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________________ प्रत्येक व्यक्ति अपने लिए जिम्मेवार हुँ 355 निकालो! अगर तुम्हारा प्रेम समर्थ है तो इस सबको पार करके भी बचेगा। और निश्चित ही, अगर इस सबको पार करके तुम्हारा प्रेम बचेगा तो निखर कर बचेगा। और ये सब आएंगे और चले जाएंगे, आकाश तो बना रहता है। बादल आते हैं, घिरते हैं, तूफान उठते हैं, आकाश बना रहता है। आकाश डरता है बादलों से ? भयभीत होता है ? तुम्हारा प्रेम अगर है तो सब कलह के बादल आएंगे और चले आएंगे, और हर तूफान के बाद तुम पाओगे एक गहन शांति आ गई। वह शांति सुलह की नहीं है, वह शांति वास्तविक है। वह दो व्यक्तियों ने अपनी व्यर्थता को फेंक दिया; दो व्यक्ति शांत हो गए, और उस शांति में करीब आ गए। और एक बार तुम्हें यह समझ में आ जाएगा तब तुम पाओगे कि प्रामाणिक होने का मजा कैसा है। प्रामाणिकता ही धर्म है। और तब धीरे-धीरे, धीरे-धीरे जितने तुम प्रामाणिक बनोगे और जितनी तुम्हारे जीवन में शांति, वास्तविक शांति — सुलह नहीं, सुलह झूठी शांति का नाम है— जितनी वास्तविक शांति के क्षण आने लगेंगे, जितना तुम्हारे जीवन में बादल हटने लगेंगे और खुले आकाश का दर्शन होगा, जितना तुम आकाश की नीलिमा में तिरने लगोगे, उतना ही तुम पाओगे कि हर क्रोध व्यर्थ था, हर संघर्ष बेबुनियाद था; तुम पीड़ा अपनी दूसरे के कंधों पर व्यर्थ ही डाल रहे थे। उस शांति में ही तुम्हें दिखाई पड़ेगा, क्योंकि शांति आंख है। उसमें वे सब उलझनें साफ हो जाती हैं जो कि क्रोध से भरी आंखों में कभी साफ नहीं हो सकतीं। तब तुम पाओगे कि जिम्मेवार तो तुम ही थे। तुम घर क्रोधित लौटे थे दफ्तर से; मालिक ने कुछ कहा था, दफ्तर की हालत कुछ थी । क्रोध से तुम भरे चले आए थे और पत्नी पर टूट पड़े थे। कोई भी छोटी बात पकड़ ली होगी कि रोटी क्यों जल गई। कोई भी छोटी बात पकड़ ली होगी कि तुम्हारा अखबार क्यों फट गया, कि तुम्हारी बटन क्यों नहीं सीयी गई है। यह छोटी सी बात बहुत बड़ी हो गई, क्योंकि भीतर तुम क्रोध से उबल रहे थे और बहाना खोज रहे थे। और अगर तुम इसको गौर से देखते जाओगे तो धीरे-धीरे पाओगे, दुनिया में कोई तुम्हें क्रोधित नहीं कर रहा है। तुम क्रोधित होना चाहते हो, दूसरे अवसर बन जाते हैं। कोट है तुम्हारे पास क्रोध का, खूंटी तुम किसी को भी बना लेते हो और टांग देते हो। जिस दिन यह तुम्हें दिखाई पड़ेगा उस दिन तुमने आत्मवान होना शुरू किया। तुम्हें किसी मंदिर जाने की जरूरत न आएगी, न किसी मस्जिद जाने की । तुम जहां हो, वहीं से तुम्हारी आत्मा का पहला सूत्रपात हो गया। तुम्हारा पुनर्जन्म शुरू हुआ। लाओत्से कहता है, 'वैर में सुलह के बाद भी थोड़ा वैर शेष रह जाता है।' यह सुलह किस काम की? क्योंकि जो बच गया है, जो अंगारा शेष रह गया है, वह फिर आग पैदा कर देगा। एक छोटी चिनगारी भी काफी है। 'इसे संतोषजनक कैसे कहा जा सकता है ?' सुलह से संतोष मत करना, शांति से संतोष करना। और सुलह और शांति का फर्क साफ समझ लेना । सुलह का अर्थ है, लड़ने से बचने की कोशिश; शांति का अर्थ है, लड़ने के पार हो जाना। शांति का अर्थ है, लड़ाई खो गई, लड़ाई का मूल कारण खो गया। सुलह का अर्थ है, मूल कारण मौजूद है, लेकिन लड़ाई करना अभी सुविधापूर्ण नहीं है; इसलिए सुलह कर ली। देखेंगे कल । लोग कहते हैं न झगड़े में, देख लेंगे। उसका मतलब यह है कि अभी सुविधा नहीं है, देख लेंगे वक्त पर कभी मौके की तलाश रखेंगे। लोग जिंदगी भर मौके की तलाश करते हैं । निश्चित ही, उनके भीतर घाव बना रहता होगा हरा, सूखने न देते होंगे। 'इसलिए समझौते में संत अपने को दुर्बल पक्ष मानते हैं, और दूसरे पक्ष पर कसूर नहीं मढ़ते।' संत का अर्थ ही यही है, जो दूसरे पर कसूर नहीं मढ़ता, हर हालत में अपना कसूर खोज लेता है । तुम हर हालत में दूसरे का कसूर खोज लेते हो। और मैं कहता हूं, हर हालत में। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दूसरा क्या
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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