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ताओ उपनिषद भाग ६
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मार डाले, तूने कभी यह सोचा कि एक चींटी भी तू बना नहीं सकता, एक सूखे पत्ते को हरा नहीं कर सकता, टूट गई डाल को वापस जोड़ नहीं सकता, जीवंत नहीं कर सकता ! मारना तो बहुत आसान है अंगुलीमाल, जिलाना ?
अंगुलीमाल का फरसा नीचे गिर गया। वह बुद्ध के चरणों पर गिर गया। और उसने कहा, मुझे जिलाने की कला सिखाओ। मैं तो यही सोचता था कि यह बलवान होना है, लेकिन साफ हो गई है बात कि यह कोई बल नहीं है। अहंकार का बल कोई बल नहीं है। वह तोड़ता है; वह बनाता नहीं। तो इसे तुम बल की परिभाषा समझ लो कि शक्ति सदा सृजनात्मक है। निर्बलता सदा विध्वंसात्मक है। लेकिन निर्बलता बलपूर्ण मालूम होती है, क्योंकि वह तोड़ती है । हिटलर और नेपोलियन और माओ और स्टैलिन सब कमजोर लोग हैं। बड़े बलशाली मालूम पड़ते हैं, क्योंकि तोड़ने में बड़े कुशल हैं; अंगुलीमाल के वंशज हैं। अंगुलीमाल भी झेंप जाए। अंगुलीमाल ने तो नौ सौ निन्यानबे लोग ही मारे थे, स्टैलिन ने कितने मारे हिसाब लगाना मुश्किल है। अंदाज एक करोड़ । हिटलर ने कितने मारे मुश्किल है पता लगाना । एक करोड़ से भी ज्यादा । मिटाना बल नहीं है। लेकिन मिटाने वाला आदमी बलपूर्वक मिटाता है और देखने वालों को लगता है बड़ी शक्ति प्रकट हो रही है।
सृजन शक्तिशाली है, लेकिन सृजन बड़ा कमजोर मालूम पड़ता है। किसी कवि को कविता लिखते देख कर तुम्हें कभी खयाल उठा है कि यह कवि बलशाली है ? किसी चित्रकार को चित्र बनाते देख कर तुम्हें लगा है कि यह महा शक्तिशाली व्यक्ति है? या किसी मूर्तिकार को गढ़ते हुए मूर्ति को ? कौन सोचेगा कि चित्रकार, मूर्तिकार, संगीतज्ञ, नर्तक, ये बलशाली हैं। लेकिन मैं तुमसे कहता हूं, यही असली बलशाली हैं। ये निर्बल दिखाई पड़ते हैं; इनकी निर्बलता जल जैसी है । हिटलर, माओत्से तुंग, स्टैलिन बलशाली मालूम पड़ते हैं, इनका बल पत्थर जैसा है। इनके नीचे दब कर कोई मर सकता है। इनके द्वारा किसी के ऊपर जीवन की वर्षा नहीं हो सकती।
राजनीति में मत खोजना बल, न खोजना धन में, न खोजना पद-प्रतिष्ठा में, क्योंकि वहां पत्थर ही पत्थर हैं। जितना तुम्हारे पास धन हो जाएगा उतनी ही तुम्हारी आत्मा सिकुड़ जाएगी और पथरीली हो जाएगी। जितने बड़े पद पर तुम पहुंचोगे, पहुंच ही न पाओगे अगर पथरीला हृदय न हो। क्योंकि लोगों के हृदय पर पैर रखने पड़ेंगे, सिर काटने पड़ेंगे, लोगों की सीढ़ियां बनानी पड़ेंगी, लोगों का साधनों की तरह उपयोग करना पड़ेगा। धोखाधड़ी, बेईमानी, पाखंड, सब करना पड़ेगा, तभी तुम पहुंच पाओगे बड़े पदों पर । तुम पत्थर हो जाओगे । राष्ट्रपति होते-होते भीतर की आत्मा बिलकुल ही मर गई होती है। वहां कोई होता ही नहीं, सिंहासन पर मुर्दे बैठे रहते हैं।
सृजन है असली बल, लेकिन दिखाई नहीं पड़ता; क्योंकि वह जल की तरलता जैसा है। जो बनाते हैं उन्हें सम्मान देना; जो मिटाते हैं उनसे सम्मान वापस ले लो। अंगुलीमालों की पूजा बहुत हो चुकी । उस पूजा में खतरा है, क्योंकि तुम भी जिसकी पूजा करते हो उसी जैसे होने लगते हो। तुम जिसको आदर देते हो उसी जैसे होने लगते हो। तुम जिसको आदर्श की तरह देखते हो, अनजाने तुम अपने को उसी के रूप में ढालने लगते हो। पत्थरों की पूजा बहुत हो चुकी। जलधार को समझो, सृजन की धार को समझो। कमजोर दिखाई पड़ती चीजों को खोजो। तुम पाओगे वहां बड़ा बल छिपा है।
कोई वीणा पर एक धुन उठा रहा है। क्या है ताकत वहां ? एक पत्थर मार दो, वीणा भी टूट जाएगी, संगीत खो जाएगा। बड़ा कोमल फूल है संगीत का । लेकिन काश तुम उसे बरस जाने दो अपने ऊपर तो तुम नये हो जाओगे, तुम्हें अपने ही भीतर नये आयाम मिल जाएंगे। तुम अपने ही भीतर आंगन की जगह आकाश को खोज लोगे। छोटी क्षुद्र सीमाएं गिर जाएंगी। असीम की झलक मिलने लगेगी।
एक नर्तक नाच रहा है। उसके घूंघर बज रहे हैं। क्या है वहां? शरीर की ऊर्जा से एक संगीत पैदा कर रहा है; एक लयबद्धता पैदा कर रहा है; शरीर की गति से एक अदृश्य लोक निर्मित कर रहा है। एक क्षण को यह जगत खो