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________________ जीवन कोमल हैं और मृत्यु कठोर ऐसा शास्त्रों में लिखा है-हिंदुओं के शास्त्रों में भी, जैनों के शास्त्रों में भी। हिंदुओं के शास्त्रों में लिखा है कि अगर पागल हाथी तुम्हारा पीछा करता हो और जैन मंदिर पास हो जिसमें शरण लेकर तुम आत्म-रक्षा कर सकते हो, तो भी जैन मंदिर में मत जाना। पागल हाथी के पैर के नीचे दब कर मर जाना बेहतर है, लेकिन जैन मंदिर में संकट के काल में शरण लेना भी पाप है। वही बात जैनों के शास्त्रों में भी लिखी है। बड़े सख्त लोग, पागलपन की सीमा पर सख्त। और ऐसे लोग कैसे जीवंत ज्ञान को उपलब्ध हो सकेंगे। जीवन की धारा तो बड़ी कोमल है, लोचपूर्ण है। न तो सिद्धांतों में सख्त होना, न मान्यताओं में, न विश्वासों में सख्त होना। और तभी तुम पाओगे कि तुम्हारे भीतर ज्ञान प्रतिपल बढ़ता जाता है। जिस क्षण तुम सख्त होते हो वहीं ज्ञान का विकास रुक जाता है। अगर प्रतिपल ज्ञान को जन्म देना है तो उसका अर्थ हुआ, प्रतिपल ज्ञान का बालक जन्म लेगा; तुम लोचपूर्ण रहोगे। मरते दम तक लोचपूर्ण रहोगे; मरते दम तक तुम आग्रह न करोगे कि जो मैं कहता हूं वही सही है। तुम सदा यही कहोगे कि ऐसा मैंने जाना, पर अन्यथा भी सही हो सकता है। क्योंकि मैंने पूरा जीवन नहीं जाना। जीवन बड़ा है, मैं बहुत छोटा हूं। मैंने सागर का एक किनारा जाना; सभी किनारे ऐसे ही होंगे, कहना जरूरी नहीं है। कहीं चट्टानें होंगी, कहीं रेत का फैलाव होगा, कहीं वृक्ष होंगे, कहीं पहाड़ होंगे। सागर के किनारे अलग-अलग होंगे। हजार-हजार रूप होंगे। यही सागर होगा। मैंने जो जाना, जो कोना मैंने जाना, वह ऐसा है। और कोनों की मुझे कुछ खबर नहीं है। दूसरा भी ठीक होगा। तुमसे जो बिलकुल विरोध में बोल रहा है वह भी ठीक हो सकता है, क्योंकि जीवन इतना बड़ा है कि सभी विरोधाभासों को अपने में समा लेता है। जीवन की विराटता का अर्थ ही यही है। वहां सभी असंगतियां एक ही संगीत की लयबद्धता में खो जाती हैं। हेराक्लाइटस का वचन बहुत प्यारा है। हेराक्लाइटस कहता है, गॉड इज़ समर एंड विंटर, डे एंड नाइट, लाइफ एंड डेथ, हंगर एंड सेटाइटी। ईश्वर सब है। ग्रीष्म भी वही है और शीत भी वही; और दिन भी वही, रात भी वही; हार भी वही, जीत भी वही; भूख भी वही, परितृप्ति भी वही। तुमने किसी किनारे से जाना हो कि ईश्वर प्रकाश है, और कोई दूसरा आकर कहे कि ईश्वर महा अंधकार है, तो लड़ने मत खड़े हो जाना। क्योंकि ईश्वर दोनों है। अन्यथा महा अंधकार कहां होगा? दुनिया के अधिक शास्त्रों में लिखा है ईश्वर प्रकाश है। पर जीसस जिस संप्रदाय में दीक्षित हए और जिस साधना-पद्धति से उन्होंने परमात्मा को पाया उस संप्रदाय का नाम है इसेनीज। वे अब तो करीब-करीब खो गए। लेकिन उन्हीं के आश्रमों में जीसस का पालन-पोषण हुआ और जीसस बड़े हुए। उनके वचनों में लिखा है : ईश्वर महा अंधकार है। और इसेनीज के पास अपने तर्क हैं। वह कहता है, अंधकार में जैसी शांति है वैसी प्रकाश में कहां? प्रकाश तो एक उत्तेजना है। इसलिए तुम अगर बहुत प्रकाश हो तो सो भी नहीं सकते। तो परम विश्राम कैसे कर सकोगे परमात्मा में? वह महा अंधकार है। और प्रकाश की तो हमेशा सीमा दिखाई पड़ती है; महा अंधकार की कोई सीमा नहीं। और परमात्मा असीम है। और प्रकाश को तो पैदा करो तब पैदा होता है, और ईंधन चुक जाने पर समाप्त हो जाता है। उसका आदि है, अंत है। अंधकार अनादि-अनंत है। न तो कोई पैदा करता, न कोई कभी बुझा पाया; सदा है। - इसेनीज की बात में भी अर्थ है। जो कहते हैं परमात्मा प्रकाश है, उनकी बात में भी अर्थ है। पर कुछ और दूसरे कोने से उनकी बात में अर्थ है। वे कहते हैं, परमात्मा प्रकाश है, क्योंकि परमात्मा के होते ही सब ऐसा ही साफ दिखाई पड़ने लगता है जैसा प्रकाश में। ठीक है बात। अंधकार में तो आदमी अंधा हो जाता है, प्रकाश में दिखाई पड़ता है, दर्शन होता है। अंधकार में तो भय लगता है, प्रकाश में निर्भय-अभय हो जाता है। उनकी बात में भी सत्य है। असल में, अगर तुम नम्य हो तो तुम्हें असत्य कहीं दिखाई ही न पड़ेगा। अगर तुम नम्य हो तो तुम्हें हर जगह सत्य . दिखाई पड़ जाएगा। और अगर तुम्हें हर जगह सत्य दिखाई पड़ना शुरू हो जाए तो ही तुमने जीवन का पाठ सीखा। 293|
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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