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ताओ उपनिषद भाग६
प्रतिष्ठा मिलती थी। अब खतरे का मामला था। बुद्ध के पास जो चलता था वह बड़े सम्राटों की नजरों में भी आ जाता था। अब आज कौन जाएगा साथ? लोगों के कदम धीमे हो गए। बुद्ध पहली दफा अकेले चले उस रास्ते पर। साथी थे, लेकिन वे काफी पीछे थे, अचानक उनके पैरों की गति धीमी हो गई थी। ऐसा कभी न हुआ था। और जब लोगों ने अंगुलीमाल को देखा कि वह एक चट्टान पर फरसे पर धार रख रहा है तब तो वे ठहर ही गए।
अंगुलीमाल ने आंख उठाई। पीत वस्त्रों में आते हुए सुंदर इन बुद्ध को देखा; एक चमत्कार घटित हुआ। वह हमें चमत्कार लगता है, क्योंकि हमें प्रेम की परिभाषा नहीं आती, और न हमें प्रेम के गणित का कोई पता है। लेकिन चमत्कार नहीं, सीधा गणित है। उसने बुद्ध को देखा। उसके जीवन में पहली दफे करुणा का भाव उठा। यह आदमी इतना निरीह मालूम हुआ, इतना कमजोर, कि इसको मारना? एक भिक्षु को? और इसके चेहरे पर ऐसी स्निग्धता और ऐसी शांति कि क्षण भर को अंगुलीमाल को भी दया आ गई। कोई जीवन-ऊर्जा प्रवाहित हो रही है; पानी पत्थर को तोड़ रहा है, जलधार कठोर पत्थर को गिराए दे रही है।
अंगुलीमाल थोड़ा घबराया। जो अंगुलीमाल से घबराते थे उनसे अंगुलीमाल कभी नहीं घबराया था। अंगुलीमाल थोड़ा घबराया। यह अतिशय हुआ जा रहा है। उसने खड़े होकर आवाज दी कि रुक जाओ भिक्षु वहीं! आगे मत बढ़ो! तुम्हें शायद पता नहीं है। क्या तुम्हें गांव के लोगों ने नहीं बताया? लगता है अनजान-अपरिचित तुम चले आए हो इस मार्ग पर। मैं हूं अंगुलीमाल। शायद तुमने नाम सुना हो। यह देखते हो, नौ सौ निन्यानबे लोगों की अंगुलियों की माला पहने बैठा हूं। एक आदमी की कमी रह गई है। मेरी मां भी आना बंद कर दी है। आ जाए तो उसकी मैं गर्दन उतार दूं। तुम लौट जाओ। अनजान देख कर मुझे तुम पर दया आती है।
अंगुलीमाल समझ नहीं पा रहा है। कैसे समझ पाएगा! यह दया अंगुलीमाल के कारण नहीं आ रही है, नहीं तो पहले भी आ गई होती। नौ सौ निन्यानबे आदमी मार चुका और दया न आई। और आज अचानक दया आ रही है! अंगुलीमाल के कारण नहीं आ रही है। यह घटना बुद्ध के कारण घट रही है। वह जो बहता हुआ प्रेम का प्रवाह है, वह दूसरे को भी रूपांतरित करता है। वह बड़ी अनजान शक्ति है, दिखाई नहीं पड़ती। एक हृदय से दूसरे हृदय तक जाते हुए बीच के रास्ते में तुम उसे कहीं पकड़ कर प्रयोग न कर पाओगे कि कैसी है। शायद छलांग लेती है, शायद बीच में कोई रास्ता पूरा करती ही नहीं। अभी यहां और युगपत वहां, जैसे बीच में कोई यात्रा नहीं होती। इतनी त्वरा है।
वे कहते हैं प्रकाश की गति एक सेकेंड में एक लाख छियासी हजार मील है-प्रति सेकेंड! लेकिन प्रकाश को भी वे पकड़ पाए हैं, प्रेम को अभी तक नहीं पकड़ पाए। शायद प्रेम की गति कभी पकड़ में न आ सके। आना भी नहीं चाहिए। क्योंकि प्रेम तो प्रकाश से भी गहरा प्रकाश है, महाप्रकाश है। और जब सूरज भी ठंडे हो जाएं तब भी प्रेम ठंडा नहीं होता। जब सूरज भी बुझ जाएं और मृत्यु का अंधेरा उन पर छा जाए तब भी प्रेम का गीत तो गुनगुनाया ही जाता है। प्रेम की वीणा बजती ही रहती है। अंधेरा हो या प्रकाश, दिन हो या रात, जीवन हो या मृत्यु, सुख हो या दुख, प्रेम को कुछ भी मिटा नहीं पाता।।
अंगुलीमाल को पता नहीं है, लेकिन उसके मन में करुणा का जन्म हो गया। और बुद्ध मुस्कुराए। बुद्ध ने कहा, अंगुलीमाल, तुम प्रतीक्षा करते एक आदमी की। मैंने सोचा इस शरीर का सब काम पूरा हो ही चुका है, जो पाना था पा लिया, जो जानना था वह जान लिया, अब दुबारा आना भी नहीं है, अगर मैं इतने काम आ जाऊं कि तुम्हारी प्रतिज्ञा पूरी हो जाए! इसलिए मैं जान कर आ रहा हूं; मैं कोई अनजान नहीं हूं। मुझ पर दया करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं तुम्हारी दया का भिखारी नहीं हूं। मैं कुछ देने आ रहा हूं, लेने नहीं। इस शरीर का काम पूरा हो चुका अंगुलीमाल, तुम बिलकुल निर्भय होकर मुझे मार सकते हो।
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