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________________ बिर्बल के बल राम ऐसा आदमी तो पहले कभी आया न था। जो आए थे वे या तो मृत्यु से डरते थे और भागते थे। जो आए थे या तो भीरु लोग थे, भाग जाते थे; या बहादुर लोग थे, तलवार निकाल कर लड़ने को खड़े हो जाते थे। उन दोनों तरह के आदमियों से अंगुलीमाल भलीभांति परिचित था। उन दोनों से वह निपट सकता था। उसमें कोई अड़चन न थी। यह आदमी कुछ तीसरी तरह का है। अंगुलीमाल ने नीचे से ऊपर तक देखा। तलवार की तो बात दूर, हाथ में कुछ भी नहीं है, भिक्षा-पात्र है। अंगुलीमाल ने फिर एक बार कहा। इस आदमी पर उसे बड़ी दया आने लगी, जैसे कोई छोटा बच्चा आ रहा हो, और उसके हाथ कंपने लगे। और उसने कहा कि मैं फिर तुम्हें कहता हूं कि आगे मत बढ़ो! मैं आदमी बुरा हूं, वहीं रुक जाओ! और बुद्ध ने एक बड़ा अनूठा वचन कहा है जो मुझे बड़ा ही प्यारा रहा। बुद्ध ने कहा, अंगुलीमाल, मुझे रुके सालों हो गए, तब से मैं चला ही नहीं। जब मन रुक जाता है तो कैसा चलना? मैं तुमसे कहता हूं कि तू ही चल रहा है, मैं नहीं चल रहा हूं। मैं तो खड़ा हुआ हूं। तू गौर से देख! बुद्धों से बात करना ठीक नहीं, खतरे से खाली नहीं। अंगुलीमाल फंस गया। वह हंसा जोर से। और उसने कहा कि तुम पागल हो। मुझे पहले ही शक हो गया था कि कोई पागल ही ऐसा आएगा। चलते हुए को खड़ा हुआ कहते हो और मुझ खड़े हुए को चलता हुआ! मैं समझा नहीं, क्या तुम्हारा मतलब है? और जब कोई बुद्ध से पूछने लगे तो गया, फिर उसके बचने का कोई उपाय नहीं। अंगुलीमाल ने पूछा, और वहीं वह हार गया। वह भूल ही गया कि मारना है इस आदमी को; मैं हूं बधिक, काटना है इस आदमी को। हिंसा जैसी चीज करनी हो तो बुद्ध जैसे लोगों के साथ जल्दी कर लेनी चाहिए। इसमें देर करना खतरनाक है। जरा सा अवसर, कि बुद्ध की ऊर्जा तुम्हें आपूरित कर लेगी, सब तरफ से घेर लेगी, तुम्हें निरस्त्र कर देगी। बुद्ध पास आ गए हैं। और बुद्ध ने कहा, तू गौर से देख, मेरी आंखों में देख। मन ठहर गया; वासना रुक गई; चलना कैसा? ऐसे कठिन सवाल अंगुलीमाल ने न तो कभी सोचे थे, न मौका आया था। सीधा-सादा आदमी था। अपराधियों से ज्यादा सीधे-सादे आदमी दुनिया में खोजने मुश्किल हैं। सज्जन तो जरा तिरछे होते हैं, दुर्जन बिलकुल सीधा होता है। उसका गणित साफ है। वह कोई छिपाधड़ी धोखाधड़ी नहीं करता। बुरा है, यह उसे भी स्पष्ट है। वह पाखंडी नहीं है। पाखंडी खोजना हों तो मंदिर-मस्जिदों, गुरुद्वारों में खोजने चाहिए। वे तुम्हें तिलक लगाए, माला फेरते मिलेंगे। अपराधियों में पाखंडी नहीं हैं। वे सीधे-सादे लोग हैं। बुरे हैं, खतरनाक हैं, पर पाखंडी नहीं हैं। - वह अपने सिर पर हाथ रख कर सोचने लगा। उसने कहा, तुम मुझे बिगूचन में डालते हो। बुद्ध ने कहा, तू बातचीत में मत पड़, अन्यथा तू उलझ जाएगा। तू अपना काम कर। तू उठा अपना फरसा और मुझे काट दे। लेकिन काटने के पहले मैं तुझसे एक बात पूछता हूं। इसके पहले कि तू मुझे काटे, मरते आदमी की एक इच्छा पूरी कर दे। यह जो सामने वृक्ष है, इसके कुछ पत्ते फरसे से काट कर मुझे दे दे। उसने उठाया फरसा, पत्ते क्या उसने एक शाखा काट दी और कहा, यह लो। इसका क्या करोगे? बुद्ध ने कहा, बस यह आधा काम तूने कर दिया, आधा और। इसे तू वापस जोड़ दे। उसने कहा, तुम निश्चित पागल हो। टूटी शाखा कहीं वापस जोड़ी जा सकती है? तो बुद्ध ने कहा, बस एक सवाल और, फिर मैं कुछ भी न पूछंगा। तू मेरी गर्दन काट; बात खतम कर। क्या तू उस आदमी को बहादुर कहता है जो तोड़ सकता है और जोड़ नहीं सकता? क्या उसको तू शक्तिशाली कहता है जो तोड़ सकता है और जोड़ नहीं सकता? या उसे शक्तिशाली कहता है जो जोड़ सकता है? यह शाखा तो बच्चे भी तोड़ देते अंगुलीमाल, तू कोई बहादुर नहीं है। हम तो सोचे थे कुछ बहादुर आदमी मिलेगा। तूने नौ सौ निन्यानबे आदमी 335
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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