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________________ परमात्मा का आशीर्वाद बरस रहा है __ कोई तुमसे कह देता है, अहा, कितने सुंदर हो! और तुम्हें खुद ही शक है, आईने में तुमने खुद ही शक्ल बहुत बार देखी है। तुम खुद भी नहीं कह सकते इतने विश्वास से कि अहा, कितने सुंदर हो। लेकिन दूसरे पर तुम भरोसा कर लेते हो। असत्य कितना सुंदर मालूम पड़ता है! और असत्य को जब तक तुम सुंदर मालूम करते हो, सुखद, प्रीतिकर, तब तक तुम कैसे सत्य से संबंध जोड़ पाओगे? तब तो जोड़ना बिलकुल मुश्किल है। असत्य तुम्हें लूट ही लेगा, असत्य तुम्हें बुरी तरह दबा डालेगा। और तुम धीरे-धीरे इतने झूठ हो जाओगे कि तुम यह भरोसा भी न ला सकोगे कि सत्य जैसी कोई चीज होती है। 'सज्जन विवाद नहीं करता।' विवाद तो वे ही करते हैं जिन्हें अपने सत्य पर भरोसा नहीं है। विवाद तो पैदा ही तब होता है जब तुम दूसरे के सामने कुछ सिद्ध करना चाहते हो। लेकिन यह बड़ा जटिल है। जब भी तुम दूसरे के सामने कुछ सिद्ध करना चाहते हो तो असलियत में तुम दूसरे के माध्यम से अपने सामने कुछ सिद्ध करना चाहते हो। तुम संदिग्ध हो। हिंदू सिद्ध करना चाहता है हिंदू धर्म सर्वश्रेष्ठ है। यह संदिग्ध है आदमी। यह तर्क का जाल फैला कर अपने को भरोसा दिलाना चाहता है। और दूसरे को दिला पाए या न दिला पाए, अपने को तो दिला ही लेगा। दूसरे के सामने हम सिद्ध करने की कोशिश करते हैं, ताकि दूसरे की आंखों में देख लें कि हमारा तर्क सार्थक है, तो हमें भी खयाल आ जाए। मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन एक रास्ते से गुजर रहा है। उसकी रंग-बिरंगी पोशाक और उसके चलने का ढंग, कुछ आवारा बच्चे उसके पीछे हो लिए हैं। कोई कंकड़ मार रहा है; कोई मजाक कर रहा है। उनसे छुटकारा पाने के लिए मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा कि सुनो, तुम्हें खबर है कि आज राजमहल में भोज दिया जा रहा है सारे नगर को! बच्चे साथ हो लिए। वे भूल गए कंकड़-पत्थर फेंकना; वे बात गौर से सुनने लगे। बच्चे बात गौर से सुनने लगे, मुल्ला भी गरमा गया; बातचीत में ज्यादा गरमी आ गई; वाचाल हो गया; भोजनों की चर्चा करने लगा कि कैसे-कैसे, क्या-क्या बन रहा है महल में आज, और तुम यहां क्या कर रहे हो! बात में जोश आ गया, जैसा कि बोलने वालों को अक्सर आ जाता है। बोलने से गरमी बढ़ती है। और अगर सुनने वाले उत्सुक दिखाई पड़ें तो बुखार और बढ़ता है। जब बुखार तेजी से हो जाता है तो सन्निपात। फिर बोलने वाला कुछ भी बोलता है। इतनी उसने जोर से चर्चा की और इतनी प्रगाढ़ता से भोजनों का विवरण दिया कि उसकी खुद की जीभ में लार आने लगी। बच्चे तो उसे छोड़ कर भागे महल की तरफ। जब बच्चे भागने लगे आगे की छाया में, और दूर खोने लगे सड़क पर, तो मुल्ला भी दौड़ने लगा। एक बार उसने अपने आपसे कहा, यह क्या कर रहा है नसरुद्दीन! पर उसने कहा कि बात में जरूर कुछ मामला होना ही चाहिए, नहीं तो बच्चे इतने जल्दी भरोसा नहीं कर सकते थे। कौन जाने भोज दिया ही जा रहा हो? हर्ज भी क्या है? देख तो लेना ही चाहिए चल कर। खुद ही झूठ को गढ़ा था। तुम खयाल करो, ये कहानियां केवल कहानियां नहीं हैं। तुमने बहुत से झूठ गढ़े थे; फिर धीरे-धीरे तुमने खुद ही उन पर विश्वास कर लिया। जब तुम दूसरे को विश्वास दिला देते हो तो तुम्हें खुद विश्वास आ जाता है। दूसरे के चेहरे में तुम अपनी तस्वीर देख लेते हो, और भरोसा आ जाता है कि ठीक होना ही चाहिए। दुनिया में जो लोग दूसरे के सामने कुछ सिद्ध करने में लगे रहते हैं वे वे ही लोग हैं जिनके भीतर अभी कुछ भी सिद्ध नहीं हो पाया है। 'सज्जन विवाद नहीं करता।' सज्जन वक्तव्य देता है। कह देता है जो उसे ठीक लगता है। वह किसी विवाद के लिए उत्सुक नहीं है, वह कुछ सिद्ध करने को उत्सुक नहीं है। वह कोई तर्क, वह कोई वकील नहीं है, वह कोई वकालत नहीं कर रहा है किसी सिद्धांत की। अपने अनुभव की बात कह देता है। 391
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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