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ताओ उपनिषद भाग ६
चाहिए; आज्ञा के अनुसार। और चूंकि मना किया गया था, फिर भी उन्होंने किताब पढ़ीं, उन्होंने उन्हें निकाल बाहर कर दिया। अब वृद्ध साध्वियां, जिन्होंने जीवन कुछ किया नहीं, कुछ करने का उपाय भी नहीं है। उनमें से एक तो बीमार है जो चल-फिर भी नहीं सकती, जिनका कोई परिवार नहीं। उन्हें ऐसा फेंक देना साधुता का लक्षण तो नहीं। गहन असाधुता छिपी है।
लेकिन महत्वाकांक्षी हमेशा असाधु होता ही है। उसकी आकांक्षा यह होती है कि मुझसे ऊपर कोई भी नहीं।
तुलसी जी मुझसे ध्यान के संबंध में समझना चाहते थे। तो उन्होंने कहा, हम बिलकुल एकांत में बात करेंगे। पर मैंने कहा, क्या एकांत की जरूरत है! और लोग भी मौजूद हो सकते हैं। क्योंकि और सब बातें तो आपने सबके सामने मुझसे की हैं। उन्होंने कहा, नहीं, यह जरा गहन बात है, एकांत में ही करेंगे। और एकांत में करने का कुल कारण इतना कि तुलसी जी के अनुयायियों को अगर पता चल जाए कि तुलसी जी भी ध्यान के संबंध में किसी से पूछते हैं, इन्हें अभी ध्यान का पता नहीं, तो पद संकट में पड़ जाएगा।
न कभी ध्यान किया है, न कभी ध्यान के संबंध में कुछ जाना है। शास्त्रों को पढ़ कर पंडित हो गए हैं लोग, कुछ जाना नहीं है। शब्द में कुशल हैं, लेकिन स्वयं में कोई गति नहीं है। हो भी नहीं सकती। क्योंकि स्वयं में तो गति तभी होती है जब तुम कोमल और कमजोर होने को राजी हो।
शक्ति की आकांक्षा का अर्थ है, तुम दूसरे पर कब्जा करना चाहते हो। और अगर गौर से देखो, बहुत गौर से देखो, तो कमजोर आदमी ही दूसरे पर कब्जा करना चाहता है। अब तुम बड़ी जटिलता में पड़ोगे। और कमजोर होने को जो राजी है वही असली शक्तिशाली है। क्योंकि उसे कोई भय ही नहीं है। ठीक है, अगर कमजोर और कोमलता जीवन का लक्षण है तो वह राजी है। वह मिटने को राजी है, लेकिन जीवन को खोने को राजी नहीं है। वह चट्टान होने के लिए तैयार नहीं है, वह फूल ही होने के लिए तैयार है। माना कि सांझ फूल गिर जाएगा, गिरेंगे। लेकिन जब तक फूल है तब तक फूल एक ऐसे अनंत को ला रहा है पदार्थ के जगत में, एक ऐसे सौंदर्य को उतार रहा है, रूप में उसे ला रहा है जिसका कोई रूप नहीं है। इतनी देर को सही, लेकिन जीवन की धड़कन अगर इतनी देर भी बजेगी, अगर वीणा जीवन की इतनी देर भी बजेगी तो बहुत है। एक क्षण भी बजेगी तो अनंत है। पत्थर की तरह अनंतकाल तक भी पड़े रहेंगे तो उसका कोई मूल्य नहीं है।
'आदमी जब जन्म लेता है, वह कोमल और कमजोर होता है। मृत्यु के समय वह कठोर और सख्त हो जाता है। जब वस्तुएं और पौधे जीवंत हैं, तब वे कोमल और सुनम्य होते हैं। और जब वे मर जाते हैं, वे भंगुर और शुष्क हो जाते हैं।'
जाओ, जीवन को देखो-परखो, और तुम लाओत्से की बात सही पाओगे। छोटे-छोटे पौधे बच जाते हैं, आंधी आती है, और बड़े-बड़े वृक्ष गिर जाते हैं। बड़े वृक्ष अकड़े खड़े हैं। अपनी ताकत से आंधी से लड़ना चाहते हैं। छोटे वृक्ष कमजोर हैं; लड़ते नहीं, सिर्फ झुक जाते हैं। आंधी आती है, चली जाती है, छोटे वृक्ष फिर खड़े हो जाते हैं।
और बड़े वृक्ष गिर गए, फिर उनके उठने का कोई उपाय नहीं रह जाता। जब सख्त गिरता है, तो सिर्फ मरता है। जब कोमल गिरता है, कुछ अंतर नहीं पड़ता, फिर उठ कर खड़ा हो जाता है। कोमल नम्य है, लोचपूर्ण है; झुक सकता है। जितने तुम लोचपूर्ण हो उतने ही तुम जीवंत हो।
क्या तुम अपने सिद्धांतों में लोचपूर्ण हो? क्या तुम आस्तिक हो, और नास्तिक की बात भी शांति से सुन सकते हो? क्योंकि हो सकता है वह सही हो। अगर तुम लोचपूर्ण हो तो तुम्हारे भीतर ज्ञान की धारा जीवंत रहेगी। क्या तुम अपने विरोधी की बात उतनी ही शांति से सुन सकते हो जितनी तुम अपनी ही बात शांति से सुनते हो? अगर तुम सख्त हो तो तुम कहोगे कि नहीं, विरोधी की बात ही क्यों सुननी?
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