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________________ ताओ उपनिषद भाग६ तो वह बहुत हैरान हुआ। उसने दीया जब जला कर देखा कि मुल्ला छिपा खड़ा है, उसने कहा, अरे नसरुद्दीन, हम तो सोचते थे तुम बड़े बहादुर आदमी हो! और तुम इस तरह डर कर क्यों खड़े हो? नसरुद्दीन ने कहा कि भाई, बहादुर तो हम हैं ही। और यह तुमसे किसने कहा कि हम डर कर खड़े हैं? हम तो शरम के मारे खड़े हैं। बीस साल से इस मकान में हम रह रहे हैं। खोज-खोज कर मर गए, कुछ न पाया। अब तुम खोजने आए हो। शरम के मारे खड़े हैं कि तुम खाली हाथ लौटोगे। आए इतनी दूर से, इतनी मेहनत की, और कुछ न पाया। तो अपनी दीनता की शरम—कि घर में कुछ है नहीं। और अगर तुम राजी होओ तो मैं भी तुम्हें साथ दूं खोजने में। बीस साल कोशिश करके यहां हमने कुछ खोज नहीं पाया। तुम अगर सिकंदरों से पूछो तो वे भी आखिर में अलमारियों में छिप कर खड़े हो जाते हैं। कुछ नहीं पाया; शरम के मारे खड़े हो जाते हैं। सिकंदर ने मरते वक्त कहा कि मेरे हाथ अरथी के बाहर लटके रहने देना, क्योंकि मैं चाहता हूं लोग ठीक से देख लें कि मैं भी खाली हाथ जा रहा हूं। और अकेली अरथी है दुनिया में जो हाथ लटकी हुई निकली। क्योंकि सिकंदर की आज्ञा थी, इसलिए मानी गई। उसके दोनों हाथ अरथी के बाहर लटके थे। लाखों लोग उसकी अरथी को देखने इकट्ठे हुए थे। पूछने लगे कि यह क्या मामला है? इस तरह की अरथी कभी देखी नहीं! सांझ होते-होते राजधानी के लोगों को पता चला कि सिकंदर की मर्जी थी कि उसके हाथ बाहर लटके रहें, ताकि लोग ठीक से पहचान लें कि मैं भी कुछ पाकर नहीं जा रहा हूं; खाली हाथ जा रहा हूं। जहां से सिकंदर खाली हाथ लौट जाते हैं वहां तुम पंक्ति में खड़े होकर करोगे भी क्या? प्रथम पहुंचे हुए लोग भी खाली हाथ जाते हैं। खोने को कुछ भी नहीं है पंक्ति अगर छोड़ दो; पाने को बहुत कुछ है। लेकिन पंक्ति छोड़ने में डर लगता है। क्योंकि पंक्ति में जो खड़े हैं वे कहते हैं, अरे, भगोड़े हो गए? संन्यास ले लिया? पलायनवादी! एस्केपिस्ट! पंक्ति में जो खड़े हैं स्वभावतः ऐसा कहेंगे; क्योंकि तभी वे पंक्ति में खड़े रह सकते हैं। अन्यथा तुम्हारा पंक्ति को छोड़ कर जाना उनको दीनता और शरम से भर देगा। जब वे तुमसे कहते हैं एस्केपिस्ट, पलायनवादी, भगोड़े, तो वे यह कह रहे हैं कि हम भगोड़े नहीं हैं, हम डट कर खड़े रहेंगे। वे अपनी आत्म-रक्षा कर रहे हैं। बहुत से लोग इसीलिए पंक्ति में खड़े हैं डर के मारे कि अगर निकलेंगे तो लोग कहेंगे, भाग गए! मैदान छोड़ दिया! पीठ दिखा दी! हमने न सोचा था कि तुम इतने कमजोर साबित होओगे! बुद्ध से भी यही कहा गया। खुद बुद्ध के सारथी ने बुद्ध से यह कहा, जो छोड़ने गया था उन्हें जंगल में। उसे पता न था। बुद्ध ने कहा, चलो जंगल, तो वह चल पड़ा। जब बुद्ध रुके एक नदी के किनारे, उन्होंने कहा, अब तुम वापस लौट जाओ। और अपने हाथ के आभूषण और गले के आभूषण सब उतार कर दे दिए। तो सारथी ने कहा, यह पलायन है। सारथी! उसने भी बुद्ध को शिक्षा दी। क्योंकि वह भी पंक्ति में खड़ा है। माना कि बहुत दूर पीछे खड़ा है, लेकिन बिलकुल पीछे तो नहीं खड़ा है, उससे भी पीछे लोग हैं। और बुद्ध तो प्रथम खड़े थे। उसने कहा, यह पलायन है, यह भागना है। योग्य नहीं है मेरे कि मैं आपको शिक्षा दूं, लेकिन आप भगोड़ापन कर रहे हैं। हिम्मतवर लड़ते हैं; पीठ नहीं दिखा देते। बुद्ध ने कहा कि मैं जहां से भाग रहा हूं वहां आग लगी है। और जब किसी के घर में आग लगती है और कोई आदमी बाहर भाग कर आता है, उसे तुम भगोड़ा कहते हो? उस वक्त क्या तुम यह कहोगे कि खड़े रहो भीतर! क्या पीठ दिखा रहे हो? जल जाओ, मगर बाहर मत निकलना। अगर कोई आदमी ऐसा डट कर भीतर खड़ा रहे, तुम उसको बहादुर कहोगे कि मूर्ख? उस सारथी ने कहा, मुझे कहीं आग नहीं दिखाई पड़ती। महल। वहां कैसी आग? सुंदर पत्नी। वहां कैसी आग? 312
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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