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________________ राज्य छोटा और निसर्गोठमुन्य छो बड़ा मन है प्रकृति का, वह जागेगा। उसको पता ही नहीं कि तुम महात्मा हो; उसको पता ही नहीं कि तुमने ब्रह्मचर्य का संकल्प ले लिया है; उसने यह खबर ही नहीं सुनी। तुम्हारे चेतन मन और अचेतन मन के बीच बड़ा फासला है; खबर तक नहीं पहुंचती, संवाद का साधन भी नहीं है। और तुम्हें पता भी नहीं है कि तुम कैसे खबर पहुंचाओ। लड़ाई भी कोई संवाद की व्यवस्था है? खबर पहुंचाने का मतलब होता है कि चेतन और अचेतन करीब आएं। लड़ाई से तो दूरी बढ़ती जाती है। जिससे भी तुम लड़ोगे उससे दूरी बढ़ जाती है। दुश्मन से कहीं निकटता हो सकती है? तो गांधी के चेतन-अचेतन मन में जितना फासला है उतना तुम्हारे चेतन-अचेतन मन में भी नहीं है; भारी फासला है! उन्होंने तो अचेतन को बिलकुल दूर फेंक दिया है जैसे उससे कुछ लेना-देना नहीं है। उससे तो घबड़ाहट है, दुश्मनी है; उसी से तो लड़ाई है; उसी के कारण तो बार-बार कामवासना मन को पकड़ती है। रात चेतन मन तो सो गया, अचेतन जागा। अब इस अचेतन को न महात्मा होने का पता है, न सभ्यता-संस्कृति का कोई पता है; यह तो नैसर्गिक मन है। यह तो वैसा ही है जैसा पशुओं का है, साधारण आदमियों का है, पक्षियों का है। इस नैसर्गिक मन की वासना तो अछूती, अदम्य है; वह उठेगी, सपने बनाएगी। जिसे तुम जीवन में जागते में नहीं भोग पाए, अचेतन मन उसे निद्रा में सपने बना कर भोग लेगा। स्वप्नदोष स्वाभाविक है। तुम्हारे सौ में से निन्यानबे महात्मा स्वप्नदोष से पीड़ित होंगे। लेकिन कौन कहे? और कह कर कौन झंझट ले? वे राजी भी नहीं होंगे। लेकिन गांधी ईमानदार हैं; उन्होंने स्वीकार कर लिया। इस स्वीकृति में ही उनके अगले जन्मों की संभावना है कि वे रूपांतरित हो जाएं। लेकिन गांधी के पीछे बहुत से अनुयायी पैदा हो जाएंगे। ये अनुयायी बड़ी मुश्किल में पड़ेंगे, और ये अनुयायी ऐसी स्थिति में आ जाएंगे जिसको कि करीब-करीब विक्षिप्तता कहा जा सकता है। अब गांधी कहते हैं, अस्वाद व्रत है! स्वाद मत लो! तुम्हें भी बात जमती है कि क्या भोजन में स्वाद ले रहे हो? रखा क्या है भोजन में? निंदा के स्वर बड़ा तर्क रखते हैं अपने पीछे, क्या रखा है भोजन में? कोई भी निंदा कर सकता है भोजन की। और तुम्हें भी निंदा जमती है, क्योंकि तुम कभी ज्यादा खा जाते हो, कभी पेट में तकलीफ होती है, वजन बढ़ता जाता है, चर्बी बढ़ती जाती है, बीमारियां आती हैं। तुम्हें भी लगता है कि ज्यादा भोजन करके तुम दुख ही तो पा रहे हो। और इतनी बार तो भोजन कर लिया, कुछ मिला तो है नहीं। इस स्वाद में रखा भी क्या है? जरा सा जीभ पर स्पर्श हुआ, स्वाद खो गया। और जिंदगी भर तो यही दोहरा रहे हो। अस्वाद व्रत है! स्वाद मत लो! बिना स्वाद के भोजन करो! अब बड़ी मुश्किल में पड़ोगे। यह होगा कैसे? बिना स्वाद के भोजन कैसे करोगे? और जितना भोजन बिना स्वाद के करने की कोशिश करोगे, तुम पाओगे; स्वाद की आकांक्षा उतनी ही प्रगाढ़ होती जाती है। गांधी अपने भोजन को बिगाड़ने के लिए नीम की चटनी साथ में रख लेते थे। अब नीम की भी कोई चटनी होती है? लेकिन अस्वाद जिसने व्रत ले लिया, उसके काम की है। लेकिन नीम की चटनी भी स्वाद है; कड़वा स्वाद है। उससे तुम स्वाद को मार सकते हो, अस्वाद को उपलब्ध नहीं हो सकते। वह तो तरकीब छिपाने की है, वह तो भोजन को बिगाड़ने की है। ध्यान रखें, कुस्वाद अस्वाद नहीं है, वह भी स्वाद है। लेकिन अगर नीम की चटनी खा ली भोजन के साथ बार-बार तो भोजन का स्वाद बिगड़ जाएगा; तुम कैसे अस्वाद को उपलब्ध हो जाओगे? लेकिन अनुयायी तो मिल जाते हैं इन बातों के लिए भी। और फिर एक बड़े महिमाशाली व्यक्तित्व का प्रभाव होता है। लुई फिशर अमरीका से गांधी को मिलने आया। तो वे तो मेहमानों के भी भोजन में चटनी रखवा देते थे। लुई फिशर साथ ही बैठा भोजन करने। प्रसिद्ध विचारक, लेखक, और गांधी पर उसने बाद में बड़ी महत्वपूर्ण किताब लिखी। तो गांधी ने चटनी रखवाई; वह उनका खास, सबसे ज्यादा मनचीता हिस्सा था भोजन का। क्योंकि अस्वाद 367
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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