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________________ - ताओ उपनिषद भाग६ तुम्हारा मौलिक स्वरूप क्या है-जो तुम जन्म के पहले थे? जो तुम मरने के बाद होओगे? जो तुम समाधि के एकांत में होओगे वह तुम कौन हो? जो उस एक को जान लेता है, जो जान लेता है मैं कौन हूं, उसने सब जान लिया। इसलिए हम ज्ञानी को सर्वज्ञ कहते हैं। सर्वज्ञ का यह मतलब मत समझना जैसा कि समझ लिया जाता है। लोग बिलकुल लिटरल शब्दों को पकड़ लेते हैं। महावीर के लिए कहा गया है शास्त्रों में कि वे सर्वज्ञ हैं। तो जैनों ने बिलकुल ऐसा पकड़ लिया है कि जैसे अगर महावीर से तुम पूछो कि साइकिल का पंचर कैसे जोड़ा जा सकता है तो वे बता देंगे। सर्वज्ञ! कि तुम्हारी कार बिगड़ गई हो तो वे मेकेनिक का काम कर देंगे; कि तुम्हें बुखार चढ़ा है तो वे प्रिस्क्रिप्शन दवाई का लिख देंगे। सर्वज्ञ का यह मतलब नहीं है। सर्वज्ञ का इतना ही मतलब है कि जिसने स्वयं को जाना उसने सब जान लिया जो जानने योग्य है। कोई साइकिल का पंचर जोड़ने की कला जानने योग्य बात है? उसकी उपयोगिता होगी; सत्य उसमें कुछ भी नहीं है। उपादेयता होगी; लेकिन आत्यंतिक कोई भी सार उसमें नहीं है। महावीर ने सब जान लिया, इसका केवल इतना अर्थ है कि एक को जान लिया जिसमें सब छिपा है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि तुम उनसे कुछ भी पूछोगे तो जान लिया। लेकिन जैनों ने ऐसी हवा उड़ाई कि महावीर सर्वज्ञ हैं, और वे सब जानते हैं। बुद्ध ने बड़ी मजाक की है फिर। बुद्ध का मजाक सार्थक है। बुद्ध ने महावीर की मजाक नहीं की है, जैनों की ही मजाक की है। लेकिन महावीर की मजाक करना पड़ी, क्योंकि ये जैन अपनी मूढ़ता को महावीर के सर्वज्ञ के सहारे सम्हाल रहे हैं। महावीर की सर्वज्ञता इनकी मूढ़ता के लिए आधार बन रही है। तो बुद्ध ने बड़ी गहरी मजाक की है। और बुद्ध ने कहा है कि कोई-कोई कहते हैं कि ज्ञात-पुत्र महावीर सर्वज्ञ है, लेकिन मैंने यह भी सुना है कि ज्ञात-पुत्र महावीर कभी-कभी ऐसे मकान के सामने भीख मांगने खड़े हो जाते हैं जिसमें वर्षों से कोई नहीं रहता। कैसी सर्वज्ञता? यह भी पता नहीं कि इस घर में कोई रहता ही नहीं, वर्षों से खाली पड़ा है, उसके सामने भीख मांगने खड़े हो जाते हैं। यह कैसी सर्वज्ञता? राह पर चलते हैं, अंधेरा होता है सुबह का, सोए कुत्ते की पूंछ पर पैर पड़ जाता है। जब कुत्ता भौंकता है तब पता चलता है कि कुत्ता है। यह कैसी सर्वज्ञता? बुद्ध महावीर का मजाक नहीं कर रहे हैं। क्योंकि बुद्ध कैसे महावीर का मजाक कर सकते हैं? वह तो अपना ही मजाक होगा। जैनों का मजाक कर रहे हैं। वे यह कह रहे हैं, कैसे मूढ़ हो तुम! देखते भी नहीं कि महावीर ऐसे घर के सामने भी भीख मांगते हैं जहां कोई नहीं है, फिर तुम सर्वज्ञ कहे जा रहे हो! सर्वज्ञ का अर्थ इतना है कि जिसने स्वयं को जान लिया उसने जो जानने योग्य है वह सब जान लिया। ये तो सब न जानने योग्य बातें हैं। इनको जान कर भी क्या होगा? बुद्धिमान व्यक्ति बहुत बातें नहीं जानता, एक को ही जान लेता है, सार को पकड़ लेता है। सूफियों में कहानी है कि एक सम्राट यात्रा को गया। लौटते समय उसने अपनी पत्नियों को लिखा- उसकी एक हजार पत्नियां थीं—कि मैं आ रहा हूं, तो तुम सब खबर भेजो कि तुम्हारे लिए क्या ले आऊं। तो किसी ने हीरे-जवाहरातों के बहुमूल्य आभूषण मांगे; किसी ने स्वर्ण के बहुमूल्य पात्र बुलवाए; किसी ने अनूठी सुगंधियों को लाने के लिए लिखा; अलग-अलग, हजार पत्नियां थीं। सम्राट ने उनके पत्र देखे और फाड़ कर फेंकता गया। सिर्फ एक पत्नी ने लिखा था कि तुम घर वापस लौट आओ, यही भेंट है; और कुछ चाहिए नहीं। तुम आ गए, सब आ गया। ज्ञानी परमात्मा को मांगता है। अज्ञानी और सब मांगता है; परमात्मा से भी मांगता है तो और सब मांगता है। ज्ञानी सिर्फ एक को जान लेना चाहता है। एक आ गया, सब आ गया। प्रीतम आ गया, सब आ गया। और भेंट की बात ही बेहूदी है। |396
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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