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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ 22 आखिर में तुम पाते हो कि लोग पीछे हुए कि नहीं हुए, तुम बरबाद हो गए। जहां तुम्हें जाना था, जो तुम्हारी नियति थी, वहां तो तुम पहुंच ही न पाए। हर किसी ने तुम्हें लुभा लिया । और हर किसी ने तुम्हारे रास्ते में विघ्न खड़ा कर दिया। और हर किसी ने तुम्हें धक्का दे दिया। और हर किसी ने तुम्हें रास्ता सुझा दिया। तुम्हारी कोई नियति है । तुम ऐसे ही अर्थहीन नहीं हो यहां, तुम कुछ होने को हो । तुम्हारे जीवन से कुछ फलित होने को है । तुम्हारी कोई पूर्णाहुति है । तुम्हारे भीतर चेतना किसी मार्ग पर जा रही है। कितनी विघ्न-बाधाएं तुम खड़ी कर रहे हो! तो मार्ग तो छूट ही जाता है; कुछ और होने में लग जाते हो । लाओत्से इसलिए तीसरा खजाना देता है। वह कहता है, जीवन में कभी तुम प्रथम होने की चिंता मत करना । 'दि थर्ड इज़, नेवर बी दि फर्स्ट इन दि वर्ल्ड ।' कोशिश ही मत करना। अगर तुमने इसे जीवन की गहनतम आस्था बना लिया कि मैं किसी की प्रतिस्पर्धा में नहीं हूं, और किसी के साथ मेरी महत्वाकांक्षा की कोई दौड़ नहीं चल रही है, तो ही तुम अपनी नियति को उपलब्ध हो पाओगे । अन्यथा मुश्किल है। चार अरब आदमी हैं चारों तरफ। इसमें बड़ी धक्का-मुक्की है। और हरेक अपने-अपने ढंग से अपने काम में लगा है। मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन मस्जिद गया। रमजान के दिन थे और सारे मुसलमान गांव के इकट्ठे थे। जब सब घुटने टेक कर नमाज पढ़ने को बैठे तो मुल्ला नसरुद्दीन का अंगरखा पीछे से थोड़ा उठा था, पाजामे का नाड़ा दिखाई पड़ रहा था। तो पीछे के आदमी ने अच्छा नहीं लगता, एक झटका मार कर उसका अंगरखा ठीक कर दिया। उसके आगे वाले आदमी का अंगरखा ठीक ही था; एक झटका उसने मारा। तो उस आगे वाले आदमी ने पूछा कि क्यों भई, क्या बात है ? उसने कहा, मुझसे मत पूछो, उसने शुरू किया है, पीछे वाले ने। हम तो सिर्फ अनुकरण कर रहे हैं। राज क्या है, हमें पता नहीं। मगर कुछ न कुछ होगा; नहीं तो वह आदमी करता ही क्यों ? हर जगह तुम डांवाडोल किए जा रहे हो। कोई भी तुम्हें कुछ भी समझाए जा रहा है। चारों तरफ से हजारों प्रवाह तुम्हारे मन पर पड़ रहे हैं। सब तुम्हें अपनी तरफ खींच रहे हैं। यह बड़ा बाजार है। कई दुकानदार हैं। वे सब तुम्हें बुला रहे हैं कि यहां आ जाओ! तुम अगर सम्हले न तो तुम इस बाजार में खो जाओगे। अनेकों खो गए हैं। सम्हलो! अपनी जरूरत पहचानो, उसे पूरा करो। अपनी आवश्यकता पहचानो, उसे पूरा करो। लेकिन दूसरे की प्रतिस्पर्धा में नहीं, क्योंकि दूसरे की प्रतिस्पर्धा तुम्हें गलत मार्ग पर ले जाएगी। अपने को पहचान कर, इस भरे बाजार से अपने को बचा कर निकल जाना है। और बचाने का सूत्र एक ही हो सकता है कि तुम पहले होने की आकांक्षा छोड़ दो। तुम अंतिम होने को राजी हो जाओ तो ही तुम अपनी नियति को पा सकोगे। जीसस ने कहा है, जो प्रथम हैं इस संसार में वे मेरे राज्य में अंतिम खड़े होंगे, और जो अंतिम हैं वे प्रथम | अंत में खड़ा होना एक बड़ा राज है। क्योंकि जो अंत में खड़ा है वह प्रतिस्पर्धा में उत्सुक नहीं होता। जो अंत में खड़े होने को राजी है, दुनिया उसे परेशान भी नहीं करती। उसकी कोई टांग नहीं खींचता । वे पहले ही से अंत में खड़े हैं। और कहां गिराओगे ? आखिरी जगह बैठे हैं। अब यहां से और कहां भगाओगे ? उतारे जाते हैं, वहीं उसने कहा कि यहां से कोई कभी भगाता नहीं। क्योंकि हमने बड़ी फजीहत होते देखी है लोगों की जो प्रथम बैठते हैं। सिंहासनों पर जो बैठते हैं, उनकी टांग तो हमेशा कोई न कोई खींच ही रहा है। सिंहासन पर बैठे नहीं कि टांग खींचने वाले तैयार हुए। वे पहले ही से तैयार थे। तुम उनको धक्का-मुक्का देकर ही तो वहां पहुंच गए हो। जो तुमने किया है वही वे तुम्हारे साथ करना चाह रहे हैं। कहते हैं, लाओत्से कहीं भी जाता तो सभा होती तो वह पीछे, आखिर में, जहां बैठता। किसी ने उससे पूछा कि लाओत्से, तुम यहां क्यों बैठे हो ?
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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