________________
मेरे तीन बजाने प्रेम और अब-अति और अंतिम छोवा
एक ही राज है इस जगत में शांति से जीने का और अपनी नियति पूरी कर लेने का, उस अर्थ को उपलब्ध हो जाने का जिसके लिए परमात्मा ने तुम्हें जन्म दिया, वह काव्य तुमसे फूट जाए, वह गीत तुम गा लो, वह नृत्य तुमसे पूरा हो सके, एक ही रास्ता है। और वह तीसरा खजाना है लाओत्से का कि तुम महत्वाकांक्षा छोड़ दो, तुम प्रतिस्पर्धा छोड़ दो। तुम अपना जीवन जीओ। तुम दूसरे के जीवन का अनुकरण क्यों करते हो? दूसरे को जाने दो जहां जाता हो। वह उसकी मौज है। उसका रास्ता होगा। तुम उसके पीछे क्यों हो जाते हो?
किसी को मकान बनाने का राज है, बनाने दो। तुम अगर अपने झोपड़े में प्रसन्न हो तो तुम व्यर्थ की दौड़ में क्यों पड़ जाते हो? क्योंकि दौड़ समय लेगी, शक्ति लेगी, जीवन लेगी। और जो तुम पा लोगे उससे तुम्हें कभी तृप्ति न मिलेगी, क्योंकि वह तुम्हारी कभी चाह ही न थी। इसीलिए तो इतनी अतृप्ति है। नहीं मिलती तो तकलीफ है; मिल जाए तो तुम पाते हो कोई सार नहीं, क्योंकि तुम्हारी वह चाह ही न थी।
समझ लो कि एक आदमी बांसुरी बजा रहा है। बड़ी अच्छी बजा रहा है। लोग प्रशंसा कर रहे हैं।
तुम्हें प्रशंसा पकड़ जाती है। तुम्हें गुदगुदी शुरू होती है। तुम्हारा अहंकार कहता है कि यह इससे अच्छी बजा कर बता देंगे। यह तो ठीक है कि शायद कोशिश करो तो बजा भी लोगे इससे अच्छी। लेकिन अगर बांसुरी बजाना तुम्हारे जीवन का हिस्सा ही न था, तो जिस दिन तुम अच्छी भी बजा लोगे उस दिन भी तुम पाओगे कि कुछ पाया नहीं, समय व्यर्थ गया।
कभी नकल में पत पड़ो। प्रतिस्पर्धा नकल में ले जाती है। प्रतिस्पर्धा अनुकरण में ले जाती है। तब तुम अपने स्वभाव से वंचित हो जाते हो, च्युत हो जाते हो। महत्वाकांक्षी व्यक्ति हमेशा स्वभाव से च्युत होता रहता है; भटकता रहता है सब जगह, सिर्फ अपने को छोड़ कर। अपने घर नहीं आता, और सभी घरों पर दस्तक लगाता है। और आखिर में पाता है कि बिना घर पहुंचे कब्र करीब आ गई। तब न लौटने की सामर्थ्य रह जाती है, न समय रह जाता है।
और जब तक तुम अपनी नियति पूरी न कर लो-यह जीवन का आधारभूत नियम है-तुम वापस बार-बार जन्म और मृत्यु के चक्कर में फेंके जाओगे। तुम यहां कुछ उत्तीर्ण करने को हो; यहां तुम कुछ अतिक्रमण करने के लिए भेजे गए हो; कुछ जानने, सीखने, कुछ प्रौढ़ होने को। तुम प्रौढ़ हो जाओगे तो ही उठा लिए जाओगे।
. जीसस ने कहा है कि जैसे कोई मछुआ जाल फेंकता ऐसा परमात्मा रोज जाल फेंकता है। मछुआ मछलियां पकड़ लेता है; जो योग्य हैं उन्हें चुन लेता है, बाकी को वापस सागर में डाल देता है। ऐसा ही परमात्मा जाल फेंकता है। बहुत पकड़े जाते हैं; बहुत कम चुने जाते हैं। केवल वे ही चुने जाते हैं जिनकी नियति पूरी हो गई, जिन्होंने अपने जीवन का सौरभ पा लिया, जिनका फूल खिल गया।
मंदिर में तुम फूल चढ़ाने जाते हो; तुम्हें पता है उसका अर्थ क्या होता है? ये बाहर के फूल चढ़ाने से उसका कोई लेना-देना नहीं। तुम खिल जाओ, फूल बन जाओ; वह तुम्हारी नियति की परिपूर्णता का प्रतीक है। तभी तुम मंदिर की वेदी पर स्वीकार हो सकोगे।
'प्रेम के जरिए आदमी अभय को उपलब्ध होता है। अति नहीं करने से आदमी के पास आरक्षित शक्ति का अतिरेक होता है। और संसार में प्रथम होने की धृष्टता नहीं करने से आदमी अपनी प्रतिभा का विकास कर सकता है और उसे प्रौढ़ बना सकता है। श्रू लव वन हैज नो फियर। थू नाट डूइंग टू मच वन हैज एंप्लीटयूड ऑफ रिजर्व पावर। श्रू नाट प्रिज्यूमिंग टु बी दि फर्स्ट इन दि वर्ल्ड वन कैन डेवलप वंस टैलेंट एंड लेट इट मैच्योर।'
और प्रौढ़ होकर ही तुम स्वीकार किए जा सकोगे। तुम्हारी अर्चना का दीप कच्चा रहा तो परमात्मा के मंदिर में प्रवेश न पा सकेगा। तुम जो होने को भेजे गए हो तुम अगर वही हो सके, बस, तुम उठा लिए जाओगे, चुन लिए जाओगे। और जरूरी नहीं है कि तुम पिकासो जैसे बड़े चित्रकार हो जाओ तब तुम चुने जाओ। जरूरी नहीं है