SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रेम को सम्हाल लो, सब सम्हल जाएगा 31 परमात्मा हो; अंततः तो तुम इस सारे जीवन का निचोड़ हो; अंततः तो तुम्हारी चेतना नवनीत है सारे अस्तित्व का । लेकिन प्रेम से ही तुम्हें पहली खबर मिलेगी कि तुम यहां यूं ही नहीं फेंक दिए गए हो। संयोगवशात तुम नहीं हो। कोई नियति तुमसे पूरी हो रही है। अस्तित्व की तुमसे कुछ मांग है। अस्तित्व ने तुमसे कुछ चाहा है। अस्तित्व ने तुम्हें कोई चुनौती दी है। अस्तित्व ने तुम्हें यहां बनाया है ताकि तुम कुछ पूरा कर सको। दुकान और बाजार काफी नहीं हैं; उन्हें कोई दूसरा भी कर लेगा। धन इकट्ठा करना जरूरी भला हो, पर्याप्त नहीं है; क्योंकि जब तुम मरोगे, वह सब पड़ा रह जाएगा। कुछ ऐसा भी कमा लेना जरूरी है जो मौत न मिटा सके। और मैं तुमसे कहता हूं, प्रेम एकमात्र संपदा है जिसे मृत्यु नहीं मिटा सकती। क्यों? क्योंकि प्रेम की संपदा के लिए तुम जीवन का दान देने को तैयार हो। जिस संपदा के लिए तुम जीवन का दान देने को तैयार हो, वह जीवन से बड़ी है। जो जीवन से बड़ी है वह मृत्यु से भी बड़ी है; क्योंकि मृत्यु तो जीवन का ही हिस्सा है। प्रेम के क्षण में ही तुम्हें जीवन और मृत्यु के पार होने का पहला अनुभव होता है। अगर इससे तुम वंचित रह गए, अगर तुम जान ही न पाए कि प्रेम क्या है, तो तुम अकारण ही आए, अकारण ही गए; तुमने जीवन से कुछ सीखा न । तुमने फूल तो बहुत देखे, लेकिन सुवास तुम न पा सके। तुमने घटनाएं तो बहुत देखीं, बहुत ऊहापोह से गुजरे, बड़ी आपाधापी में रहे, बड़ी यात्रा की, लेकिन कहीं पहुंच न सके। अंत की यात्रा में किसी मंदिर में निवास न हो पाया; तुम राह पर ही मरे; तुम राह के भिखारी ही रहे; कोई घर न मिला, कोई जगह न मिली जहां तुम शांत हो जाते, जहां तुम आनंदित हो जाते। प्रेम एक विराम है संसार के लिए। प्रेम के क्षण में संसार खो जाता है। प्रेम के क्षण में न बाजार है, न गणित है, न तर्क है। प्रेम के क्षण में जैसे इस बड़े मरुस्थल में एक मरूद्यान बन जाता है, एक छोटा सा हरा-भरा सरोवर ! चारों तरफ रेगिस्तान है; उसके मध्य में तुम एक सरोवर में लीन हो जाते हो। उस सरोवर से तुम्हें और बड़े सरोवरों की खबर मिलती है। उस हरित उद्यान से तुम्हें और बड़ी हरियालियों के इशारे मिलते हैं । उस थोड़े से विश्राम से तुम्हें परम विश्राम की याद आती है। प्रेम प्रशिक्षण है प्रार्थना के लिए। और जिसके पास प्रेम है, उसका भय खो जाता है। उसके पास डरने योग्य कुछ रहा ही नहीं । भयभीत तो तुम इसीलिए हो कि जीवन जा रहा है और संपदा तो तुमने कुछ कमाई नहीं । भयभीत तो तुम इसीलिए हो कि सांझ आने लगी, सूरज के ढलने का वक्त हुआ, पक्षी अपने घरों को लौटने लगे और तुम्हें अपने घर का पता भी नहीं है। भयभीत होकर तुम घबड़ा जाते हो। रात उतरने के करीब है! मौत आने लगी ! और अभी तुम राह पर ही थे। अभी तुम कहीं भी पहुंचे न थे। इसलिए कंपता ही रहता है व्यक्ति, जिसके जीवन में प्रेम की छाया नहीं है। वह ऐसे ही कंपता है जैसे तूफान में वृक्ष के पत्ते कंपते हैं; या भयंकर उत्तुंग लहरें उठती हैं सागर की, छोटी सी नाव कंपती है। ऐसे ही तुम कंपते हो । जीवन में बड़े तूफान हैं, बड़ी आंधियां हैं; और तुम्हारे पास प्रेम का लंगर भी नहीं है। नाव बड़ी छोटी है। जीवन बड़ा संघर्षपूर्ण है । लहरें भयंकर हैं; और तुम्हारे पास जीवन से पार की कोई कुंजी नहीं; एक भी ऐसा अनुभव नहीं जहां तुम्हारे अंधकार में कोई किरण उतरी हो जो तुम्हारे अंधकार का हिस्सा न हो, जहां तुम्हारे हृदय में कोई वा जा हो जो तुमने न बजाया हो, जो तुम्हारे हाथों की कृति न हो, जो अनंत ने बजाया हो । प्रेम की एक खूबी है: तुम प्रेम कर नहीं सकते; हो जाए, हो जाए; घट जाए, घट जाए। तुम इतना ही कर सकते हो कि बाधा न डालो; जब प्रेम घटता हो तो तुम भाग मत जाओ; जब प्रेम घटता हो तो तुम पीठ न कर लो; प्रेम घटता हो तो तुम आंख बंद न करो। तुम इतना ही कर सकते हो कि तुम बाधा न डालो। लेकिन प्रेम को करने के लिए तुम और क्या कर सकते हो ? कुछ भी नहीं ।
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy