो गई। माना कि तुम नरक में हो, लेकिन तुम स्वर्ग में हो सकते हो-और उसी सीढ़ी से जिससे तुम नरक में उतरे हो। सौ में निन्यानबे लोग नीचे की तरफ उतरते हैं, लेकिन यह कोई सीढ़ी का कसूर नहीं है; यह तुम्हारी ही भूल है।
और स्वयं को न बदल कर सीढ़ी पर कसूर देना, स्वयं की आत्मक्रांति न करके सीढ़ी की निंदा करना बड़ी गहरी नासमझी है। अगर सीढ़ी तुम्हें नरक की तरफ उतार रही है तो पक्का जान लेना कि यही सीढ़ी तुम्हें स्वर्ग की तरफ उठा सकेगी। तुम्हें दिशा बदलनी है, भागना नहीं है। क्या होगा दिशा का रूपांतरण?
जब तुम किसी को प्रेम करते हो-वह कोई भी हो, मां हो, पिता हो, पत्नी हो, प्रेयसी हो, मित्र हो, बेटा हो, बेटी हो, कोई भी हो-प्रेम का गुण तो एक है; किससे प्रेम करते हो, यह बड़ा सवाल नहीं है। जब भी तुम प्रेम करते हो तो दो संभावनाएं हैं। एक तो यह कि जिसे तुम प्रेम करना चाहते हो, या जिसे तुम प्रेम करते हो, उस पर तुम प्रेम के माध्यम से आधिपत्य करना चाहो, मालकियत करना चाहो। तुम नरक की तरफ उतरने शुरू हो गए।
प्रेम जहां पजेशन बनता है, प्रेम जहां परिग्रह बनता है, प्रेम जहां आधिपत्य लाता है, प्रेम न रहा; यात्रा गलत हो गई। जिसे तुमने प्रेम किया है, उसके तुम मालिक बनना चाहो; बस भूल हो गई। क्योंकि मालिक तुम जिसके भी बन जाते हो, तुमने उसे गुलाम बना दिया। और जब तुम किसी को गुलाम बनाते हो तो याद रखना, उसने भी तुम्हें गुलाम बना दिया। क्योंकि गुलामी एकतरफा नहीं हो सकती; वह दोधारी धार है। जब भी तुम किसी को गुलाम बनाओगे, तुम भी उसके गुलाम बन जाओगे। यह हो सकता है कि तुम छाती पर ऊपर बैठे होओ और वह नीचे पड़ा
404|