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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ मंच तुम्हारे बिना अधूरी होगी; यहां तुम न होओगे तो कुछ कमी होगी; कम से कम एक हृदय तो तुम्हारे बिना रेगिस्तान रह जाएगा, कम से कम एक हृदय में तो तुम्हारे बिना सब काव्य खो जाएगा; फिर कोई वीणा न बजेगी। ऐसा एक व्यक्ति की आंखों में, उसके हृदय में झांक कर तुम्हें पहली बार तुम्हारे मूल्य का पता चलता है। अन्यथा तुम्हें कभी मूल्य का पता न चलेगा। तुम कितना ही धन इकट्ठा कर लो, तुम व्यर्थ ही लगोगे। क्या सार है? तुम कितने ही बड़े पदों पर पहुंच जाओ, भीतर तुम जानते ही रहोगे कि खोखले हो और पदों पर तुम जबरदस्ती पहुंचते हो। इसलिए अगर तुम लोगों की आंखों में पदों पर से देखोगे तो तुम्हें लगेगा कि तुम्हारे बिना वे कहीं ज्यादा आनंदित होंगे; तुम्हारे होने से ही उन्हें कष्ट है; तुम्हारे न होने से बड़ी शांति होगी। तुम्हारे पास धन हो और तुम लोगों की आंखों में देखो तो तुम्हें लगेगा कि तुम शत्रु हो; तुमने जैसे उनका कुछ छीन लिया है, जो तुम्हारे हटते ही उन्हें वापस मिल जाएगा। प्रेम के अतिरिक्त तुम न केवल अपने को अकारण पाओगे, न केवल व्यर्थ पाओगे, बल्कि तुम हजारों आंखों में अनुभव करोगे कि तुम एक दुर्घटना हो, तुम्हारा होना एक अपशकुन है, कोई तुम्हारे कारण सौभाग्य से नहीं भरा है, तुम्हारे कारण सब तरफ दुर्भाग्य के चिह्न हैं। इन दुर्भाग्य के चिह्नों में, इन दुर्भाग्य की चीखती-पुकारती आवाजों के बीच तुम नर्क से घिर जाओगे। और अगर तुम्हें अपना जीवन नारकीय मालूम पड़ता है तो समझ लेना कि यही कारण है। प्रेम में कोई उतरा कि स्वर्ग में उतरा। प्रेम के अतिरिक्त और सब स्वर्ग कल्पनाएं हैं, प्रतीक हैं। एक ही स्वर्ग है वास्तविक, और वह यह है कि तुम किसी के लिए इतने सार्थक हो उठो कि दूसरा अपना जीवन खोने को राजी हो जाए तुम्हारे लिए। लेकिन इतने सार्थक तो तुम तभी हो सकोगे जब तुम दूसरे के लिए अपना जीवन खोने को राजी हो जाओ। प्रेम का अर्थ है जीवन से किसी बड़ी चीज को जान लेना, जिसके लिए जीवन भी गंवाया जा सकता है। जब तक जीवन तुम्हारे लिए सबसे बड़ी चीज है, तब तक तुम गरीब ही रहोगे। जीवन तो केवल अवसर है—जीवन से महत्तर को पा लेने का। जीवन तो केवल एक घड़ी है-अतिक्रमण के लिए; एक सीढ़ी है, जिससे तुम ऊपर उठ जाओ।. जीवन मंदिर नहीं है, केवल मंदिर का द्वार है। द्वार से ही कोई कभी कैसे तृप्त हो सकेगा? पर कैसे तुम जानोगे पहली झलक? पहली किरण कैसे उतरेगी तुम्हारे जीवन में जिससे तुम अनुभव कर पाओ कि तुम्हारे होने से कहीं कोई सौभाग्य फलित हुआ है? यह थोड़ा सा बारीक है, नाजुक है, और एक-एक कदम सम्हाल कर रखना। जब तुम किसी के प्रेम में उतर जाते हो-वह कोई भी हो, मित्र हो, मां हो, पति हो, पत्नी हो, प्रेयसी हो, प्रेमी हो, बच्चा हो, बेटा हो, तुम्हारी गाय हो, तुम्हारे बगीचे में खड़ा हुआ वृक्ष हो, तुम्हारे द्वार के पास पड़ी एक चट्टान हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, कोई भी हो-जहां भी प्रेम की रोशनी पड़ती है, उस प्रेम की रोशनी में दूसरी तरफ से प्रत्युत्तर आने शुरू हो जाते हैं। प्रेम की घड़ी में तुम अकेले नहीं रह जाते; कोई संगी है, कोई साथी है। और कोई तुम्हें इतना मूल्यवान समझता है कि तुम्हें अपना जीवन दे दे; तुम किसी को इतना मूल्यवान समझते हो कि अपना जीवन दे दो। जरूर तुमने कुछ पा लिया जो जीवन से बड़ा है, जिसके सामने जीवन गंवाने योग्य हो जाता है। प्रेम का स्वर तुम्हारे जीवन में उतर आया। ऐसा दूसरे की आंखों से घूम कर, दूसरे के दर्पण से घूम कर ही तुम्हें अपनी पहली खबर मिलती है कि मैं कौन हूं। अन्यथा तुम राह के किनारे पड़े कंकड़-पत्थर हो। प्रेम के माध्यम से गुजर कर ही पहली दफे तुम्हें अपने हीरे होने का पता चलता है। और जब ऐसी प्रतीति होने लगती है कि तुम मूल्यवान हो, तो यह बड़े राज की बात है कि जितना तुम्हें एहसास होता है तुम मूल्यवान हो, उतने ही मूल्यवान तुम होने भी लगते हो। क्योंकि अंततः तो तुम 30
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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