SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 402
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग ६ उपनिषद जब पहली दफा पश्चिम में अनुवादित हुए तो अनुवाद करने वाले बड़े चकित हुए कि उपनिषदों में कोई तर्क नहीं हैं, सिर्फ स्टेटमेंट हैं, वक्तव्य हैं। उपनिषद कहते हैं, ब्रह्म है; तुम भी ब्रह्म हो। मगर कोई तर्क नहीं देते; कोई सिलोजिज्म कोई अरस्तू के ढंग का कि क्यों ऐसा है। इसके लिए कोई प्रमाण नहीं देते। वक्तव्य देते हैं; सीधे-सादे वक्तव्य हैं। जानना हो, तुम भी जान लो। बाकी उपनिषद का ऋषि सिद्ध करने की कोई कोशिश नहीं कर रहा है। जब भीतर सब सिद्ध हो जाता है तो कौन फिक्र करता है किसी के सामने सिद्ध करने की? तो एक तो वे लोग हैं जो दूसरों के सामने सिद्ध करके अपने को भरोसा दिलाना चाहते हैं। और दूसरे वे लोग हैं जिन्होंने अनुभव कर लिया, खुद सिद्ध हो गए। अब वे किसी के सामने कुछ सिद्ध नहीं करना चाहते हैं। , और मजा यह है कि जो दूसरे को चेष्टा करते हैं सिद्ध करने की, खुद चाहे धोखे में पड़ जाएं, दूसरे को कभी धोखा नहीं दे पाते। तुमने कभी कोशिश की कि जब भी तुम तर्क से किसी को समझाने की कोशिश करते हो, तो यह हो सकता है तुम उसका मुंह बंद कर दो-तर्क तीखा प्रहार है। किसी का मुंह बंद कर सकता है लेकिन क्या तुमने कभी यह पाया कि तर्क से तुमने कभी किसी दूसरे पर विजय कर ली हो, दूसरे के हृदय को जीत लिया हो? मुंह बंद कर सकते हो। मुंह बंद करने से कहीं हृदय जीता जाता है? वह आदमी कसमसाएगा। वह आदमी भीतर से तो जानता ही है कि मामला गलत है। सिर्फ तुम तर्क दे रहे हो। और तर्क तो गलत से गलत बात के लिए भी दिए जा सकते हैं। तर्क को कोई चिंता ही नहीं है कि तुम किसके लिए दे रहे हो। तर्क तो वेश्या है। वह किसी के भी साथ जाने को तैयार है। इसलिए तो कहा जाता है कि वकील और वेश्या स्वर्ग नहीं जा सकते। किसी के संगी-साथी नहीं हैं। मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन अपने वकील के घर गया। और उसने जाकर विस्तार से, एक मुकदमा उस पर चलने वाला है, उसकी सारी बात कही। सारी बात कह कर उसने कहा कि क्या खयाल है आपका जीत सकुंगा या नहीं? वकील ने कहा कि जीत सौ प्रतिशत निश्चित है; इसमें तो कोई मामला ही नहीं है। तुम जीते ही हुए हो, बस थोड़ा अदालत से गुजरना है, प्रक्रिया से। अन्यथा तुम जीते ही हुए हो। मुल्ला ने नमस्कार की और चलने लगा। वकील ने कहा, कहां जाते हो, मेरी फीस? और सारा इंतजाम? उसने कहा, कोई जरूरत नहीं है। यह तो मैंने विपक्षी की तरफ से सारी बात कही थी। अब लड़ने की कोई जरूरत ही नहीं। यह तो मेरे विरोधी की तरफ से मैंने मामला पेश किया था। और तुम कहते हो कि सौ प्रतिशत जीत, तो मामला खतम ही है। हार ही जाना बेहतर, अदालत तक जाने की जरूरत क्या है? लेकिन नसरुद्दीन गलत है। वकील तो हर हालत में यही कहता; तुम अपना मुकदमा रखते तो भी कहता कि सौ प्रतिशत जीत है; वकील तो हर हालत में कहेगा कि जीत है। और ऐसा भी नहीं है कि जीत नहीं हो सकती; सिर्फ बड़ा वकील चाहिए। अदालत सत्य और असत्य के बीच थोड़े ही निर्णय करती है, छोटे वकील और बड़े वकील के बीच निर्णय करती है। कोई अदालत दुनिया में कैसे सत्य और असत्य का निर्णय कर सकेगी? अदालतों का काम है सत्य और असत्य का निर्णय? समाधि में ही तय हो सकता है कि क्या सत्य और क्या असत्य। अदालत कैसे करेगी? अदालत तो इतना ही कर सकती है कि किसकी तरफ से बड़ा वकील लड़ रहा है, किसकी तरफ से छोटा वकील लड़ रहा है। कौन ज्यादा फीस दे सकता है, वह सत्य होकर निकल आता है। कौन कम फीस दे सकता है, वह असत्य हो जाता है। अमीर जीत जाता है; गरीब हार जाता है। वकील पर निर्भर है, तर्क पर निर्भर है कि तुम कितना मंहगा और सुसंस्कृत तर्क खरीद सकते हो, बस। तर्क का कोई पक्ष नहीं है, किसी के भी साथ हो लेता है। . सज्जन विवाद नहीं करता, क्योंकि सज्जन का तर्क पर भरोसा नहीं है, अनुभव पर भरोसा है। इसे थोड़ा ठीक से समझ लो। पंडित का तर्क पर भरोसा है; पंडित तर्क देता है। वह सिद्ध कर सकता है कि ईश्वर है या नहीं। ऐसे ही पंडित और दूसरे पंडितों को पैदा कर देते हैं जो नास्तिकों के पंडित हैं। क्योंकि जब तुम तर्क 392
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy