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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ र तो वह पूछेगा भी पा से निकलेगा। उसकी सहसाब लगाएगा, लकड़ी से गिरवा दे और हंसी करे! तो भी अंधा पूछ कर भी लकड़ी से जांच-पड़ताल करेगा, क्योंकि कई बार लोग मजाक कर गए हैं। और इतने कठोर लोग भी हैं कि अंधों से भी मजाक कर लेते हैं। इतने पथरीले लोग भी हैं कि अंधा गिर जाए उस पर भी हंस लेते हैं। तो अंधा सोचेगा, विचारेगा, हिसाब लगाएगा, लकड़ी से जांच-पड़ताल करेगा, दरवाजे के पास पहुंचेगा, बड़ी व्यवस्था से निकलेगा। उसकी सारी व्यवस्था इसीलिए है कि उसे दिखाई नहीं पड़ता। दिखाई पड़ जाए तो वह पूछेगा भी नहीं किसी से। जरूरत ही न रही। इसलिए लाओत्से कहता है, 'इसे कोई नहीं जानता है; इसे कोई व्यवहार में नहीं ला सकता है।' क्योंकि जब तक तुम जानते नहीं तब तक तो तुम व्यवहार में लाओगे कैसे? और जब तुम जान लोगे तब व्यवहार में लाने की जरूरत ही न रही, व्यवहार में आ जाएगा। इसलिए असली बात है जान लेना। ज्ञान ही क्रांति है। मगर ज्ञान उधार न हो, बासा न हो, तभी ज्ञान है। अपना हो, मौलिक हो, सीधा-सीधा जाना गया हो, प्रत्यक्ष हो, परोक्ष न हो, किसी और का बताया हुआ न हो; अन्यथा तुम अंधे रहोगे। कितना ही वेद चिल्लाते रहें कि ब्रह्म है और कुछ भी नहीं है। लेकिन कौन जाने कोई मजाक कर रहा हो। अंधे आदमी से मजाक की जाती है। कौन जाने जिन्होंने वेद लिखे वे खुद ही धोखे में रहे हों? विश्वास कैसे करे? उपनिषद चिल्लाते हैं, भरोसा नहीं आता। भरोसा तो तुम्हें तभी आएगा जब तुम देख लोगे, एक झलक मिल जाए। और वह झलक अगर तुम्हें चाहिए हो तो उपनिषद, वेदों को एक तरफ रख देना। तभी किसी दिन तुम्हारे जीवन में वेद और उपनिषद सच हो पाएंगे। तुम गवाह बन सकते हो वेद-उपनिषदों की सचाई के, अनुयायी नहीं। तुम अगर उन्हें मान कर चले तो तुम कभी न पहुंचोगे। अगर तुम उन्हें हटा कर चले तो तुम जरूर पहुंच जाओगे। और एक दिन तुम गवाह बन सकोगे कि उपनिषद ठीक कहते हैं। शास्त्रों से सिद्धांत सीखा नहीं जा सकता; शास्त्रों में सिद्धांत है। सीखा तो जीवन से ही जा सकता है। कोई जीवन के शास्त्र का पर्याय नहीं है। जिस दिन तुम जान लोगे जीवन से उस दिन सब शास्त्र तुम्हारे लिए सही हो जाएंगे। और ध्यान रखना, मैं कहता हूं सब शास्त्र। जब तक तुम शास्त्रों को मान कर चलोगे तब तक वेद सही रहेगा तो कुरान गलत रहेगा; कुरान सही रहेगा तो वेद गलत रहेगा, बाइबिल गलत रहेगी; बाइबिल सही रहेगी तो धम्मपद गलत रहेगा। अगर तुम शास्त्र को मान कर चलते हो तो तुम या तो हिंदू होगे, या मुसलमान, या ईसाई, या जैन, या बौद्ध, या सिक्ख; धार्मिक नहीं। जिस दिन तुम जीवन के शास्त्र को पढ़ लोगे...। तो जीवन के शास्त्र पर किसी की बपौती नहीं है। वह न हिंदू का है, न मुसलमान का है। जिस दिन तुम जीवन का शास्त्र पढ़ लोगे उस दिन तुम सारे शास्त्रों के गवाही हो जाओगे कि कुरान भी ठीक कहती है, बाइबिल भी ठीक कहती है, वेद भी ठीक कहते हैं, उपनिषद भी ठीक कहते हैं। क्योंकि अब तुमने जीवन की भाषा समझ ली। अब संस्कृत धोखा न दे सकेगी, अरबी छिपा न सकेगी। अब अरबी में कही जाए बात कि संस्कृत में कि हिब्रू में, कोई फर्क न पड़ेगा। तुमने जीवन से पढ़ ली। अब किसी भी भाषा में कही जाए, किसी भी ढंग से कही जाए, कोई भी रूप दिया जाए, तुम पहचान ही लोगे। तुम्हें स्वाद मिल गया पानी का, अब पानी मानसरोवर का हो कि काबा का, कोई फर्क नहीं पड़ता। तुम स्वाद जानते हो। तुम पानी को चख लोगे, तुम पहचान लोगे, तुम्हारे ओंठों ने स्वाद जान लिया। तब सभी शास्त्र सही हो जाते हैं। जब तक तुम्हारे लिए एक शास्त्र सही रहे और दूसरा गलत रहे, तब तक समझना कि तुम जीवन के शास्त्र से बच रहे हो। जीवन का शास्त्र वह मूल स्रोत है जहां से सब शास्त्रों का जन्म होता है, जहां से सब ज्ञानी खबर लाते हैं। तुम भी उसी स्रोत से खबर लाओ। और कोई रास्ता नहीं है। 'इसलिए संत कहते हैं: जो संसार की गालियों को अपने में समाहित कर लेता है, वह राज्य का संरक्षक है। जो संसार के पाप अपने ऊपर ले लेता है, वह संसार का सम्राट है। सीधे शब्द टेढ़े-मेढ़े दिखते हैं।' 338
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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