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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ कर रहा है, तुम हर हालत में कसूर खोज लेते हो। कसर खोजना ही चाहते हो, खोज ही लोगे। तम्हें भलीभांति अनुभव से भी पता है कि जब तुम्हें कसूर ही खोजना हो, तब दुनिया में तुम्हें कोई ताकत रोक नहीं सकती कसूर खोजने से। कुछ न कुछ तुम खोज ही लोगे। कितना ही अतयं मालूम पड़े, तर्कहीन मालूम पड़े, और कितना ही असंगत मालूम पड़े दूसरों को, तुम्हें नहीं मालूम पड़ेगा। लेकिन संत इससे ठीक विपरीत है। कबीर ने कहा है, निंदक नियरे राखिए, आंगन-कुटी छवाय। जो तुम्हारी निंदा करते हों उनको तुम मेहमान की तरह घर में ही रख लो, पास ही रखो उनको सदा। क्योंकि वे एक बहुत बड़ा काम करते हैं, वे हमेशा तुम्हें कसूरवार ठहराते हैं। और संत अपने कसूर के खोजने में लगा है। जो भी उसे बता दे उसकी भूल, वह तैयार है। क्योंकि जैसे ही वह अपनी भूल को देख लेता है वैसे ही बदलने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। तुम अपनी भूलें बचा रहे हो; तुम अपने दोष बचा रहे हो; तुम अपने दोषों की भी रक्षा करते हो। और तब अगर तुम्हारा जीवन नरक हो जाता है तो कौन जिम्मेवार है? तुमने गलत-गलत तो बचाया, तुमने सब इकट्ठा कर लिया; तुमने कभी स्वीकार ही न किया कि मुझमें कोई गलती है। इसलिए सब गलतियां बसती चली गईं। स्वीकार करते तो वे सब मिट सकती थीं। तुमने अगर शांत भाव से स्वीकार किया होता कि मैं क्रोधी आदमी हूं...। ध्यान रखना, अगर तुमने किसी दिन यह स्वीकार कर लिया कि मैं क्रोधी आदमी हूं तो तुम्हारा क्रोधी आदमी मरने लगा। क्योंकि कहीं क्रोधी यह स्वीकार करते हैं कि मैं क्रोधी? असंभव! तुमने अगर स्वीकार कर लिया कि मैं अहंकारी हूं, दंभी हूं-कहीं अहंकारी यह स्वीकार करते हैं? यह तो विनम्रता का सूत्रपात हो गया। यह तो विनम्रता के अंकुर निकलने लगे। तुमने अगर स्वीकार कर लिया कि मैं पागल हूं तो तुम स्वस्थ होने लगे। क्योंकि पागल कहीं स्वीकार करते हैं? पागलों को समझा सकते हो कि तुम पागल हो? कोई उपाय नहीं। मनसविद कहते हैं कि जब तक पागल को समझाया जा सके कि वह पागल है, और वह मानने को राजी हो, तब तक वह पागल नहीं है। रुग्ण होगा, लेकिन अभी पागल नहीं है। अभी इलाज बिलकुल आसान है। लेकिन जिस । दिन पागल को समझाना असंभव हो जाता है कि वह पागल है, उस दिन वह सीमा के बाहर चला गया। अब उसे वापस लौटाना बहुत मुश्किल है।। तुम मानते नहीं कि तुम क्रोधी हो। तुम मानते नहीं कि तुम लोभी हो। तुम मानते नहीं कि तुम कामी हो। तुम मानते नहीं कि तुम दंभी हो। तुम इन सबको बचा रहे हो। अब तुम खुद ही सोच लो, कांटों को बचाओगे तो नरक के अतिरिक्त कहां पहुंचोगे? वे कांटे तुम्हें चुभेगे जो तुमने बचा लिए हैं। कोई अगर कहे कि यह कांटा लगा है, तो तुम उससे लड़ने को खड़े हो जाते हो। कबीर कहते हैं, आंगन-कुटी छवाय! उसको तो घर में ही बसा लो। क्योंकि कांटे बताता है तो निकालने की संभावना है। लेकिन नहीं, तुम तो उनको आंगन-कुटी छवा कर रखते हो जो तुम्हारी स्तुति करते हैं, खुशामद करते हैं। जो तुमसे कहते हैं कि अहो, तुम जैसा कभी कोई हुआ! ऐसा सुंदर, ऐसा शालीन, ऐसा गरिमापूर्ण! तुम तो प्रतिमा हो आदर्श की! उनको तुम घर रखना चाहते हो। और वे दुश्मन हैं। क्योंकि वे तुम्हें भ्रांति से भर रहे हैं। वे तुम्हें काट डालेंगे। उनका कोई प्रयोजन है। पहले वे तुम्हें फुलाएंगे; फिर अपना प्रयोजन पूरा कर लेंगे। ऐसा आदमी खोजना मुश्किल है जो खुशामद के चक्कर में न पड़ जाता हो। बहुत मुश्किल है। अगर तुम खोज लो कोई आदमी ऐसा जो खुशामद के चक्कर में न पड़ता हो, तो समझ लेना कि संत है। क्योंकि खुशामद के चक्कर में वही नहीं पड़ता जो अपने दोष देखना शुरू कर देता है। तुम उसको धोखा न दे सकोगे। उसे पता है कि वह क्रोधी है, और तुम कह रहे हो कि आप जैसा शांत पुरुष कभी देखा नहीं! आपके पास ही आकर आनंद की वर्षा हो 356
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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